मै न्यू इंडिया की बात नहीं कर रहा हां मैं बात कर रहा हूं भारत की जहां भूख है,गरीबी है, भुकमरी है लाचारी है और है बेरोजगारी अगर मैं सही तस्वीर देख पा रहा हूं तो भारत की यही तस्वीर है आप मुझसे तर्क करेंगे और कुछ गगनचुंबी इमारतों का बखान करेंगे,कुछ जहाज़ों की बात करेंगे तो में पहले ही बता दूं कि ऐसा विकास भारत में नहीं हुआ हां न्यू इंडिया में ज़रूर हुआ है।
आइए अब भारत में जीने के नए फार्मूले पर बात करते हैं यह फार्मूला है एस -4 अगर आप इसे समझे तो भारत में ज़िंदा रह सकते हैं इससे ऊपर की उम्मीद बेईमानी है वैसे भी हमलोगों का ईश्वर में अटूट विश्वास है और बार बार सरकार कह रही है कि भगवान ने ऐसा कर दिया वैसा कर दिया तो आपको समझना चाहिए कि वास्तविकता क्या है।
भारत में जीने का यह अद्भुत फार्मूला है जो आपको 1947 से पहले के भारत का एहसास करवाता है इसकी पहली शर्त है सहमति जी हां आपको सरकार के हर फैसले पर सहमति जतानी होगी भले वह आपके हक में हो या न हो मगर धर्म की राजनैतिक व्याख्या को मान कर उसपर अमल भी करना होगा जिससे आप स्वयं चेतना शून्य हो जायेंगे और फिर आपको किसी भी चीज़ के खोने का डर नहीं रहेगा बल्कि आप दुखी होकर भी खुश रहने की कला में महारत हासिल कर लेंगे ।
जब आप सहमति की आदत डाल लेंगे तो आपको समर्थन का ज्ञान भी होगा और आपके इस कला में आत्मनिर्भर बनने में कोई रुकावट नहीं रह जायेगी ,इससे एक तरफ तो यह फायदा होगा कि आप राष्ट्रवादी कहलायेंगे और सिर्फ अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए हर जोखिम उठाने को सदा तैयार रहेंगे,अगर सत्ता चाहेगी कि आप राष्ट्र हित में अपने अंग दान कर दें तो भी आप इससे पीछे नहीं हटेंगे और घुमा फिरा कर सरकार के समर्थन में खड़े रहेंगे आपमें जब यह गुण विकसित हो जायेगा तो आप भारत में रहने का अपना दावा मजबूत कर लेंगे।
आप मेरी बकवास से उचाट हो रहे हैं मन ही मन मुझे गाली भी दे रहे हैं मगर इसके साथ एक काम और करते चलिए वह यह कि अपने ऊपर गौर करते रहिए कि आप इन दोनों गुणों को रखते हैं या नहीं आपने हर गलत को सही साबित कर उसके लिए सहमति देना और उसका समर्थन करना सीख लिया है या नहीं? अगर नहीं तो यह चिंता का विषय है आपको सोचना चाहिए कि कहीं आप ऐसा न करके सरकार की मुखालफत तो नहीं कर रहे ?अगर आप खुद को हिन्दू समझते हैं तो कहीं आप अर्बन नक्सल से प्रभावित तो नहीं हो गए और अगर आप मुसलमान है तो कुछ कहना ही नहीं? वैसे मेरठ में दलित आदिवासी सब हिन्दू हुए थे लेकिन अभी तक हैं या फिर अछूत बना दिए गए इसकी कोई खबर नहीं मिली इसके लिए भी दलित और आदिवासी समाज अपना मूल्यांकन खुद करे।
आइए अब बात करते हैं बेरोजगारों की आखिर भारत युवाओं का देश है तो इनकी बात तो होगी ही अब देखना यह है कि आप कितनी तेज़ी से सहमति और समर्पण की परीक्षा में सफलता हासिल कर आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि अगला पड़ाव है संविदा यानी कोई स्थाई सरकारी नौकरी नहीं ,अगर आप सहमति का भाव सीख चुके हैं और समर्थन करने में भी आपने अपने कौशल का लोहा मनवा लिया है तो आपको अब संविदा के लिए सहमति देनी है और सरकार के इस फैसले का समर्थन करना है,हालांकि यह कुछ ऐसा ही है कि आप बहुत भूखे हैं और आपसे कहा जाए कि खाना नहीं मिलेगा इसके लिए अपनी सहमति दीजिए और फिर इस फैसले का समर्थन भी कीजिए जो इस फैसले के खिलाफ हैं उनसे बेतुके तर्क गढ़ कर ट्रोल आर्मी वाला व्यव्हार कीजिए यदि आपने इन तीनों गुणों को अपने अंदर समा लिया तो फिर समझिए आपकी सफलता में कोई रोड़ा नहीं है क्योंकि सत्ता को असहमति और विरोध से डर लगता है और आपने डराने वाला सारा काम त्याग दिया तो फिर आपके भारत में रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
अब बात करते हैं समर्पण की तो जब यह तीनों गुण आप अपने अंदर पैदा कर लेंगे तो आप समर्पण कर देंगे हालांकि समर्पण को गुलामी, दासता जैसे शब्दों से आसानी से समझा जा सकता है यानी आप गुलाम होने को तैयार हैं न्यू इंडिया में रहने वाले मालिक और भारत में बसने वाले गुलाम अब इसे कोई यूं कहे कि मानसिक गुलामी का खुशी से चुनाव भारत में रहने का फार्मूला एस- 4 यानी सहमति,समर्थन संविदा और समर्पण है इसके उलट असहमति,विरोध और संघर्ष का लंबा और कठिन रास्ता जिसमें भारत का स्वर्णिम भविष्य है । अब चुनाव आपका है कि आप फार्मूला एस -4 चुनते हैं या भारत का भविष्य।
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

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