बहुत जल्द ही बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश में भी 2022 की तैयारी जोरों पर है लेकिन मुसलमानों के वोट लेकर सत्ता पर कब्ज़ा जमाने वाली पार्टियों ने अपनी रणनीति बदल दी है उनका मानना है कि मुसलमान की मजबूरी है कि वह भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए उन्हें वोट करे लिहाज़ा इस वर्ग पर बिल्कुल मेहनत करने की कोई ज़रूरत नहीं है लिहाज़ा सॉफ्ट हिंदुत्व नाम का एक नया शिगूफा छोड़ा गया है जिसमें यह खुद को सेक्युलर कहलाने वाली पार्टियां अपना बीजेपी की तरह ही हिंदुत्व का चेहरा परोस रही हैं ।

अब सवाल यह है कि ऐसे बदले हालात में मुसलमानों को क्या करना चाहिए? क्या इन ठेकेदार पार्टियों के झांसे में आना चाहिए और इनकी झोली में अपना वोट डाल देना चाहिये या फिर कोई रणनीति बनानी चाहिए? मुझे लगता है बल्कि आपको भी यही लगता है कि अब मुसलमानों के दिलों से डर निकल चुका है और वह पिछले 70 सालों से लगातार दोहराई जाने वाली गलती को सुधारना चाहते हैं वह गलती किसी को हराने के लिए वोट करने की प्रवत्ति है।अब यह जुम्मन जीत के लिए वोट करना चाहता है न कि किसी की हार के लिए,उसकी इस सोच को बनाने में जहां बीजेपी ने बड़ा सहयोग किया है वहीं उसके डर को शहीनबाग से निकले आंदोलन ने समाप्त कर दिया है।

आप चौक गए होंगे कि आखिर बीजेपी ने मुसलमानों का क्या सहयोग किया है तो सुनिए मियां अगर बीजेपी देश से लेकर प्रदेश तक और प्रदेश से लेकर पंचायत तक न अाई होती तो हम अभी भी इस भूल में होते कि अगर पंचायत या प्रदेश में यह आ जायेंगे तो हमारा बहुत नुकसान होगा या पंचायत से प्रदेश तक यह होते और केंद्र में नहीं तो यह डर होता कि अगर यह केंद्र में होंगे तो बहुत बुरा होगा लेकिन अब प्रधानमंत्री से प्रधान तक आपको एक दल दिख रहा है राष्ट्रपति चुनाव तो आपको पता ही है तो फिर अब हमें डराने के लिए कुछ नहीं है अगर यह भी सत्ता में रहते हैं तो भी हमें पंचर जोड़ना है और पहले भी जोड़ रहे थे तो फिर डर के चुनाव क्यों हो? फिर हम किसी के बहकावे में आकर बस बीजेपी हराओ अभियान में क्यों जुट जाएं?

