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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं लिहाजा सरगर्मियां भी तेज हैं अभी सत्ताधारी दल जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख पद पर चिरपरिचित सरकारी दबंगई के बल पर दर्ज की गई जीत को जनकल्याणकारी योजनाओं और सुशासन का फल बता रहा है हालांकि सच सभी जानते हैं वैसे इस बार एक नई चीज भी देखने में आई कि जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में जीत के बाद प्रधानमंत्री तक ने बधाई दी और सरकार द्वारा कही गई बात को दोहराया।
यह भी सच है कि सरकारी तंत्र द्वारा सुनिश्चित इस लोकतांत्रिक जीत से सरकार की फजीहत भी खूब हुई लिहाज़ा अब पेश है आपकी खिदमत में नया खेल जिसे नाम दिया गया है “उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021” जी हां जनसंख्या नियंत्रण कानून इस कानून को लाने से पहले एक माहौल तैयार किया गया है जिससे साफ संदेश चला जाए कि यह कानून प्रदेश में रहने वाले लगभग 22% मुसलमानों पर नकेल कसने के लिए लाया जा रहा है,इस कानून के आने से जो उत्तरप्रदेश में मुसलमानों की आबादी बेतहाशा बढ़ रही है उसे रोका जायेगा जिससे हिंदू समाज को खतरे से बचाया जा सके ।

देश में यह झूठ पहले ही सच की तरह स्थापित किया जा चुका है कि देश में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और हिंदुओं की संख्या कम हो रही है जबकि सवाल यह है कि आखिर मुसलमानों की आबादी अगर इतनी तेज बढ़ रही है तो अभी तक देश में मुसलमानों का प्रतिशत क्यों नहीं बढ़ा वह एक ही जगह कैसे रुका हुआ है ? खैर जाने दीजिए किसी तार्किक सवाल का कोई मतलब नहीं है आइए अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तैयार जनसंख्या नियंत्रण कानून की ,आखिर इससे क्या बदलेगा ?
उत्तर प्रदेश नीति आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण हेतु एक कानून का ड्राफ्ट तैयार करके भेज दिया गया है जिसका नाम” उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021″ अब सरकार ने आम जनता से 19 जुलाई 2021 तक इस कानून पर राय मांगी है उसके बाद इसे विधानसभा से पारित कर दिया जाएगा अब इस कानून को लेकर आम जनता में बहस छिड़ गई है।
हालांकि इस पूरे ड्राफ्ट को गंभीरता से पढ़ने के बाद और आजादी के 70 सालो के बाद आज तक मुसलमानों के देश में हालात पर नजर डालने से कहीं से भी यह कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नजर नहीं आता जैसा कि इसे प्रचारित किया जा रहा है। इस कानून के अनुसार यदि किसी के 2 से अधिक बच्चे हैं तो उसे सरकारी योजनाओं में कोई लाभ नहीं दिया जायेगा, ऐसा व्यक्ति जिसके दो से अधिक बच्चे हैं वह पंचायत चुनाव या निकाय चुनाव नहीं लड़ सकेगा,अब बात करते हैं मुस्लिम समाज की जैसे जैसे मुसलमानों में जागरूकता बढ़ रही है वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत गंभीर हो रहे हैं ऐसा देखा जा रहा है कि उनमें शिक्षा को लेकर जागरूकता काफी हद तक बढ़ी है।

मुस्लिम समाज में बाल विवाह का प्रतिशत भी काफी तेजी से नीचे गिरा है और शहरी इलाकों में तो लगभग यह प्रचलन से बाहर हो चुका है जिस कारण भी मुसलमानों में ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रजनन दर तेजी से घटी है जो उत्तर प्रदेश में 2001 में 4.8 थी वह 2011 में घट कर 2.9% हो गई और लगातार घट रही है ।

