जी हां पुरानी कहावत है कि “अब डर काहे का जब सैंया भय कोतवाल” अजी मणिपुर और हरियाणा तो फ्लाइंग किस में उड़ गया ,बलात्कार और मार काट पर एक कथित हवाई चुम्बन ने बाज़ी मार ली।
आखिर सही भी है ,क्यों कर कोई देश की महिलाओं की मंत्री को ऐसा अभद्र इशारा कर सकता है जिनपर देश की सारी महिलाओं के विकास और कल्याण का ज़िम्मा है उनकी तरफ कोई ऐसा इशारा करेगा तो इससे खतरा गली मोहल्लों में और गहरा जायेगा,लोग कहीं इसे नज़ीर न बना लें शायद इसी लिए मंत्री महोदया ने इतना सख्ती से इसके खिलाफ आवाज़ उठाई है ,आखिर देश की आधी आबादी उनका अनुकरण कर अपने खिलाफ़ होने वाले ज़ुल्म का प्रतिकार करना सीखेगी।
अब सोशल मीडिया पर तो मंत्री जी के निजी जीवन पर भी बात हो रही है कहा जा रहा है सभ्यता यही है जो आपने किया खैर हम लोग किसी के निजी जीवन पर कोई टिप्पणी नहीं करते आखिर कहीं कहीं दिल गलती कर बैठा है जैसा गाना भी सुना जाना चाहिए। लेकिन राहुल गांधी के मामले में हरगिज आप यह गाना नहीं सुन सकते क्योंकि यह भारतीय संस्कृति के बिल्कुल खिलाफ काम किया है उन्होंने तो सज़ा तो मिलनी चाहिए?
अब फैसला करना है लोकसभा के अध्यक्ष महोदय को कि वह इस बात पर कितना सीरियस होते हैं वैसे भी राहुल गांधी कोई बृजभूषण शरण सिंह तो नहीं हैं जो किसी का हौसला बढ़ाने का प्रयास कर रहे हों देश हित में ,राहुल गांधी ने तो सीधे तौर पर देश की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया है ?
अब तो लगता है की देश के नये वाले संसद भवन में भी विशाखा कमेटी का गठन होना चाहिए क्योंकि राहुल की इस हरकत के बाद तो लोगों का मनोबल और बढ़ सकता है क्योंकि इस लोकसभा में महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोपी सांसद 19 हैं जिनमें तीन पर बलात्कार (IPC धारा 376) का मुकदमा है तथा जिनमें 10 पर अपराधिक दोष सिद्ध हुआ है हालांकि अभी मामला उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
आप इन आपराधिक रिकॉर्ड को देखकर बिलकुल भी आश्चर्यचकित मत होइए क्योंकि आपने ही चुना है इन सब को इस वक्त हमारी लोकसभा में लगभग 233 सांसद ऐसे हैं जिनपर आपराधिक मामला है ,आप इसे ऐसे भी ले सकते हैं कि यह निर्वाचन की एक अहर्ता सी है भले इसे कानूनी मान्यता न हो लेकिन समाज में भौकाल को एक अलग तरह का समर्थन मिलता रहा है यही वजह है कि बाहुबल आवश्यक एलिमेंट सा बना हुआ है चुनावी राजनीत में।
अब जाने भी दीजिए कहां सोच विचार में पड़ गए इतना सीरियस होने की जरूरत नहीं है ,आपका काम मात्र वोट देना है सोचना समझना नहीं है क्योंकि यह काम संसद में होता है जैसा कि खबर आ रही है कि सरकार राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों के चयन के संबंध में बिल लाने जा रही है क्योंकि मार्च 2023 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने सामूहिक रूप से मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों के चयन हेतु आदेश दिया की इसकी नियुक्ति भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी राष्ट्रपति महोदय एक उच्च स्तरीय चयन कमेटी जिसमें भारत के प्रधानमंत्री ,लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे के द्वारा सुझाए गए नाम की घोषणा करेंगे ।अब क्योंकि इस कमेटी में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश भी होंगे तो सर्वोच्च न्यायालय का रवैया देखते हुए यह संभव है कि प्रधानमंत्री जी की पसंद को वरीयता न मिल सके और नेता प्रतिपक्ष तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी दूसरे नाम का प्रस्ताव कर दिया जाए अतः सरकार ऐसे किसी भी खतरे को मोल नहीं लेना चाहती।
अतः सरकार सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के इस निर्णय को कानून बनाकर हटा देने की रणनीति पर काम कर रही है ,सरकार को भलीभांति पता है कि उसके द्वारा लाया गया कोई भी बिल गिर नहीं सकता अतः जब यह कानून पारित होगा तो कमेटी में मुख्य न्यायाधीश को रखने के बाध्यता समाप्त हो जायेगी और सरकार तीसरा व्यक्ति अपनी मर्जी के मुताबिक रख सकेगी जिसके बाद अपनी पसंद का चुनाव आयुक्त नियुक्त करने का रास्ता साफ होगा ऐसा कहा जा रहा है।
हालंकि यह कोई लोकतंत्र को समाप्त करने के प्रक्रिया नहीं है आप इसे ऐसा बिलकुल मत समझिए बस सरकार को विश्वास चाहिए जिसके लिए थोड़ा सा मोरल सपोर्ट की दरकार है ऐसा हो सकता है वरना देश में प्रधानमंत्री जी की लोकप्रियता मीडिया में प्रसारित सर्वे के अनुसार दिन प्रतिदिन बढ़ रही है 64% तो अब तक थी इस अविश्वास प्रस्ताव के बाद यह 80% लांघ जाने की प्रबल संभावना जताई जा रही है।तो ऐसा समझना कि सत्ता प्राप्त करने के लिए सरकार यह कानून ला रही आपकी मूर्खता मानी जायेगी ।
यह सरकार सिर्फ इस लिए ला रही है कि प्रधानमंत्री जी अपनी तरह योग्य और ईमानदार चुनावआयुक्त की नियुक्ति कर सकें,क्योंकि उन्हें डर इस बात का है कि कहीं कोई अकर्मट व्यक्ति इस अति महत्वपूर्ण पद पर न बैठ जाए और पिछले 70 सालों की तरह लचर व्यवस्था फिर शुरू हो जाए अतः सरकार मात्र देश हित में और देश के सम्मानित मतदाताओं के हित में इस फैसले को लेने जा रही है जैसा कि सूत्रों के हवाले से खबर है अब इसमें क्या सत्यता है इसे जब तक बिल आ नहीं जाता क्या कहा जाए वैसे सूत्रों की खबरों पर आप विश्वास तो करते ही हैं।
अपना कोतवाल बने तो फिर एक बार….. आगे आप समझते है! हैं न??
जय हिन्द