https://youtu.be/xcDHpZjq0al
किस तरह पूरा समाज इस फरेब की भेंट चढ़ा हम इसपर बात कर चुके हैं अब बात इसपर होनी जरूरी है कि आखिर अब हम करें तो क्या करें ? हालांकि अभी भी हम काफी हद तक सच जान लेने के बावजूद अंधभक्ति में फंसे हुए हैं और इसी बेवकूफी का फायदा उठाने वाले हमें छल रहे हैं क्योंकि उन्हें खबर है कि हम उनसे अलग हट कर कुछ सोच भी नहीं सकते और काफी बदलाव के बावजूद ऐसी स्तिथि अभी है ।
अभी सियासी रहनुमा तो समाज के लिए बड़ा खतरा नहीं है क्योंकि उनको पूरी तरह से समझा जा चुका है लेकिन मज़हबी कयादत अभी भी हमारे जज्बातों के साथ खिलवाड़ कर रही है और हमें मूल विषयों पर सोचने ही नहीं देना चाहती, उसकी जगह हमें फिजूल के मसलकी विवादों में उलझाने की कोशिश में रहती है उसमें वह काफी हद तक कामयाब भी है, इसकी बानगी अभी हाल में तब्लीग़ी जमात के मामले में हम देख चुके हैं जब मौलाना साद के पिक्चर से खूबसूरती से गायब होने के बाद जिस तरह पूरे समाज ने जिल्लत का सामना किया और इस बात को कहने पर जो एकजुटता समाज में दिख रही थी टूटती दिखी लोग आपस में लड़ पड़े बिना यह सोचे कि इतना सबकुछ हुआ आखिर कैसे मुमकिन था कि अमीरे जमात मरकज से निकल गए और बाकी सब फंस गए ? लेकिन हम तर्कों से परे रहने के आदी हैं हम यह सवाल नहीं कर सकते जबकि हमसे हमारा रब क़ुरआन में बार बार कहता है कि तुम क्यों गौरो फिक्र नहीं करते लेकिन हम क़ुरआन के हर ज़ेर ज़बर पर अपना ईमान रखने का दावा करने वाले इस बात से कोई मतलब नहीं रखते बल्कि जिनको अपना मज़हबी कायद मानते हैं उनके हर काम को बिना सोचे समझे हक मानते हैं और सोचने की कोशिश नहीं करते ।
मैं जानता हूं मेरी इस बात पर भी आपमें से बहुत लोग मुझे गालियां देंगे मगर मैं सच ज़रूर कहूंगा क्योंकि अगर सही वक़्त पर मैं खामोश रहा तो मैं जालिमों में गिना जाऊंगा यहां एक बात साफ करता चलूं कि यहां मैं किसी मसलक का पैरोकार या मुखालिफ बनकर बात नहीं कर रहा हूं बस आपको याद दिलाना चाहता हूं कि क्या हो रहा है।तब्लीग़ी जमात का पूरा मामला शांत हुआ और मौलाना साद का कुछ भी नहीं हुआ क्यों ? भले मुझे गालियां दीजिए मगर एक बार ऐसे भी ज़रूर सोचियेगा।
आइए आपको उसके बाद ईद उल फितर और ईद उल अजहा की नामजों पर पूरी मज़हबी क़यादत की ख़ामोशी याद दिलाता हूं जो कहीं यह कहती भी नहीं दिखी कि जब शादी में 50 लोग शामिल हो सकते हैं तो ईदगाह में 20 लोगों की इजाज़त दी जाए लेकिन सच आप बखूबी जानते हैं और फिर खूब नमाज पढ़ने की तरकीब आप सबने सीखी और अभी ताज़ा मामला है मोहर्रम का जब सरकार ने ताजिया दफन की इजाज़त भी नहीं दी और एक दिखावटी मुहिम चली उसमें एक मौलवी का एक ऐसा बयान है जिसको सुनने के बाद पूरे समाज पर तरस आया वह यह था कि लखनऊ आजादारी आंदोलन के अगवा मौलाना कहते हैं कि बिल्कुल सरकारी फरमान का लोग पालन करें क्योंकि प्रशासन से उलझने पर ताजिया या अलम के बीच में होने से उसकी बेहुरमती होगी लिहाज़ा उसकी अजमत के लिए ऐसा करने से दूर रहें ,मेरे सवाली दिमाग़ ने मुझसे पूछा यह बात तब भी तो थी जब मसलकी जंग में सैकड़ों जाने शिया सुन्नी दंगो की भेंट चढ़ रही थी तब भी तो ताजिया और अलम बीच में होता था तब यह मौलवी यह कहते क्यों नहीं दिखे ? आप सोचेंगे तब समझ आयेगा कि कोई मौलवी दंगों में नहीं मरा उसका घर नहीं लूटा गया जबकि उसकी दौलत बढ़ी और नुकसान हमारा हुआ यानी समाज का।