यह बात तो हो गई मुस्लिम समाज की जनसंख्या की अब बात करते है मुसलमानों के असली हालात पर एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की कुल आबादी में मात्र एक लाख चौतीस हज़ार तिरपन (1,34,053) लोग ही विभिन्न सरकारी नौकरियों में हैं सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 77% मुसलमान अपनी जीविका विभिन्न प्रकार के छोटे मोटे काम करके कमाते हैं और उसमें सरकार का कोई योगदान नहीं होता ,सरकारी योजनाओं में भी मुसलमान काफी पिछड़े हैं और जानकारी के आभाव में या अफसरशाही की भेंट चढ़ कर उनको योजनाओं का लाभ भी कम मिलता है। इस कानून के लागू होने से जिन अभिभावकों के दो से अधिक बच्चे होंगे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा और न ही उन्हें सरकारी नौकरी मिलेगी ।

अब सवाल यह है कि जहां तक नौकरी का सवाल है वह मुसलमानों को अभी भी नहीं मिल पा रही हैं और दूसरी बात यह है कि जो बच्चे नौकरी के लिए तैयारी करते हैं उनकी शादी बहुतायत नौकरी लगने के बाद होती है ऐसे में यह कानून नौकरी पाने में मुसलमानों के आड़े नहीं आने वाला और रही सरकारी योजनाओं की बात तो वह इस कानून के न होते हुए भी मुसलमानों के दरवाजे नहीं पहुंच पाई हैं आज भी बड़ी संख्या में मुसलमानो के घर शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था न होना इसका उदाहरण है तो इस प्रकार यह कानून पूरी तरह से मुसलमानों के कतई खिलाफ नहीं है बल्कि इसमें मुसलमानों के लिए भलाई है क्योंकि देश और प्रदेश में मुस्लिम समाज लिंग अनुपात के मामले में अन्य समुदायों के मुकाबले काफी बेहतर है जबकि अन्य समुदायों में लड़के और लड़कियों के अनुपात में काफी बड़ा गैप है ऐसे में मुसलमानों को इस कानून के अनुसार कई सारी सुविधाएं मिलेंगी और उनके लिए नए मौके खुलेंगे।

वहीं इस कानून से सबसे बड़ा खतरा दलितों आदिवासियों और अतिपिछड़ों को होगा क्योंकि इन वर्गों में अभी जागरूकता की बहुत कमी है बाल विवाह का प्रचलन भी है इस कानून के बाद सीधे तौर से इन वर्गों के लोगों को उनके आरक्षण से वंचित होना पड़ेगा आरक्षण के आधार पर न तो उन्हें नौकरी मिलेगी और न कोई अन्य सरकारी सुविधा ऐसे में सीधे तौर पर यह कानून इन समुदायों को सीधी चोट देने वाला होगा ।

जबकि मुसलमानों के लिए इस ड्राफ्ट का मौजूदा स्वरूप किसी भी प्रकार से घातक नहीं जान पड़ता जबकि अनुसूचित जाति एवं आदिवासियों के आरक्षण पर इसके माध्यम से सीधे रोक लगती दिखाई देती है वहीं इस कानून के माध्यम से महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ने और कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

ऐसे में इस कानून के आने के बाद ऐसी महिलाओं की स्तिथि बहुत दयनीय हो सकती है जिन्होंने दो लड़कियों को जन्म दिया हो जहां एक ओर इस कानून से प्रदेश की जनसंख्या को नियंत्रित किए जाने की बात है वही इसके माध्यम से आरक्षण पर भी अंकुश लगता जान पड़ता है।इस कानून को कट्टरपंथी संगठनों द्वारा मुस्लिम विरोधी प्रचारित किया जा रहा है जबकि सीधे तौर पर जिन लोगों को इस बात के जरिए गुमराह किया जा रहा है वही इसके सीधे निशाने पर हैं ।

कुल मिलाकर अभी यह ड्राफ्ट पूरी तरह से मुस्लिम समाज के लिए हितकारी है और उनके खिलाफ इसमें कुछ भी नहीं है लिहाजा पूरे मुस्लिम समाज को खुले मन से इसका स्वागत करना चाहिए इसके दो बड़े फायदे होंगे पहला यह कि नफरत को हवा देने वालों की हवा निकलेगी और दूसरा यह कि हमारे समाज में जागरूकता बढ़ेगी और फायदा होगा।
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

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