इस दर्दनाक वारदात का पूरे पाकिस्तान के बच्चे पर ऐसा असर पड़ा कि मेरा 14 वर्षीय बेटा अपनी माँ से पूछ रहा था कि अगर वे मेरे स्कूल में भी आगए तो मै क्या करूँगा। लाइन लगा कर खड़ा रहूँ या भागने की कोशिश करूँ?

इस दिन ने पाकिस्तान और पुरे विश्व को हिला कर रख दिया । मासूम बच्चो को मारने की खबरें दुनियाभर के समाचार चैनलों में मुख्य समाचार के रूप में दिखाई जा रही थी। जनमानस सदमे में और गुस्सा से भड़क रहा था।

अगले ही दिन 17 दिसम्बर को पूरे पाकिस्तान में बंद और हड़ताल का माहौल था। एक ऐसी हड़ताल जिसे किसी राजनैतिक पार्टी द्वारा नहीं घोषित किया गया और जिसके पीछे यह मकसद नहीं था कि वे पूरे पाकिस्तान को बंद कर अपना उल्लू सीधा कर सकें। यह देश के सबसे बड़े आंदोलनों मे से एक था जब पूरे पाकिस्तान की दुकाने, परिवहन व्यवस्था और सभी संस्थान एक साथ बंद थे।  यह उस समय की याद दिलाता है जब 2007 में बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की गई और पूरा देश शोक और गुस्से से भरा हुआ था।

तथाकथित मुख्य प्रतिद्वंदी भारत के हर स्कूल में २ मिनट का मौन रखा गया। साथ ही संसद ने भी घटना की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया।

ठीक उसी दिन पाकिस्तान के सभी राजनैतिक दलों के नेताओं ने पेशावर में बैठक की जहाँ उन्होंने कट्टरवादियों से “एकसाथ” लड़ने के लिए बिना मानसिकता में बदलाव और बिना योजना के बात की। आखिर वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?

इस मीटिंग में इमरान खान भी थे जिनकी पार्टी खैबर पुख्तोंखावा में सरकार में भी है। पेशावर इसी इलाके में पड़ता है। वे सरकार को उखाड़ फेकने के लिए लगातार अलग जगहों पर धरना दे रहे थे बिना अपने राज्य में लोगो की सुरक्षा का ख्याल किए हुए।

इमरान खान की “अच्छे और बुरे” तालिबान की थ्योरी का मतलब था की इन जनजातीय क्षेत्रों में सुरक्षित स्वर्ग बनाकर बैठे हुए कट्टरपंथियों पर कोई कार्यवाही न की जाए। वे “अच्छे तालिबान” से बातचीत के सबसे बड़े समर्थक हैं और उनका मानना है की इससे चरमपंथियों को बांटा जा सकता है। कोई अच्छा या बुरा तालिबान नहीं है। वे सब फासीवाद सोच की ही उपज हैं।

सत्तारूढ़ मुस्लिम लीग का इन धार्मिक कट्टरपंथियों से पुराना रिश्ता रहा है और इस रिश्ते का फायदा उठाकर वे 2013 में चुनाव जीतने में सफल हुए। इन कट्टरपंथियों ने पीएमएलएन और पीटीआई के उम्मीदवारों पर लगातार हमले किए जिसके कारण वे चुनाव प्रचार नहीं कर पाए।

उसी मीटिंग में जमात इस्लामी के नेता भी थे जिनके पूर्व अध्यक्ष ने मरे हुए तालिबानियों को शहीद की उपाधि दी थी। उस मीटिंग में इन कट्टरपंथी ताकतों के एक धड़े की राजनैतिक पार्टी जमीअत उलेमाई इस्लाम भी थी। साथ ही ऐसी अन्य राजनैतिक पार्टियाँ भी थी जो लगातार जिहादी विचारधारा की समर्थक रही हैं और इन चरमपंथी दलों के साथ सबंधित भी।

मीटिंग के अन्त में सभी ने फैसला लिया की एक हफ्ते के अन्दर प्रदेश के लिए नई सुरक्षा नीति इज़ाद की जाएगी जैसे की एक सप्ताह में कोई जादू की छड़ी इन पार्टियों के हाँथ में होगी।

पाकिस्तान की सरकार धार्मिक कट्टरपंथियों के इस बढ़त को रोकने में नकामयाब रही है। राज्य के मन में इनके लिए एक नरम रुख हमेशा रहा है। बहुत लम्बे समय से राज्य इन्हें सुरक्षा दल के प्रतिनिधि के रूप में देखती रही है। इस सुरक्षा बल का एक ही एजेंडा रहा है और वो है भारत का विरोध करना। देश में इस इस्लामीकरण की शुरुआत सेना के तानाशाह जिया उल हक ने अमरीकी साम्राज्यवाद के मदद से की थी।

साम्राज्यवादी ताकतों की मदद से राज्य और सेना ने जिहादियों की मदद करने के अलावा करोड़ो रूपए भी जमा किए हैं ताकि वे इसका इस्तेमाल संकुचित इस्लामिक सोच को बढने और अपना उल्लू सीधा करने में लगा सकें।

1980 से पिछले तीन दशकों को मदरसों के दशकों के नाम से जाना जाता है। आज लगभग 20,000 से अधिक मदरसे आत्मघाती दस्तों को तैयार करने का काम करते हैं। सऊदी अरब और वापस लौटे लाखों अप्रवासीय मुसलमानों की मदद से ये मदरसे स्कूल व्यवस्था के विकल्प बन गए हैं। पाकिस्तान और बाहर जितनी भी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, सभी का राजनैतिक और संगठनात्मक ढांचा इन्ही मदरसों में तैयार किया जाता है।

