यही देश की हकीकत है जिससे अब देश का गरीब मजबूर ,और मज़दूर वाकिफ हो रहा है ,क्योंकि जब वह शहर से गांव की तरफ लाचार और बेबस निकला तो कोई उसकी मदद को नहीं था ,अगर उसे भूख लगी तो सड़कों पर इंसानियत का दर्द महसूस करने वाले उसे मिले जिसने उन्हें हिम्मत दी पानी पिलाया और जो कुछ खिला सका वह खिलाया और इसके बीच जो एक काम नहीं किया वह यह था कि न उसकी जाति पूछी और न धर्म, जिस मुश्किल समय में कुछ लोग कालाबाजारी और लूट में व्यस्त थे यह आम से लोग एक ख़ास काम को अंजाम दे रहे थे,
दिल्ली में कहीं कोई मनप्रीत मिला,कहीं आदिल खान, मथुरा रोड पहुंचे तो अतीकुर रहमान अपने परिवार सहित नजर अाए जो पानी और नाश्ते के साथ मजदूरों के पाव के छालो का भी ख्याल करते दिखे इसीलिए सफर में चल रहे गरीबों के लिए जूते चप्पल भी साथ दे रहे थे जिसकी चप्पल टूट गई उस कोई तकलीफ न हो,नोएडा में विजय पांडेय मिले जो बच्चों को दूध पिला रहे थे कि कोई मासूम भूखा न रह जाय तो अलीगढ़ में इस दर्द को समझने वाले असद सिद्दीकी दिखे काफिला आगे बढ़ता गया
हर जगह मोहब्बत के चेहरे नजर आए आगरा एक्सप्रेसवे से जब लखनऊ पहुंचने वाले थे तो विख्यात सामजसेवी मोहम्मद अनवर सिद्दीकी की टीम मिली जो लगातार इस संकट की घड़ी में रोज़ हज़ारों मजदूरों की भूख प्यास बुझाने में लगी है उनकी टीम के लोग धूप में रोज़ा रख कर लोगों को खाना खिला रहे हैं और एक बात और कि खुद अनवर सिद्दीकी कहीं नजर नहीं आते यानी नाम कमाने के लिए नहीं सिर्फ इसलिए कि यह वक़्त इंसानियत के काम आने का इस गरज से काम कर रहे हैं,कभी राशन की किट बांट रहे हैं कभी सड़कों पर खाना यह एक तस्वीर है वहीं एक तस्वीर और भी है वह टेलीविजन पर मिलती है जिसमें धर्म के ठेकेदार , नफरत के सौदागर दिखते हैं जो कभी फल और सब्जी का धर्म बताते हैं कभी घर उजाड़ देने की बात करते हैं, सच सड़कों पर हैं झूठ कमरों में।