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भारत के प्रधानमंत्री और भाजपा के करिश्माई नेता नरेंद्र मोदी जी के गुरु पूर्णिमा पर विवादित तीनों कृषि कानूनी को वापस लेने की घोषणा के बाद अचानक से सियासी हलकों में उथल पुथल सी मच गई है,हालांकि देश पूरी तरह से समझ रहा है कि बीजेपी को उत्तर प्रदेश ,उत्तराखंड और पंजाब में अपनी स्तिथि का सही आकलन हो चुका है हिमाचल प्रदेश में उप चुनाव में जो संदेश आया है उसने इसे और मजबूत कर दिया कि जमीन पर हालत पतली है और लोग महंगाई से त्रस्त हैं साथ ही अब तक के सभी जुमले अब जनता को चुभ रहे हैं।
वहीं सोया हुआ विपक्ष भी कुछ जागा है और थोड़ा आक्रामक हुआ है वैसे अभी भी केंद्रीय जांच एजेंसियों का खौफ कम नही है इसलिए पूरी एहतियात बरती जा रही है, लेकिन फिर भी जैसे ही थोड़ा बहुत विपक्ष अपने बंकरों से बाहर आया जनता लामबंद होने लगी हैं ।उत्तर प्रदेश में जिस तरह की स्थितियां बनी हुई थी उससे बीजेपी का डर और बढ़ गया था क्योंकि पश्चिम उत्तर प्रदेश में हिंदू मुस्लिम दंगों से पनपी खाई किसान आंदोलन ने काफी हद तक पाट दी ,जिसके बाद यहां बीजेपी का लगभग सूपड़ा साफ होना तय सा प्रतीत होने लगा अगर किसान आंदोलन जारी रहता तो जो संदेश पश्चिम से आता वही पूरे प्रदेश के परिणाम तय करता ।
ऐसे माहौल में लगातार बीजेपी में मंथन जारी था और एक बिलकुल सही दिन का चयन करते हुए प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा की, जिससे एक तरफ पंजाब में बीजेपी की स्तिथि सुधारने का संदेश है क्योंकि तोहफा गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव पर दिया गया है वहीं उत्तर प्रदेश में भी अपनी स्तिथि सुधारने का प्रयास किया गया है।
उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी ने जिस तरह का समा बांधा था उससे लगने लगा था कि कांग्रेस इस चुनाव में कुछ बेहतर प्रदर्शन करेगी कई बार ऐसा भी लग रहा था कि अखिलेश की गलतियां और निष्क्रियता मुसलमानों को सपा से और अधिक नाराज कर देंगी और वह अपने पुराने घर कांग्रेस में आ जाएंगे, जिसके बाद माहौल बदल जायेगा लेकिन कांग्रेस ने खुद समाजवादी पार्टी से नूरा कुश्ती की ठानी हुई है ।
कांग्रेस जिस तेजी से अपना जनाधार बढ़ा रही थी साथ ही लखीमपुर खीरी घटना के बाद जैसे प्रियंका गांधी ने माहौल बनाया था उसकी हवा तेजी से निकल गई पहले कांग्रेस में मौजूद भस्मासुर उसे पनपता हुआ नहीं देखना चाहते दूसरा कांग्रेस में मौजूद फर्जी चिंतक और पोस्टर लिखने वाले उसका बेड़ा गर्क करने पर तुले हुए हैं ,सलमान खुर्शीद जैसे लोग ऐसे समय पर अपनी किताब को लेकर सामने उतर जाते हैं जब कांग्रेस अपना मार्ग सेक्युलरिजम छोड़ कर सॉफ्ट हिंदुत्व को आत्मसात करने के प्रयास में है ऐसे वक्त में बीजेपी को मुद्दा देने वाले सलमान खुर्शीद जो अब कहीं से चुनाव जीतने या किसी को जिताने का बल नहीं रखते हिंदुत्व की तुलना आई एस आई एस और बोको हराम से करते हैं जो कांग्रेस को बैकफुट पर लाने के लिए काफी होता है वहीं मणि शंकर अय्यर और गुलाम नबी आजाद जैसे लोग भी कांग्रेस को किसी भी कीमत पर सत्ता में वापसी करने देने के लिए तैयार नहीं है ,कांग्रेस के भीतर जो कैंसर है अगर समय रहते इसकी सफल सर्जरी नहीं की गई तो कांग्रेस का वापसी करना लगभग नामुमकिन सा हो जाएगा लेकिन इसकी हिम्मत नेतृत्व नहीं कर पा रहा है जबकि यदि एक साथ इस तरह के सभी लोगों का निष्कासन किया जाए तो नुकसान कम फायदा ज्यादा होगा क्योंकि यह सब अपनी जमीन पर कभी थे ही नहीं यह सत्ता की चाशनी पर जिंदा थे ।
