2019 आम चुनाव में उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण कुलमिलाकर मुसलमानों के इर्द गिर्द ही घूम रहे हैं यही वजह है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने इनके बिखराव को देखते हुए गटबंधन कर लिया है इस गटबंधन के ज़रिये जहाँ वह अपने जातीय वोटों को विजयी का विश्वास दिलाकर अपने साथ बांधे रखना चाहते हैं वहीँ मुसलमानों को भी अपने साथ दलित और यादव वोटों का समीकरण दिखा कर यह बता रहे हैं कि यही जीत का एक विकल्प है क्योंकि यहाँ जहाँ बहुजन समाज पार्टी का 21% दलित वोट है वहीँ 9% यादव वोट भी है जो मुसलमानों के लगभग 20% के साथ मिलकर 50% होता है जिसे कोई हरा नहीं सकता .

हालाँकि यह देखने में बहुत आसान है और सच भी है कि अगर ऐसा हो जाये तो कोई हरा ही नहीं सकता और उत्तरप्रदेश में जहाँ जहाँ यह गटबंधन है यानि 78 सीटों पर वहां यही जीत दर्ज करेगा और बाक़ी जिन 2 सीटों को इसके द्वारा कांग्रेस के लिए छोड़ा गया है वह जीत लेगी और कुल मिलकर बीजेपी के हाथ शून्य लगेगा .

लेकिन यह इस प्रकार होना असंभव सा है क्योंकि चुनावी गणित इतनी सीधी नहीं है और इसमें 2 और 2 मिलकर 4 ही हों यह ज़रूरी नहीं है कभी यह 8 भी हो सकते है और कभी 1 भी अभी तक का उत्तरप्रदेश का जो राजनैतिक ट्रेंड रहा है उसमे मायावती का वोट तो उनके द्वारा शिफ्ट कराया जाता है लेकिन बसपा को दूसरी पार्टियों का वोट चला जायेगा ऐसा होने में दुविधा रही है .

अगर ऐसा होता है तो बसपा 38 सीटों पर अकेले लड़ने वाली स्थिति में आ जाएगी वहीँ समाजवादी पार्टी को खुला फायेदा होगा क्योंकि कांग्रेस गटबंधन का हिस्सा नहीं है और चाचा शिवपाल सिंह यादव भी अलग पार्टी बना चुके हैं ऐसे में अगर कांग्रेस शिवपाल के साथ गटबंधन करती है तो जिन 38 सीटों पर बसपा चुनाव मैदान में होगी जो  यादव वोटर के पास विकल्प होगा और वह कांग्रेस के गटबंधन के साथ जा सकता है इस तरह अखिलेश यादव का जातीय वोट भले ही जिन सीटों पर सपा लड़ रही है वहाँ उनके साथ रहे लेकिन जहाँ बसपा मैदान में होगी उनके साथ नहीं होगा .