ज़रा सोचिए बहुत सी ऐसी विधानसभा सीट हैं जहां हमारा वोट न सिर्फ निर्णायक है बल्कि हम अकेले भी अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने की स्थिति में हैं । बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में जिस भी पार्टी की 123 का जादुई नंबर मिलेगा वहीं सत्ता पर कब्ज़ा करेगी ऐसे में अब हमें गौर करना है कि हम अपना वोट किस आधार पर करेंगे? क्या लक्ष्य सिर्फ बीजेपी हाराओ होगा या फिर सुरक्षा और विकास का अहम मुद्दा?या फिर ईमानदार चुनाव दल के आधार पर नहीं अपितु उम्मीदवार के अनुसार ?,यहां एक बात और है कि अगर हमने उम्मीदवार की योग्यता के अनुसार चुनाव कर दिया तो यकीन मानिए हम भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ देंगे क्योंकि अभी हमारे पास जो अवसर होता है वह कहा जा सकता है भ्रष्टतम में से भ्रष्ट चुनने का ही होता है लेकिन हम नई इबारत लिख सकते हैं क्योंकि हमें किसी दल की सरकार बनवाने में कोई दिलचस्पी नहीं रखनी है।बल्कि वह ताकत प्राप्त करनी है कि कोई सरकार हमारी मदद के बिना न हो तब हम उनके साथ एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के साथ टेबल पर होंगे खैर आइए पहले बिहार के ज़मीनी हालात पर चर्चा करते हैं।
अभी मौजूदा हालात में नीतीश की मुश्किलें बढ़ीं हैं लेकिन राष्ट्रीय जनता दल में जो नेतृत्व की रार है उसने उसकी राह के कांटे हटाने का काम भी किया है वहीं तेजस्वी का अपरिपक्व अंदाज़ भी मंझे हुए नीतीश के लिए बहुत सहयोगी रहा है वहीं कांग्रेस भी बिहार में इतनी आक्रामक नहीं नजर आती जितनी उत्तर प्रदेश में है उसके पीछे उसकी दिल्ली वाली रणनीति नजर आती है कि वह राजद को पूरा मौका देना चाहती है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मीम ने भी बिहार की 32 मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर चुनाव लडने की घोषणा कर दी है। हालांकि पिछले चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा था और लोगों ने महागठबंधन के सामने उन्हें नकार ही दिया था लेकिन अब जिस तरह का माहौल पैदा हुआ है और जिस तरह से सेक्युलर कहलाने वाली पार्टियों ने अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर चुप साधी और मूल विषयों पर भी सिर्फ ट्विटर तक ही सीमित रहे उसने कहीं न कहीं ओवैसी के लिए उम्मीद की किरण तो पैदा कर ही दी है।हालांकि यदि बिहार में मुसलमान अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए वोट करें न कि किसी को हराने के लिए तो बिहार विधानसभा में लगभग 50 विधायक वह पहुंचा सकते हैं।बिहार में लगभग 17% मुस्लिम वोटर हैं जिसमें 24 विधानसभा सीटों में वह अपना उम्मीदवार जिताने की स्तिथि में हैं इसमें किशनगंज की सभी 6 विधानसभा सीट शामिल हैं जहां मुसलमानों की आबादी लगभग 78% है वहीं कठिहार अररिया और पूर्णिया की भी सभी सीटों पर मुसलमान नई इबारत अपनी ईमानदार चुनाव की मुहिम से लिख पाने में सक्षम हैं क्योंकि कठिहार में 43% अररिया में 41% और पूर्णिया में 37% वोटर मुसलमान हैं जो इन चारो जिलों की सभी 24 सीटों पर भारतीय लोकतंत्र के इस दौर में एक नई कहानी लिख सकने में सक्षम है।वहीं दरबंघा सीतामढ़ी और पश्चिमी चमापरण में भी क्रमशः 21,21,17% मुस्लिम वोटर हैं जो यहां निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं हालांकि उन्हें यहां सही समीकरण बिठाना पड़ेगा और जाति आधारित राजनीति को देखते हुए सोशल इंजीनिरिंग का ऐसा फार्मूला तलाशना होगा जिससे नई वैकल्पिक राजनीति के द्वारा प्रतिद्वंदी को मात दी जा सके वहीं पूर्वी चंपारण में जहां लगभग मुसलमान वोटर लगभग 19% हैं वहीं भागलपुर में भी 19% मुसलमान वोटर है मधुबनी में 19% तथा सीवान में 18% मुसलमान वोटर है जहां भी इस नई राजनीत को पनपाने का मौका है और अगर इसपर विचार हम समय रहते करते है तो बिहार से एक नई राजनीत जन्म ले सकती है क्योंकि इसमें कमसे कम 50 विधानसभा सदस्य ऐसे चुन कर आ सकते हैं जो इस पद को सुशोभित करने की नैतिक काबिलियत रखते है क्योंकि अभी तक हम कानूनी आहर्ता रखने वालों को चुनते आए हैं लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवश्यक है कि हम वास्तविक जन प्रतिनिधि चुने ।मुसलमानों को विशेष रूप से किसी भी भावना में न बहते हुए एक कार्य और करना होगा वह यह कि वह किसी भी दल के समर्थन में न उतरे और उसी तरह से संयमित रहें जैसे अभी तक सभी दल वाले उनके मुद्दे पर रहे हैं उस उम्मीदवार के पक्ष में वोट करें जो आपके वोट दिखा कर दूसरों को रिझाने वाले न हो बल्कि आप ख़ामोशी से हवा का रुख भापें और अपनी रणनीति के अनुसार न चुनाव से पहले और न चुनाव के बाद अपनी चुप्पी तोड़ें ,आपकी चुनावों से पहले की चुप्पी जहां इन सेक्युलर दलों को बेचैन कर देगी वहीं आपके बिना मांगे यह आपके लिए बात करते भी दिख सकते हैं और अगर नहीं भी दिखते तो भी आपको ख़ामोशी से अपने लक्ष्य पर लगे रहना है ,बाकी आप समझदार है तो ठेकेदारों से भी होशियार रहिएगा चाहे वह सियासी दलाल हों या धर्म के ठेकेदार क्योंकि भविष्य सिर्फ आपके बच्चे का खराब होगा विकास आपके प्रदेश और देश का बाधित होगा।
अगर बिहार का प्रयोग सफल होता है तो बंगाल और उत्तर प्रदेश चुनावों में इसका व्यापक असर होगा माया से मोह पहले ही भंग हो चुका है और अब प्रदेश में उनके पास बीजेपी के साथ गठबंधन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है और यह प्रयोग मिस्टर मुस्कान अखिलेश यादव को भी बता देगा कि पनघट की डगर इतनी आसान नहीं बाबू ,वैसे बिहार चुनाव का आगाज़ शहीदों के लहू, मुफ्त चावल गेहूं और चने के साथ कर दिया गया है,
यूनुस मोहानी
younusmohani@gmail.com
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