बिकाऊ रहनुमा और बेईमान कयादत से पल्ला झाड़ने का वक़्त – पार्ट 2

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देश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं वह एक दिन में नहीं हुआ उसके पीछे मुखालिफ की लगातार मेहनत और हमारे कयादत की ज़मीरफरोशी का एक लंबा अभी तक न रुकने वाला सिलसिला है यह बात अब किसी से नहीं छुपी है, एक तरफ वह सियासी बिकाऊ रहनुमा रहे हैं जिन्होंने सिर्फ अपने ओहदे बचाने के लिए कौम की बात को उठाना या उसके हक के लिए लड़ना अपना नुकसान जाना वहीं खुद को मज़हबी कायद कहलवाने वाले लोग अटैची पॉलिटिक्स के जरिए कौम की अकीदत और भरोसे को सियासी आकाओं के हाथों बहुत कम दामों में बेचते रहे।
नतीजा यह रहा है कि आम मुसलमान परेशान रहा और यह महल बदलते रहे लंबी गाडियां विदेशों की सैर इनके हिस्से में रहीं ।
और यह सिलसिला अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है हालांकि अब उम्मीद बंधी है और लोगों की आंखों से चश्मा उतरना शुरू हो गया है नेतृत्व ने यूनिवर्सिटियों की तरफ रुख कर लिया है और अब खुले मंचों से अटैची पॉलिटिक्स करने वालों को बेनकाब किया जा रहा है वहीं समय की इस करवट ने मुसलमानों को बेदार कर दिया है ।
इस अनुसार देखा जाए तो भारत में भारतीय जनता पार्टी की हुकूमत आने के बाद से मुसलमानों का बड़ा फायदा हुआ है हालांकि मेरी इस बात से आपको हैरत होगी लेकिन यह कड़वा सच है अगर देश में पहले की ही भांति कथित सेक्युलर दलों की सरकार होती तो हम इस गड़बड़झाले को समझ नहीं पाते और उस समय इस तरह की अवामी सतह पर बात शायद नहीं सुनी जाती और लोग लगातार सबूत मांगते। हालांकि सबूतों की कोई कमी नहीं है वक़्त आने पर दिए भी जायेंगे।
2014 के बाद से धीरे धीरे जब गलतफहमियों के बादल छटे तो नक़ाब खुद बखुद उतरते चले गए और गावों तक फैले इस जाल को लोगों ने नंगी आंखों से देखा मुझे यह बात कहने में कोई संकोच नहीं कि लगभग सभी फिरकों के अलंबरदारों की हकीकत बाहर आने लगी और यहां तक कि मुखर विरोध भी शुरू हुआ ऐसे लोगों को लोगों ने नकारना शुरू कर दिया और ज़कात फाउंडेशन जैसी संस्थाओं की सराहना होने लगी जो ज़मीन पर तरक्की के माडल को उतारने में कामयाब हुई।
हालांकि अब इन बातों पर चर्चा कर समय बर्बाद करना है क्योंकि लोग जागरूक हो चुके हैं और बिना ज़रूरत खुलासों में कोई फायदा नहीं अब समय की मांग ईमानदार कयादत है उम्मत को एकजुट होकर भारत के पंथनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करना होगा और किसी भी हाल में सिंबल की मोहब्बत को छोड़ना होगा यानी मुसलमानों को दलगत राजनीति के जाल से भी बाहर आना होगा और ईमानदार सेक्युलर विकल्प के लिए नई रणनीति पर काम करना होगा।
यहां एक बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि किसी भी तरह की धर्म या जाति आधारित पार्टी को प्रोत्साहन हमारे लिए खुदकुशी करने जैसा होगा और हम ऐसा करके सिर्फ अपने विपक्षी को और ताकत देंगे ।
क्योंकि लोकतंत्र में सरों का महत्त्व है और 80 बनाम 20 की जंग के लिए आपको प्रोत्साहित करने वाले आपके दुश्मन हैं बल्कि यही बिकाऊ रहनुमा और बेईमान कयादत के झंडाबरदार है अब सवाल है कि हम ऐसे में क्या कर सकते हैं?
इस सवाल को ही हमें सर से सर जोड़ कर पहले समझना है फिर हल करना है हालांकि एक सुझाव यह है कि हैं प्रदेशों की उन सीटों पर जहां हमारा प्रतिशत 50% तक या ऊपर है वहां किसी दल को जो कमजोर हो यह एक ख़ास बात है कि वह दल कमजोर हो और यही रास्ता है का समर्थन करके हर उस सीट पर उसके उम्मीदवार की जितवा दें पहले तो ऐसा करने में एक फायदा यह होगा कि उस दल में ईमानदार लोगों को टिकट दिलवाने में कोई परेशानी नहीं होगी दूसरी बात यह कि उसका नेतृत्व सेक्युलर बना रहेगा।
ऐसा प्रयोग बिहार में करने पर मुसलमानों के हाथ अवसर आ सकता है फिर इसे अन्य प्रदेशों में दोहराया जा सकता है क्योंकि बिहार में कम से कम 50 सीटों पर इस प्रयोग के सफल होने की प्रबल संभावना है। अगर ऐसा होता है तो यह अभी कमजोर दिखने वाला दल सत्ता की चाभी अपने हाथ में लेगा और इसके बिना हुकूमत बनना मुश्किल हो जायेगा वहीं पार्टी नेतृत्व अपनी मनमानी नहीं कर सकेगा क्योंकि उसके अधिकतर लगभग 80% विधायक मुस्लिम होंगे ऐसा होने पर आप बैंक डोर से सत्ता में अपनी शर्तों पर शामिल होंगे और 70 सालों से चले आ रहे धोखे से उबर पाऐंगे।
यहां एक बात और समझनी होगी कि चुनाव के समय मुसलमानों को बिल्कुल चुप्पी साधनी होगी और परिणाम आने तक इस चुप को बरकरार रखना होगा वहीं इन बिकाऊ मंडली की कोई आवाज़ नहीं सुननी होगी अगर कोई अटैची पॉलिटिक्स करने वाले आते हैं तो उनसे साफ कहना होगा कि आप खुद चुनाव में उतारिए आपको वोट देंगे वरना ख़ामोशी बेहतर है वहीं राजनैतिक दलों की गाड़ियों में नजर आने वाली टोपियों की ख़ास तौर से पहचान लीजिए अपनी सफों से मुखबिरों का बहिष्कार कीजिए वरना ज़िन्दगी भर सिर्फ बिकाऊ रहनुमा और बेईमान कयादत आपकी भावनाओं की कमाई खाती रहेगी।…………… जारी

यूनुस मोहानी
8299687452, 9305829207
younusmohani@gmail.com

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