यह एक यक्ष प्रश्न हम सबके सामने है कि आखिर देशभर में अलग अलग शहरों में चल रहे धरने प्रदर्शनों का फायदा किसको होगा ? आंदोलनकारियों से पूछने पर एक जवाब मिलता है लड़ेंगे जीतेंगे लेकिन यह सिर्फ एक जज्बाती जवाब है असल जवाब से हम सब अपनी नज़रें चुरा रहे हैं।
हालांकि जिस तरह यह आंदोलन शुरू हुआ और अभी तक चला उसने जहां संसद को यह संदेश दिया है कि आप कोई भी कानून देश की जनता पर नहीं थोप सकते लेकिन वहीं इस पूरे आंदोलन में अभी तक हम यह तय नहीं कर पाए कि इसका किसी भी तरह से फायदा हमारा विरोधी न उठा पाए ।
जी हां सभी इस पूरे आंदोलन को हम भारत के लोगों का आंदोलन बताने पर तुले हैं और यह बात सच भी है लेकिन इसमें मुसलमानों को छोड़ कर अन्य धर्मों के सिर्फ सियासी,सामाजिक कार्यकर्ता,पढ़े लिखे लोगों की मौजूदगी दिख रही है और हम इस बात पर गौर नहीं कर रहे हैं।हम यह सवाल नहीं पूछ रहे कि मंचों पर जाकर बड़े दलित नेता तो अपनी बात रख रहे हैं आखिर सड़कों पर या धरने में दलित या आदिवासी समाज के लोग शामिल क्यों नहीं है ?
ऐसे किसी और मुद्दे पर मेश्राम या प्रकाश अम्बेडकर जैसे लोगो के साथ हजारों लाखों की भीड़ आती है मगर इस आंदोलन में उनके साथ लोग क्यों नहीं हैं? आखिर क्यों भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर अपने आंदोलन की शुरुवात जामा मस्जिद से करते हैं रविदास मंदिर से नहीं? जब आप इन सवालों पर गौर करेंगे तो आपको जो जवाब मिलेगा वह आपकी आंखें खोल देगा।
दिल्ली चुनाव में जिस तरह का परिणाम आया और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत पर जिस तरह की संतुष्टि का इजहार किया गया उसने वहां से हमारा ध्यान हटा दिया जहां देख कर हम अपनी रणनीति तय कर सकते थे दरअसल जिस समय दिल्ली चुनाव शुरू हुआ उस समय आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव मैदान में दिख रही थी और चुनाव एकतरफा ही था लेकिन इस आंदोलन को लेकर जिस तरह का आक्रामक प्रचार बीजेपी ने चलाया उसने उसे बराबरी की लड़ाई में लाकर खड़ा कर दिया संघ जो मेहनत लगातार कर रहा है उसका फायदा दिखाई दिया और बहुत बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण हुआ जिसका नतीजा यह हुआ कि आप की लहर के बावजूद बीजेपी को 40% से अधिक वोट मिले और अगर कांग्रेस हल्का सा भी दम लगाती तो बीजेपी की सत्ता में वापसी हो जाती।
आप की जीत की खुशी में इस आंकड़े पर चर्चा नहीं की गई जोकि सबसे अधिक ज़रूरी थी कि आखिर ऐसा कैसे हुआ? अगर इस पर विचार किया जाता और इसको सामने रखकर कोई नई रणनीति बनती तो तेज़ी से बढ़ते अनजाने खतरे से बचा जा सकता है।दरअसल हर लड़ाई को लड़ने का कोई एकमात्र तरीका नहीं होता उसे अलग अलग तरीकों से लड़ा जाता है सिर्फ प्लान A रखकर मैदान में डट जाना हरगिज़ बुद्धिमत्ता नहीं है इसके साथ में आपके पास दूसरी योजना भी होना चाहिए।
आइए अब ज़रा चर्चा करते हैं कि गलती हो कहां रही है और हमारा विरोधी हमारे विरूद्ध किस गलती को हथियार बना रहा है,
