उत्तर प्रदेश में चुनावी सियासत ने ज़ोर पकड़ लिया है हालांकि यहां अब तक खुद को मुुख्य विपक्षी दल कहने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया मिस्टर मुस्कान अभी कोरोना की आड़ लेकर अपने घर में बैठे हैं और पूरी जानता को ट्विटर के जरिए बता रहे हैं कि काम बोलता है,उधर बहुजन आंदोलन की नायिका ने बीजेपी का दामन थाम लिया है जैसे डूबते को तिनके का सहारा और मौजूदा सरकार के सुर में सुर मिलाकर राग दरबारी गा रही हैं वह पहले भी कभी सड़क पर नहीं उतरी क्योंकि उनको दुनिया में सबसे ज़्यादा खतरा है लेकिन उनकी राजनीत ट्विटर पर ज़ोरो पर है।

लगातार वह राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर हमलावर हैं यह बात और है कि उनका अपना समाज कितना ट्विटर पर मौजूद है और उसे पढ़ता और रीट्वीट करता है।
कुल मिलाकर सड़कों पर संघर्ष के नाम पर शून्य विपक्ष बस सरकार कि विफलताओं में अपने लिए अवसर तलाश रहा है कि किस तरह जनता इनसे नाराज़ हो तो फिर हम विकल्प के तौर पर हैं ही ,यह जनता जायेगी कहां?

हालांकि अभी मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा को लेकर कहीं कहीं कुछ युवा सड़कों पर समाजवादी झंडा बैनर लिए दिखे मगर वह महज सांकेतिक विरोध भर रहा इसके इतर कुछ भी नहीं। मायावती से मुसलमानों की नाराज़गी जग जाहिर है और दलितों में भी सिर्फ जाटव समाज का वोट ही प्रतिबद्धता के साथ बीएसपी के साथ है वहीं ब्राह्मण समाज भी छिटक चुका है ऐसे में मायावती के पास सत्ता में कुछ अंश प्राप्ति का मात्र एक अवसर बीजेपी से समझौता ही शेष है जिसमें उसे सत्ता में मात्र कुछ अंश मिलेगा और खुद बहनजी को सुरक्षा कवच ,लेकिन समाज को छला ही जाना है यानी पूरी तरह से स्पष्ट संकेत हैं कि बहुजन आंदोलन अब अपने अंतिम काल में है, क्योंकि बिना नेतृत्व परिवर्तन के इसके बचने की सभी संभावनाओं पर विराम लग गया है ,ऐसे में दलित चिंतकों की मानसिक गुलामी और मौजूदा नेतृत्व के समक्ष समर्पण एक चौकाने वाली बात ज़रूर है।

वहीं मिस्टर मुस्कान अखिलेश यादव जिस तरह फूंक फूंक कर क़दम रख रहे हैं और ट्वीट की राजनैतिक बाज़ी खेल रहे हैं उससे उनकी स्तिथि भी कोई बहुत मजबूत नहीं है एक तरफ घर में हुए चाचा भतीजा कलह का अभी तक सार्वजानिक तौर पर समापन नहीं हो सका है जिससे खतरनाक संशय की स्थिति बनी हुई है वहीं मुस्लिम समाज भी काफी बड़ी मात्रा में असंतुष्ट है और वह समय का इंतजार कर रहा है, क्योंकि बीजेपी आ जायेगी वाली बात से मुस्लिम समाज को अब कोई फर्क नहीं पड़ता वहीं उसके यह भी समझ में आ चुका है कि बीजेपी को रोकने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है ,लिहाज़ा यह पैतरा अब नहीं चलने वाला है तो राजनैतिक दल इस बात को जितनी जल्दी समझ लें उनके लिए यह उतना बेहतर होगा ,बीएसपी के बारे में मुसलमानों ने सोचना बंद कर दिया है लिहाज़ा यह 22 फीसदी मतदाता बिल्कुल खामोश है ।

ब्राह्मण समाज पर सबकी उम्मीदें टिकी हैं यही वजह रही कि जैसे ही बीजेपी से ब्राह्मणों ने अपनी नाराज़गी सार्वजानिक की सपा बसपा दोनों में होड़ लग गई इन्हें अपने पक्ष में करने की यहां तक की परशुराम जी की मूर्ति लगवाने की बात शुरू कर दी गई और सभी दल ब्राह्मण अस्मिता की लड़ाई लडने का दंभ भरते दिखाई दिए लेकिन मूल मुद्दों पर बात करने और सरकार का मुखर विरोध करने का साहस सपा बसपा नहीं कर सकी।