मुसलमानों में भी बसपा के प्रति विश्वास की कमी है वह इस गटबंधन में बसपा को वोट तब ही देगा जब कोई विकल्प मौजूद न हो अगर उसे कोई विकल्प मिलता है तो वह उधर जा सकता है इस तरह बसपा के खाते वाली सीटों पर गटबंधन कमज़ोर पड़ता दिख सकता है.जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों का इस गटबंधन में बंटवारा हुआ है उससे अब यह शंका और बढ़ेगी क्योंकि पश्चिमी उत्तरप्रदेश की 22 सीटों में से 11 पर बसपा मैदान में होगी और 8 पर सपा बसपा सहारनपुर ,बिजनौर ,नगीना,अमरोहा ,मेरठ ,गाज़ियाबाद,नोयडा,बुलंदशहर,अलीगढ ,आगरा और फतेहपुर सीकरी से मैदान में होगी इनमे बुलंदशहर ,आगरा और नगीना सुरक्षित सीटें हैं जिसमे अब तक कभी भी बहुजन समाज पार्टी ने बुलंदशहर में जीत दर्ज नहीं की यहाँ तक कि 2014 लोकसभा इलेक्शन को छोड़कर कभी नंबर 2 भी नहीं रही यह सीट 2004 तक सामान्य थी और 2009 से सुरक्षित हुई है बुलंदशहर जिले में लगभग 23 प्रतिशत मुसलमान हैं वहीँ नगीना जो कि बिजनौर जिले में आता है जहाँ मुसलमानों का प्रतिशत 43.04% है और इस जनपद की नगीना लोकसभा सीट आरक्षित हैं जहाँ बड़ी तादाद में मुसलमान रहते हैं लेकिन इस सीट के आरक्षित होने से यहाँ पर वह चुनाव में नहीं उतर सकते लेकिन कभी यहाँ से बहुजन समाज पार्टी नहीं विजयी हुई जो यह बताने के लिए काफी है कि मुस्लिम वोटरों का रुझान यहाँ बहुजन समाज पार्टी की ओर नहीं है और वह समाजवादी पार्टी से जुडाव रखते हैं ऐसे में जब यहाँ समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी नहीं होगा तो किस हद तक इस सीट पर मुसलमान बसपा के साथ जायेंगे कहा नहीं जा सकता और यदि यहाँ से कांग्रेस शिवपाल के साथ गटबंधन कर प्रत्याशी उतार देती है तो परिणाम बदल सकते हैं .वहीँ बिजनौर संसदीय क्षेत्र में चुनौती नहीं दिखती है क्योंकि यहाँ बहुजन समाज पार्टी ने राष्ट्रिय लोकदल को कड़ी टक्कर दी है और इस बार लोकदल गटबंधन में शामिल है तो इस सीट पर जीत की प्रबल सम्भावना दिखाई देती है . सहारनपुर लोकसभा सीट से कांशीराम 1998 का चुनाव हार चुके हैं इस जनपद में मुसलमानों की आबादी 41.95% है यहाँ से 2014 में कांग्रेस के इमरान मसूद कम अंतर से चुनाव हारे थे जब कोई गटबंधन मौजूद नहीं था और सभी दल मैदान में डंटे थे यानि इस सीट पर कांग्रेस का दावा मज़बूत हो सकता है और शिवपाल यादव द्वारा गठित सयुंक्त संघर्ष मोर्चा की 40 पार्टियों का सहयोग इसे कुछ और बल दे सकता है यानि इस सात पर भी गटबंधन को बड़ी चुनौती मिल सकती है क्योंकि यहाँ भी बसपा मैदान में है और मुसलमान बहुत अधिक भरोसा मायावती पर इसलिए नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उन्होंने बीजेपी के साथ सरकार भी बनायी और खुद जाकर गुजरात में प्रचार भी किया मोदी जी के लिए .अमरोहा संसदीय क्षेत्र पर भी बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी मैदान में होगा हालाँकि यहाँ भी वह सिर्फ एक बार दुसरे नंबर पर रही है 1991 में उसके बाद उसने हमेशा तीसरे और चौथे नंबर की लड़ाई लड़ी है अमरोहा जोकि अब ज्योतिबा फुले नगर जनपद में आता है यहाँ 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 40.78% मुसलमान रहते हैं और 17.28%आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है इस सीट का जो इतिहास रहा है उसके अनुसार बसपा तभी जीत सकती है जब समाजवादी पार्टी का वोट उसकी तरफ जाये जोकि अक्सर मुस्लिम है यहाँ पर भी वही समीकरण बन सकता है सपा की गैरमौजूदगी में मुसलमान बसपा पर विश्वास करते हैं या कांग्रेस यदि छोटे दलों से गठबंधन कर आती है तो उसकी तरफ जाते हैं यानि मुकाबला यहाँ टक्कर का होना माना जा सकता है .

मेरठ में भी बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी ही भाग्य आजमायेगा इस सीट पर बसपा मज़बूत है यहाँ भी मुसलमान 34.43% हैं और 18.12% दलित यहाँ बहुजन समाज पार्टी बाज़ी मारती दिख रही है ,अगर यहाँ से हाजी याकूब को टिकेट नहीं मिलता तो परिणाम प्रभावित हो सकता है क्योंकि तब बसपा को बगावत झेलनी पड़ सकती है और फिर मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा ऐसे में बाज़ी पलट सकती है .अलीगढ में मुसलमानों की तादाद 19.85% है लेकिन सपा या बसपा की जीत में इनका अहम् योगदान है और यही तय करेंगे कि अगर यह बिखरते हैं तो बीजेपी कि जीत हो सकती है और अगर इनका बिखराव रुकता है तोबल्ले बल्ले होगी लेकिन यहाँ भी कांग्रेस के संभावित गठबंधन के लिए प्रचुर मात्रा में संभावनाएं हैं सपा और बसपा दोनों दलों ने तो गठबंधन कर लिया है लेकिन ज़मीन पर कार्यकर्त्ता इसे बहुत पचा नहीं प् रहे हैं और इसे परिस्थिति वश ही क़ुबूल कर रहे हैं दिल से नहीं वही सपा के कार्यकर्त्ता क्योंकि पहले से ही दबंग प्रव्रत्ति के माने जाते हैं वह बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं को अंत तक उतना ही सम्मान दे पाएंगे जैसा उनके अध्यक्ष ने निर्देश किया है यह भी एक बड़ी चुनौती होगी .