आरएसएस द्वारा पूरे देश में जिस स्तर का व्यापक अभियान चलाया जा रहा है हम इससे अनजान बने हुए हैं और समझ रहे हैं कि पूरी दुनिया में आंदोलन का चर्चा हो रहा है जबकि संघ के लोगों का मानना है कि राममंदिर आंदोलन से अबतक इतना व्यापक अभियान संघ ने नहीं चलाया जो अभी चल रहा है हर गांव में उसके द्वारा लोगों को समझाया जा रहा है कि यह आंदोलन करने वाले लोग किस तरह दलितों के पिछड़ों के खिलाफ हैं,उन्हें यह बात बताई जा रही है बल्कि समझाई जा रही है कि पाकिस्तान में मुसलमानों ने जिन दलितों को पिछड़ों को ज़बरदस्ती वहां रोक लिया था भारत नहीं आने दिया था ताकि उनकी साफ सफाई और छोटे मोटे काम करवा सके वह वहां रह गये फिर मुसलमानों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया उनकी बहू बेटियों के साथ बलात्कार किया अब भारत की सरकार ने उनकी सुध ली है और उन्हें नागरिकता देना चाहती है इसलिए कानून बनाया जिसका यहां के मुसलमान विरोध कर रहे हैं और उन्होंने अपनी औरतों को बुर्खा पहनाकर सड़क पर बिठा दिया है,यह आंदोलन दलितों और पिछड़ों को न्याय देने वाले कानून का विरोध करने के लिए सीधे तौर पर दलितों और पिछड़ों के खिलाफ हो रहा है। इस बात को समझाने के लिए संघ और सरकार में बैठे दलित एवम् पिछड़े समाज के नेता बाकायदा अभियान चला रहे हैं ,वीडियो बनाकर समाज में वायरल किए जा रहे हैं जिससे बहुत बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण हो रहा है ऐसा ध्रुवीकरण इससे पहले कभी नहीं हुआ जिसका सीधा फायदा राजनैतिक रूप से भाजपा को हो रहा है।वह कह रहे हैं कि देश में एन आर सी तो अभी आ नहीं रही है अभी इसका चर्चा भी नहीं है यह मुसलमान सिर्फ आपके खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं,हम सिर्फ शहरों में जहां मीडिया का कवरेज है धरने पर बैठकर नारे लगा रहे हैं जोकि काफी नहीं है।
दरअसलहम सरकार और संघ की सांझी रणनीति में फंस गए हैं और हमें इससे निकलने का रास्ता तलाश करना होगा इसके लिए सर से सर जोड़कर बैठना होगा हालांकि ऐसा नहीं है कि आंदोलन से कोई फायदा नहीं हुआ है आंदोलन से बड़ा फायदा हुआ है सरकार को साफ संदेश गया है कि युन्हिं कोई भी चीज लागू नहीं की जा सकती वरना देश में हालात खराब हो सकते हैं परेशानी होगी लेकिन जो नुक़सान हर दिन के साथ बढ़ रहा है उसे रोका जाना चाहिए।
जिस तरह का झूठ सच बनाकर लोगों को परोसा का रहा है उसके असर को समाप्त करने के लिए लोगों तक सच पहुंचाने का आंदोलन आवश्यक है ,लोगों को साफ बताया जाना चाहिए कि हम किसी को भी नागरिकता दिए जाने का विरोध नहीं कर रहे हैं हमें परेशानी एनपीआर और एनआरसी से है दलितों और पिछड़ों के पास जाकर बताना होगा कि किस तरह सबसे अधिक दलित आदिवासी और पिछड़े समाज से आने वाले इससे परेशान होने वाले हैं।वहीं इस बात का प्रचार प्रसार करना होगा कि हम नागरिकता दिए जाने का कोई विरोध नहीं कर रहे हैं हम सब प्रताड़ित लोगों को नागरिकता दिए जाने का स्वागत करते हैं चाहे वह प्रताड़ित कोई भी हो।
जहां भी प्रदर्शन चल रहे हैं वहां सी ए ए को पीछे लेकर देश में हुई दलित उत्पीडन की घटनाओं को स्थान दिया जाना चाहिए और बात एनपीआर और एनआरसी की करनी चाहिए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला विचाराधीन है इस बात को आधार बना लेना चाहिए हमें किसी भी तरह बंटवारे कि राजनीत को थामना होगा और लड़ाई की दूसरी रणनीति पर विचार कर इस चक्रव्यूह से बाहर आने का रास्ता तलाशने में लग जाना होगा।
आइए सोचें समझें फिर तय करें कि देश को बचाना है नफरत की आंधियों से इसके लिए हम मोहब्बत के पहरे कहां कहां बिठाए।
यूनुस मोहानी
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