घर के चिराग से लगेगी नीतीश की सत्ता में आग ?कौन बढ़ायेगा फूल का तेज ??

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यह सवाल पटना से निकलकर दिल्ली होता हुआ वापिस बिहार के सुदूर गावों तक पहुंच गया है और पल पल बदलते राजनैतिक समीकरण इस सवाल को और अधिक बल दे रहे हैं ,जिस तरह चुनावी मौसम केंद्र के निदेशक मौसम विज्ञानी रामबिलास पासवान के सुपुत्र चिराग पासवान ने तेवर दिखाए और सीधे तौर पर नीतीश कुमार को ललकार लगाई इससे एक बात तो साफ समझ आती है कि चुनावी हवा बदली है।वहीं इससे जो दूसरे स्पष्ट संकेत मिलते हैं वह यह है कि चिराग का मौजूदा पॉलिटिकल स्टंट बीजेपी द्वारा निर्देशित है क्योंकि चिराग ने जिस तरह लगातार ग्रह मंत्री से मुलाक़ात करने के बाद फैसला किया कि वह बीजेपी के विरूद्ध चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि जदयू के सभी उम्मीदवारों के विरूद्ध अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे इससे एक बात साफ होती है कि चिराग अपने पासवान समाज को यह संदेश दे रहे हैं कि उन्हें जदयू के उम्मीदवारों को वोट नहीं देना है जबकि जहां बीजेपी उम्मीवार मौजूद हो वहां वोट करना है इससे नितीश को सीधे तौर पर नुकसान होगा।
हालांकि ज़मीन पर भी बीजेपी और ख़ास तौर से संघ ने काम किया है वह भी यही है कि बीजेपी की अकेली सरकार आये बिना बिहार में बीजेपी का एजेंडा उत्तर प्रदेश जैसा लागू कर पाना संभव नहीं है इसके लिए बीजेपी को मजबूत कर जदयू को कमजोर करना होगा ऐसा होने पर मुख्यमंत्री बीजेपी का बनेगा और फिर सरकार बीजेपी के अनुसार चलेगी यह बात आम लोग भी कर रहे हैं बीजेपी के पारंपरिक वोटर यह बात खुले आम कर रहे हैं साथ ही नीतीश की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
लोक जनशक्ति पार्टी जिस तरह जदयू पर हमलावर है वह इसी रणनीति का हिस्सा है जिसके जरिये नितीश पर निशाना साधा जा रहा है लोगों में यह विश्वास पैदा करने की कोशिश की जा रही है कि नितीश की वजह प्रदेश में भ्रष्टाचार बढ़ा है इसलिए अब नितीश को जनता बाहर का रास्ता दिखाये और बीजेपी के नेतृत्व में ईमानदार सरकार बनाई जाये।
यह तो किस्सा है नितीश के घर एनडीए में मौजूद चिराग का जिससे उनके ही सपनों को आग लगाने की कोशिश हो रही है यह बात भी सही है कि नितीश कुमार इस पूरे खेल को बखूबी समझ रहे हैं लेकिन परिस्थिति ऐसी है कि उनके पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है अगर वह बीजेपी से रिश्ता तोड़ते हैं तो कांग्रेस प्रदेश में इतनी मजबूत नहीं है और उनका पिछला पलटी मार इतिहास भी इसमें रोड़ा है ,वहीं नितीश ज़मीन पर अकेले इतने मजबूत नहीं है कि वह अकेले ताल ठोक सकें। लेकिन नितीश ने अपने स्तर पर पूरी कोशिश की है यही वजह है कि पटना की सड़कें प्रधानमंत्री मोदी के साथ नितीश कुमार की बड़ी बड़ी होर्डिंग्स से भरी गई,प्रचार में लगातार मोदी को नितीश के साथ दिखाया जा रहा है ताकि आम मतदाता जोकि अंदुरूनी खेल को नहीं समझता बीजेपी के साथ के चलते जदयू के प्रत्याशी को वोट करे और पर्दे के पीछे चल रही राजनीत का उसपर प्रभाव न पड़े।
यह तो मौजूदा बिहार सरकार के घटक दलों का खेल चल रहा है वहीं एक नई हवा भी चल रही है वह यह है कि लालू पुत्र तेजस्वी अपने सहयोगियों को अधिक महत्त्व देते नहीं देखे जा रहे हैं ,और वह यह चुनाव पूरा अपने चेहरे पर केन्द्रित कर चुके हैं जिस तरह उन्होंने सहयोगी दलों के साथ सीट बांटी उससे साफ संकेत मिलता है कि राजद चुनाव के बाद अभी साथ चुनाव लड़ रहे दलों को साथ नहीं रखना चाहते या तो वह अकेले सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं या फिर चुनाव के बाद नितीश की जगह भी लेे सकते हैं ।