उधर कांग्रेस के भाड़े पर लिए गए चिंतक हैं जो उसकी हर उम्मीद पर पानी फेरने को तैयार रहते हैं कोई बड़ी बात नहीं कि यह भी बीजेपी के एजेंट ही हों क्योंकि उत्तर प्रदेश में मुसलमान प्रियंका गांधी की तरफ उम्मीद की नजर से देखने लगा था और ऐसा लग रहा था कि बड़ा बदलाव मुमकिन है वहीं ब्राह्मण वोटर भी इसी उम्मीद में था कि मुसलमान जैसे ही घर वापसी करेगा वह भी बीजेपी का दामन छोड़ कर कांग्रेस के साथ खड़ा हो जाएगा क्योंकि बड़ी नाराजगी के बाद भी ब्राह्मण वोट बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है उसकी वजह साफ है कि वह बीएसपी और एसपी में अपने सम्मान का सौदा करने को तैयार नहीं है।
प्रियंका गांधी हर जगह जाकर पीड़ितों को सांत्वना देती दिख रही थी उनकी आत्मीयता देख कर लग रहा था कि जनमानस के ज़हन पर उसका गहरा असर हो रहा है और लोग उम्मीद की नज़र से कांग्रेस की तरफ देखने लगे हैं लेकिन प्रियंका गांधी ने उन उम्मीदों को सिर्फ एक गलती से तोड़ दिया और वह गलती थी कासगंज में पुलिस हिरासत में मृत पाए गए अल्ताफ की मौत पर चुप्पी ,जिस तरह हर जुल्म के खिलाफ प्रियंका गांधी मुखर थी संघर्षरत दिख रही थी वह अल्ताफ की मौत पर नहीं दिखी उन्होंने इस बारे में खामोशी का मुखौटा पहनना ज्यादा बेहतर समझा न वह कासगंज गई न अल्ताफ की सहायता के लिए कोई घोषणा न कोई जंग जिसने साफ संदेश दिया कि कांग्रेस ने अपना रास्ता सॉफ्ट हिंदुत्व को ही चुन लिया है और अपना पुराना रास्ता सेक्युलरिज्म को जल समाधि दे दी है।
वहीं इससे जनमानस में एक संदेश और गया और वह यह था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ नूरा कुश्ती कर रही है उसने समाजवादी को वॉकओवर दे दिया है और खुद 2024 के मध्यावधि चुनाव की तैयारी में लगी हुई है हालांकि यह कांग्रेस की बड़ी भूल है क्योंकि समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी को और मजबूती ही मिलेगी यह पिछले अनुभव बताते हैं ऐसे में कांग्रेस को नुकसान की संभावना अधिक है।
वहीं कांग्रेस के इस कारनामे के बाद तेजी से संदेश आम हो गया और मुसलमान कहीं न कहीं नाराजगी के बावजूद भी समाजवादी पार्टी के साथ लामबंद है और अब इसका मुज़ाहरा भी हो रहा है अखिलेश की सभाओं और यात्राओं में जिस तरह की भीड़ आ रही है उसने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि उत्तर प्रदेश की लड़ाई सिमट कर सपा और बीजेपी के बीच ही आ गई है।
लेकिन बीजेपी ने कृषि कानूनों को जिस तरह वापिस लेकर अपना पासा फेंका है उससे सियासत करवट बदल सकती है ,महंगाई,पुलिसिया दमन,और किसानों की नाराज़गी ने जो समा बांधा था उसमें पलीता भी लग सकता है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में इस समय सारा दारोमदार राष्ट्रीय लोकदल के रुख पर है 21 नवंबर को अखिलेश यादव और जयंत चौधरी गठबंधन का औपचारिक ऐलान करने वाले हैं लेकिन उससे पहले यह जो नया खेल सामने आया है उसने कहीं न कहीं शंकाओं को जन्म दिया है।
अब जब तीनों कृषि कानून वापिस हो गए हैं ऐसे में जब राकेश टिकैत लखीमपुर कांड के बाद शक के दायरे में चल रहे हैं और अगर अब बीजेपी से अपनी नाराज़गी खतम होने का ऐलान कर देते हैं और जयंत केंद्र में केंद्रीय मंत्री का पद स्वीकार करते हैं तो कोई हैरानी नहीं होगी क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर ही जाटों में बीजेपी से नाराज़गी थी अब वह वजह खतम तो नाराज़गी भी ऐसे में जाटों को बीजेपी के साथ जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी ,वहीं जयंत का सपना साकार हो सकता है ,बीजेपी आरएलडी को सम्मानजनक सीट भी दे देगी और केंद्रीय मंत्रिमंडल में जयंत को जगह भी अगर कृषि मंत्रालय ही दे दिया जाए तो भी हैरानी नहीं।
अगर ऐसा होता है तो पश्चिम से हवा बदलेगी जो पूरब तक जाएगी उसके बाद यह चुनाव बीजेपी के लिए उतना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है।
यूनुस मोहानी
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