वहीं प्रियंका के कमान संभालने के बाद से उत्तरप्रदेश कांग्रेस में जिस ऊर्जा का संचार हुआ है और हर स्तर पर वह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है उसने प्रदेश में अप्रत्याशित रूप से उसका जनाधार बढ़ा दिया है और अब इसे भी संभावना के रूप में देखा जाने लगा है पूर्वांचल में जिसतरह से कांग्रेस का दबदबा बढ़ रहा है उससे बीजेपी में भी चिंता है।

बीजेपी की यही चिंता कम करने के लिए आप उत्तर प्रदेश में दस्तक दे चुकी है और सरकार से नूरा कुश्ती के बाद लगातार प्रदेश में संजय सिंह की मौजूदगी और उनका हर जगह घटना स्थल पर पहुंचना बता रहा है कि वह बीजेपी से नाराज़ मतदाताओं को रिझाने की कोशिश में जुटे हैं उसके पीछे की रणनीति यह है कि जो बीजेपी से नाराज़ हैं वह कई जगह बंट जाए जिससे किसी एक दल को फायदा न मिल सके और बीजेपी आसानी से अपना क़िला बचा ले जाये।

यह कुछ वैसा ही है जैसे बिना किसी संगठन के बिना किसी तैयारी के असदुद्दीन ओवैसी की मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन का चुनाव में उतरने का ऐलान करना और चुनाव के समय ओवैसी के ओजस्वी भाषणों का होना समझदार लोगों को इसे समझना होगा कि आखिर कैसे संभव हो रहा है कि कहीं अगर कोई घटना होती है तो वहां कांग्रेस के नेताओं को जाने नहीं दिया जाता उनकी गिरफ्तारी होती है

लेकिन संजय सिंह हर जगह पहुंच जाते हैं यहां तक कि विधानसभा के भीतर भी जबकि कहने को योगी खुश नहीं हैं ।इस पहेली को समझना होगा दरअसल दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का जो चेहरा सामने आया है उसके बाद उत्तर प्रदेश में उनका पदार्पण कोई हैरान करने वाला नहीं है, जिस तरह दिल्ली दंगों के दौरान और तब्लीग़ी जमात को बदनाम करने में केजरीवाल की भूमिका रही है उसने उनके चेहरे से मुखौटा उतार दिया है ।

वहीं समजावादी पार्टी के पास मौका तभी है जब वह घरेलू झगड़े का शीघ्र अतिशीघ्र निपटारा कर एकजुटता के साथ सड़क पर उतर पड़े अगर समय की आवाज़ को नहीं सुना तो बहुत देर हो चुकी होगी क्योंकि सिवा शिवपाल यादव के समाजवादी पार्टी में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़ सके ,और तभी यादव समाज के भी एकजुट रहने की संभावना है वरना यह भी मुमकिन है की सपा 50 सीटों के भीतर ही सीमित हो जाए प्रदेश के दोनों विपक्षी दलों सपा और बसपा के लिए यह खतरा बना हुआ है ।

वहीं ब्राह्मण समाज भी अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहा है जहां एक तरफ वह सपा की बात कर रहा है वहीं दूसरे ओर कांग्रेस को मूल घर बता रहा है ऐसे में यदि घर वापसी होती है तो मुसलमान भी आराम से कांग्रेस के साथ चला जाएगा क्योंकि उसका सपा से मोह भंग हो चुका है मुलायम के बाद उसका जुड़ाव कम ही हुआ है और आज़म के मामले में पार्टी की चुप्पी ने आग में घी का काम किया है ,इधर मुसलमानों में राजनैतिक समझ भी बढ़ी है और मठाधीशों को भी समाज ने नकार दिया है लिहाज़ा मौलवी पॉलिटिक्स भी समाप्ति की कगार पर आ गई है ऐसे में समाज यह देख रहा है कि बाकी लोग किधर जा रहे हैं यदि ब्राह्मणों ने कांग्रेस का रुख किया तो मुसलमान भी उनके साथ जायेगा ऐसा होने पर यदि प्रदेश में कांग्रेस उभर कर आती है तो कोई हैरानी नहीं होगी।

इस बात का आकलन संघ के विचारकों ने पहले ही कर लिया है और उन्होंने इसके लिए रणनीति भी बना ली है तथा बड़े पैमाने पर इसपर काम भी शुरू हो चुका है,संजय सिंह का प्रदेश भ्रमण इसकी कड़ी है ऐसा माना जा सकता है ,इनपर सरकारी तंत्र की मेहरबानी साफ इशारा कर रही है कि दिल्ली का याराना उत्तर प्रदेश में काम कर रहा है मीम भी हाथ पैर मार रही है अब सिर्फ आपके विवेक और बुद्धि की परीक्षा है ।
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

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