हालांकि अभी यह बात हजम करना आपको थोड़ा मुश्किल जरूर लगेगा लेकिन न्यू इंडिया की न्यू पॉलिटिक्स में यह संभव है इसकी राह शिवसेना ने दिखाई है और यदि महाराष्ट्र बिहार में दोहराया जाता है तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी शायद यही वजह रही कि राजद लगातार मुस्लिम चेहरों से दूरी बनाकर सिर्फ उनका वोट हासिल करने पर फोकस किये हुए है इन संभावनाओं को और अधिक बल तब मिल सकता है यदि राजद सुप्रीमो लालू यादव को आगामी 9 अक्टूबर को चायबासा कोषागार केस में ज़मानत मिल जाती है लालू को दुमका कोषागार मामले में पहले ज़मानत मिल चुकी है और यदि उनकी जमानत होती है तो बिहार चुनाव में लालू बिहार में प्रचार करते दिखेंगे जिसका बड़ा असर होगा।
जबकि न्यायालय की प्रक्रिया का सत्ता या किसी दल से कोई संबंध नहीं होता और वैसे भी इस मामले में जो 5 साल की सज़ा हुई है उसका आधा भाग 30 महीने में मात्र 26 दिन पहले यह सुनवाई हो रही है तो न्यायालय उनकी जमानत मंजूर कर सकता है लेकिन हाल के दिनों में जनमानस में जिस तरह का भाव जन्मा है उसमें अदालत के फैसलों को सत्ता की मंशा से जोड़ कर देखा जाने लगा है जो बिहार में चुनाव के दौरान लालू की वापसी पर भी होगा जबकि न्यायालय के फैसले साक्ष्यों एवम परिस्थितियों के आधार पर ही किए जाते हैं लेकिन राजनैतिक गलियारों में इसके कुछ और मायने निकाले जा रहे हैं एक खबर अस्पष्ट रूप से पटना में घूम रही है कि तेजस्वी ने बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा से लंबी मुलाक़ात की है हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है यह कहना मुश्किल है क्योंकि चुनावों के दौरान ऐसी कई अफवाह उड़ती है लेकिन इससे पूरी तरह इंकार भी नहीं किया जा सकता क्योंकि लालू परिवार पर जिस तरह का कानूनी शिकंजा है ऐसे में इन संभावनाओं को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता।
चुनाव परिणाम आने के बाद यदि आरजेडी बीजेपी के साथ सरकार बनाती है तो इसमें कोई हैरान करने वाली बात नहीं होगी ऐसा मानना भ्रम से अधिक नहीं है कि मुस्लिम वोटों की लालच में आरजेडी ऐसा नहीं कर सकती ,जबकि समीकरण कहते हैं कि आरजेडी के यादव वोटरों को बीजेपी से कोई बैर नहीं है, रही बात मुस्लिम वोटर की तो लगभग 19% मुस्लिम वोटरों में 5% जदयू के साथ और 3 से 4 प्रतिशत कांग्रेस सहित मीम और कुछ अन्य दलों में बंटा रहता है ऐसे में आरजेडी के पक्ष में सिर्फ 10% मुस्लिम वोट ही होता है यदि आरजेडी बीजेपी के साथ जाती है तो इस वोट की भरपाई अब तक मुस्लिम फैक्टर के चलते आरजेडी से दूरी बनाये हुए अन्य समाज के लोगों के वोट से होने की पूरी संभावना है वैसे भी धीरे धीरे आरजेडी से मुसलमानों का मोह भंग होता जा रहा है और आने वाले समय में मुस्लिम समाज दूरी बना सकता है, ऐसे में यह विकल्प आरजेडी के लिए ज़्यादा फायदेमंद है। और इस विकल्प के जरिये जहां सत्ता मिलेगी वहीं राहत भी ऐसे में सवाल किया जा सकता है कि नितीश की सत्ता को चिराग फूंक देना चाहते है क्या ? और कमल का तेज कौन बढ़ायेगा ?
यूनुस मोहानी
9605829204,8299687452
younusmohani@gmail.com

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