9/11 के बाद, राज्य का कट्टरपंथियों के साथ रिश्तों में  दूरियां तो आई हैं पर यह टूटा नहीं है। प्रतिबंधित आतंकी संगठनो ने अपना नाम बदल के इन गतिविधियों को जारी रखा है। वे मीटिंग,पब्लिक रैली करते हैं,  फंड इकठ्ठा करने के साथ ही अपने दस्तावेज़ भी प्रकशित करते हैं। सरकार इस पर कुछ कदम नहीं उठाती।

पाकिस्तान दिन प्रति दिन इस्लामिक विचारधारा की वजह से संकुचित और दक्षिणपंथी होता जा रहा है।धर्म के विरोधियों के लिए बने कानून का इस्तमाल व्यक्तिगत और वैचारिक मतभेद को साधने के लिए किया जा रहा है। धार्मिक अल्पसंख्यक, औरते और बच्चे सबसे आसान लक्ष्य हैं। ये मासूम दक्षिणपंथी सोच के बढ़ोतरी का जुर्माना भर रहे हैं।

धार्मिक कट्टरपंथ ने न केवल प्रगतिशील ताकतों के सामने सवाल खड़ा किया बल्कि आधुनिक समाज के बुनियादी ढांचे को भी हिलाने का काम किया है।  स्वास्थ्य और शिक्षा इन कट्टरपंथियों के सबसे आसान लक्ष्य हैं।

पोलियो के कार्यकर्ता जिसमे मुख्यतः औरते शामिल हैं, इन कट्टरपंथियों का निशाना बन रही। इनका मानना है कि पोलियो के उन्मूलन के लिए काम कर रही टीम के ही कारण ओसामा बिन लादेन का पता चला जिसके कारण उसकी ‘हत्या’ की गई। इसका नतीजा ये निकला है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन सभी पाकिस्तानी नागरिकों की विदेश यात्रा पर रोक लगाने की बात कही है जिनके पास पोलियो वैकसीनेशन का प्रमाणपत्र नहीं है।

पंजाब और खैबर पुख्तोंखावा के प्राइमरी स्कूलों में धर्म के नाम पर पाठ्यक्रम को ऐसा बनाया गया है कि उसमे अवैज्ञानिक और जिहादियों को समर्थित करती बातें आ सके। अत्यधिक स्कूलों में जंग को छेड़ने वाली विचारधारा को पढाया जा रहा है।

धार्मिक कट्टरपंथ फासीवाद का नया चेहरा है। ये फासीवाद की तरफ बढ़ता हुआ कदम है। इनमे फासीवाद के सभी गुण मौजूद हैं। इन्होने पढ़े लिखे मध्यम वर्ग में एक जगह बना ली है। वे मजदूर संगठन और सामजिक आन्दोलन के भी खिलाफ हैं। वे औरतों को आदमी से कमजोर समझते हैं और उन्हें घर की चार दीवारों में कैद करना चाहते हैं। अल्पसंख्यकों पे हमला करना तो इनके पेशा बन गया है।

ये अन्तराष्ट्रीय भी हैं। वे पूरे विश्व को इस्लामिक राष्ट बनाना चाहते हैं। वे प्रजातंत्र के खिलाफ हैं और खिलाफत की सरकार चाहते हैं। वे इस्लामिक स्टेट और तालिबान के रूप में विश्व के सबसे क्रूर आतंकी चेहरे हैं। उनकी सोच में कुछ भी प्रगतिशील नहीं है। वे साम्राज्यवाद के खिलाफ नहीं पर अमरीका और पश्चिमी देशों के विरोधी हैं। उन्होंने आत्मघाती हमलों, बम ब्लास्ट, सामूहिक हत्या के नाम पर बड़े ही विभत्स आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया है।

इनका जवाब देना होगा। अमरीका ने जो “आतंक के खिलाफ” लड़ाई जारी की थी, वह विफल साबित हुई है। अमरीका के कब्जे, “प्रजातंत्र की बहाली” के नाम पर किए गए हमलों के बावजूद ये कट्टरपंथी लगातार बढ़ते ही जा रहे।

ये 9/11 के बाद अफगानिस्तान के कब्जे के बावजूद और मज़बूत हुए हैं।

एक नए तरीके की जरुरत है। सरकार को इनसे अपने सारे संबंध तोड़ने होंगे। यह सोच कि, “वे अपने भाई, अपने लोग, अपनी सुरक्षा व्यवस्था का एक हिस्सा हैं, वे हिन्दुओं के खिलाफ लड़ाई का जरिया हैं, उनमे कुछ सही है और कुछ गलत हैं, इन सभी बातों को किनारे रखना होगा। कपटसंधि साजिश इन दक्षिण पंथियों का सबसे आसान बहाना रहा है। वे सच्चाई से दूर भाग रहे हैं।

इस कट्टरपंथी सोच को खत्म करने का कोई छोटा रास्ता नहीं है। कोई सैन्य कार्यवाही भी उपाय नहीं है।यह राजनैतिक लड़ाई है जिसे शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं में बदलाव लाकर लड़ना होगा। इसकी शुरुआत मदरसों के राष्ट्रीकरण से करनी होगी। मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन व्यवस्था को लागु करना इस दक्षिणपंथी सोच से लड़ने का पहला कदम होगा।

ये कट्टर दक्षिणपंथी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। मेहनतकश वर्ग की मदद से खड़ा किया गया एक ऐसा राजनैतिक विकल्प जिसमे मजदूर यूनियन  का भी समावेश हो, इस सोच से लड़ने का एकमात्र तरीका है।

(फारूक तारिक पाकिस्तान की आवामी वर्कर्स पार्टी के महासचिव हैं)

(अनुवाद- प्रांजल)

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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