आगरा सुरक्षित सीट पर बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी होगा यह सीट सुरक्षित है आगरा जनपद में मुसलमानों की तादाद मात्र 9.31 प्रतिशत ही है यहाँ कांटे की लडाई है और सपा के लिए बड़ा संकट भी क्योंकि यहाँ शिवपाल का जनाधार ज़मीनी स्तर पर मज़बूत है पूरी यादव पट्टी में उनकी मकबूलियत है अगर वह सेंध लगाते हैं तो नुक्सान हो सकता है लेकिन यदि वह बिना कांग्रेस से गठबंधन के मैदान में जायेंगे तो शायद इतना नुक्सान  न कर पायें और अखिलेश यादव के सर का दर्द कम हो जाये .इसी तरह फतेहपुर सीकरी के आंकड़े भी कुछ ऐसे ही हैं जो बहुजन समाज पार्टी के हक़ में जाते दिख रहे हैं क्योंकि यहाँ पर गटबंधन का फायदा मिल सकता है अब बचती हैं गाज़ियाबाद और नोयडा यहाँ कांग्रेस कड़ी चुनौती पेश करेगी और ज़बर्दस्त त्रिकोणी लड़ाई देखने को मिल सकती है कहा जा सकता है कि यहाँ व्यापक बंटवारा होगा और परिणाम किस पक्ष में जायेगा कहना मुश्किल है क्योंकि सभी बराबर ताकत से होंगे ऐसे में प्रत्याशी कौन है यही जीत और हार का फैसला कर सकता है .लेकिन नोयडा की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है इस जनपद में मुस्लिम और दलित सामान प्रतिशत में हैं मुसलमानों का प्रतिशत जहाँ 13.11 है वही 13.08  प्रतिशत दलित हैं यानि कुल मिलकर 26% यहाँ शिक्षा दर भी 80% है यानि पढ़े लिखे लोग कांग्रेस और बीजेपी में से भी चुनाव कर सकते हैं और गटबंधन को नकार सकते हैं ऐसे इन 22 सीटों में से जिन 11 पर बहुजन समाजपार्टी की दावेदारी है उनमे से अधिकतर पर मुश्किल अधिक दिखाई पड़ रही है और उसकी मुख्य वजह मायावती के प्रति मुसलमानों में अविश्वास भावना है जो उन्हें सिर्फ तब क़ुबूल कर सकते हैं जब विकल्प मौजूद न हों क्योंकि बहनजी के साथ उनके अनुभव सही नहीं रहे हैं .

यह मात्र 11 सीटों की स्थिति है यहाँ एक बात और समझने योग्य है कि उत्तरप्रदेश में टिकट बंटवारा भी गटबंधन के लिए टेढ़ी खीर होगा क्योंकि जो लोग दिन रात मेहनत कर रहे थे आधी से अधिक जगहों पर उनका दल मैदान में नहीं होगा और उनका धुर विरोधी दुसरे दल से चुनाव लडेगा जिसका उनके द्वारा समर्थन किया जाना संभव नहीं होगा ऐसे में विकल्प मिलते ही वह अपना वोट उधर शिफ्ट करवा सकते हैं जो एक नए समीकरण को जन्म देगा .

वैसे मुसलमानों की तादाद उत्तरप्रदेश के शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों की तुलना बहुत अधिक है उनमे से रामपुर,बिजनौर ,ज्योतिबा फुले नगर ,बहराइच ,मयू,मुरादाबाद,सहारनपुर , और आंबेडकर नगर के श्री क्षेत्र में मुसलमानों की तादाद 50% से लेकर 70% तक है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो तिहाई कस्बों में मुस्लिम आबादी अन्य से अधिक है पूरे उत्तर प्रदेश में 231 निकाय क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में मुस्लिम आबादी कम है २०11 कि जनगणना के अनुसार लगभग शहरी क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी 37.2% है यह आंकड़े भी चुनाव को प्रभावित करने वाले हैं और इनपर भी गहन विचार की ज़रुरत है अभी सिर्फ हम इस बानगी मात्र से समझ सकते हैं फायेदे और नुक्सान के समीकरण को एक सरसरी निगाह में यह गटबंधन बहुत असरदार नहीं दिख रहा है क्योंकि विकल्प देने के लिए कांग्रेस बाहर है और शिवपाल सिंह बड़ा खेल खेल सकने में सक्षम हो सकते हैं ऐसे में सपा का वोट ट्रान्सफर होना आसान नहीं होगा जिससे बसपा को सीधा नुक्सान है लेकिन सपा को खुला फायदा दिख रहा है अब फैसला इसका करना है कि “हम बंधुआ मजदूर बन कर उनके इशारों पर नाचेंगे या फिर सोचेंगे और सम्मानित वोटर बनेगे अभी बहुत से आंकड़े हैं जिनका विश्लेषण ज़रूरी है यह बानगी है विचार कीजिये .

 

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