मेरी बात को सोचियेगा ज़रूर तब आपको पता चलेगा कि चल क्या रहा है आखिर खेल क्या है ? वक्फ संपत्तियों की लूट में शामिल कौन लोग है हम और आप या इनमें से कुछ लोग अभी बंगलुरू की घटना बहुत पुरानी नहीं है वहां जिस तरह आरोपी के खिलाफ मुकदमा होने के बाद और उसकी गिरफ्तारी हो जाने के बाद भी लोगों को अचानक उकसा कर दंगा कराया गया उसके पीछे जिस तरह से एक खुद को मुस्लिम राजनैतिक दल कहलाने वाली पी एफ आईं का नाम आ रहा है यह बहुत डराने वाला है कि आखिर हम कितने नासमझ है हमें अभी भी कोई ज़रा सी बात पर आग में झोंक सकता है और इसके बदले मोटी कीमत वसूल सकता है ,आखिर इस तरह के संगठन हमारे यहां कैसे पनप सकते हैं क्या हमने तर्क करना अभी भी नहीं सीखा है कि कोई भी हमें डेथ पैरडाइज कॉन्सेप्ट बेच कर मुनाफा कमा लेगा इस्लाम ज़िन्दगी का रास्ता है इस दुनिया में भी और जन्नत में भी फिर इतनी आसानी से हमें जज्बात की चॉकलेट कैसे थमा दी जाती है जिसके चाटने के बाद हम मदहोश हो जाते हैं और किसी के भी इशारों पर नाचने को तैयार रहते हैं।
अब यहां एक बात और सोचने वाली है कि मजलूमियत भी बाज़ार में भुनाई जाती है और इससे हम तैयार करते रहें है बिकाऊ सियासी रहनुमा एक लम्बी फेहरिस्त है और अब यह प्रयोग भी तेज़ी से हो रहा है हम किसी मजलूम के साथ उसके ऊपर हो रहे जुल्म के खिलाफ खड़े होते हैं फिर वह मजलूम बिना किसी अन्य योग्यता के हमारा नेता बन जाता है और हम फिर उसके ही जरिए छले जाते हैं , मैं डॉक्टर कफील के ऊपर हुए जुल्म के खिलाफ हूं और लगातार उनके साथ खड़ा रहा लेकिन अब उन्हें सिर्फ इसलिए अपना कायद मान लिया जाए कि उनपर जुल्म हुआ है तो यह हमारा गलत फैसला होगा मै उनके सियासत करने के हरगिज़ खिलाफ नहीं हूं वह एक पढ़े लिखे व्यक्ति हैं लेकिन सिर्फ उनकी आपबीती के आधार पर उन्हें कायद मान लेना राजनैतिक भूल ही होगी उन्हें इसके लिए समाज में काम करके पहले खुद को साबित करना होगा फिर उन पर ज़रूर भरोसा किया जाना चाहिए। किसी भी प्रकार के कट्टरपंथ में बिना फंसे और तर्कों के आधार पर हमें अब अपना सियासी सफर तय करना होगा वहीं सही सियासी समझबूझ के जरिए ईमानदार राजनैतिक विकल्प को तैयार करना है ,मैंने पहले भी बिहार को प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल करने की बात कही है क्योंकि वहां सभी राजनैतिक दल मुस्लिम वोटरों को रिझाने भर की बात कर रहे हैं और जब समय था तो चुप्पी साधे दिख रहे थे वहीं असदउद्दीन ओवैसी की मौजूदगी भी कम घातक नहीं है उनका चाल चरित्र समझना हो ती हैदराबाद में अभी सचिवालय की बिल्डिंग में मौजूद दो मस्जिदों की शहादत पर उनकी चुप्पी और बाबरी मस्जिद पर उनके ज़हरीले बोल को जोड़कर समझने की कोशिश कीजिएगा ,
याद रखिए जज्बाती बोल से समाज का कोई भला नहीं होने वाला हमें जज्बाती और भड़काऊ भाषणों से बचना होगा और योग्य ईमानदार राजनैतिक विकल्प की ओर बढ़ना होगा एकजुटता और समझदारी हमारे और देश दोनों के हित में है।
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

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