जी हां मज़दूर प्रवासी होता है, और प्रवासी का अपना कुछ नहीं होता ,और किसी प्रवासी के कोई अधिकार भी नहीं होते ,यही वजह है कि अगर आप विदेश में रहतें हो तो एक निश्चित समय के बाद आपको अप्रवासी भारतीय कहा जाता है प्रवासी नहीं क्योंकि विदेश कमाने वाला हवाई जहाज से जाता है,वह दाने दाने का मोहताज नहीं होता,उसके सर पर छत होती है,उसके बैंक अकाउंट में पैसे होते हैं और अक्सर लोगों को ट्वीट पढ़ना और करना दोनों आता है।
यह जो प्रवासी मज़दूर हैं अगर भूख से मर रहें हैं तो देश की सरकार इनके प्रति बिल्कुल ज़िम्मेदार नहीं है क्या कहते हैं आप? ऐसे कठिन समय में सरकार देश के लोगों के विषय में चिंता करेगी या प्रवासियों की? भला यह कोई बुद्धिमत्ता की बात होगी? लेकिन कुछ लोगों को बस सरकार के कामों में कीड़े निकालना आता है अरे कोई सरकार ने कहा है कि पैदल जाओ ,या ट्रक पर जाओ ?जब गांव जाकर भी मरना ही है तो यहीं मर जाओ वहां भी कौन सा देसी घी और चंदन से जला दिए जाओगे लेकिन इन लोगों को तो बस देश को बदनाम करना है?
भला बताईए देश का सर्वोच्च न्यायालय तक कह रहा है कि जब रेल की पटरियों पर सो जाओगे तो कोई क्या कर सकता है भला रेल की पटरियां कोई सोने की जगह हैं ?सरकारी वकील बाबू तो कभी नहीं सोए तो फिर गलती पर गलती यह गरीब करे और बदनाम सरकार हो मुवावजे की घोषणा अलग करो सिर्फ देश का नुक़सान कराते हैं यह गरीब क्यों ?
कोई ट्रक से मरा जा रहा कोई भूख से सिर्फ देश का नाम खराब करने की साज़िश है शायद यह? वरना देखिए वित्त मंत्री जी आत्म निर्भर हैं अंग्रेज़ी बोलती हैं और उसका हिंदी अनुवाद करने के लिए गोली मारो वाले बाबू अनुराग ठाकुर पर निर्भर हो जाती हैं या यूं कहें कि उनका हिंदी के प्रति यह सम्मान है कि अंग्रेज़ी बोलने के बाद वह हिंदी बोलने को अपमान समझती हैं शायद?
आखिर सामाजिक दूरी बनाई जा रही है लेकिन यह अनपढ़ गवार समझते ही नहीं या शायद यही इसका सही मतलब समझ पाएं हैं तभी वह एक ट्रक में जानवरों की तरह एक के ऊपर एक लदे चले आ रहे हैं,क्योंकि मज़दूर तो एक ही समाज के होते हैं गरीब!
एक समाज के लोग आपस में दूरी नहीं बनाते दूरी बनाते हैं गरीब से मध्यम वर्गीय, मध्यम वर्गीय से उच्च मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यम वर्गीय से धनी क्योंकि बीमारी से बचने के लिए सामाजिक दूरी बनानी है तो इन सभी वर्गों ने आपस में दूरी बढ़ा दी है,धनी मौज में है 20 लाख करोड़ में कुछ तो मिलना तय है, उच्च मध्यम वर्ग को धनी समाज मुंह नहीं लगा रहा इसलिए वह अंताक्षरी खेल रहा है ,और मध्यम वर्ग घर में बैठ कर ऊहापोह में हैं कि बैंक की किस्त कैसे जायेगी स्कूल की फीस भी भरनी है जूते जो क्रेडिट कार्ड से लिए थे उसकी भी तो किस्त जानी है लिहाज़ा अवसाद में है और गरीब सड़कों पर है पूरी तरह से लोग सामाजिक दूरी का पालन कर रहे हैं ?
खैर आज भी मजदूरों ओह गलती के लिए माफी प्रवासी मजदूरों के मरने की खबरे अाई हैं आप बिल्कुल विचलित मत हों यह हम भारत के लोग की परिधि में नहीं आते यह प्रवासी हैं यानी मुहाजिर, अंग्रेज़ी में माइग्रेंट इनका अपना कुछ नहीं इसीलिए सरकार की पुलिस देशहित में अपने नागरिकों की सुरक्षा हेतु इनपर लाठियां चला रही है और कुछ सिरफिरे लोग इसे देश के लोगों पर सरकारी ज़ुल्म कह रहे हैं शायद उन्हें ज्ञान नहीं है कि यह प्रवासी हैं भारतीय मजदूर नहीं ??? वैसे आज मीडिया की भी गुजरात में इन प्रवासियों ने ठुकाई की है कितने हिंसक हैं यह लोग देस की राष्ट्रवादी मीडिया पर हमला करते हैं जबकि इनकी बदहाली और गरीबी बेबसी को न दिखाकर इनपर अहसान कर रही है मीडिया कि इनके आत्मसम्मान की रक्षा हो जाए मगर इनको समझ ही नहीं आता।बहुत निंदनीय है यह घटना !!
भारत यानी हमारे देश का संविधान भारत के नागरिकों को भारत में कहीं भी वैध काम करने की स्वतंत्रता देता है और अपने देश में कोई प्रवासी नहीं होता कभी आपने सुना क्या कि कश्मीर की घाटी से कोई प्रवासी चिड़िया अाई हैं ,तो फिर समझना चाहिए हमें कि जब प्रवासी शब्द बार बार इस्तेमाल किया जा रहा है तो यह निरर्थक तो बिल्कुल नहीं है इसका कोई न कोई मतलब ज़रूर होगा?
कोई अमृत किसी कय्यूम की गोद में दम तोड़ दे या कोई संगीता जिसे अभी मा भी नहीं कहना आता बीच सड़क पर अपनी मा की लाश के साथ बैठी रहे उससे देश या राज्य की सरकार को क्या सरोकार,यह बात यह विपक्ष भी नहीं समझता बस सरकार की कमियां गिना रहा है आखिर प्रधानमंत्री जी कितनी मेहनत करें 18-18 घंटे बिना थके काम कर रहे हैं निरंतर देश के लोगो को राहत देने का काम कर रहे हैं,अगर ऐसे कठिन समय में अपने भाषणों से लोगों का हौसला न बढ़ाते तो स्तिथि बहुत खराब हो जाती कितना कुछ सोचते हैं वह आखिर देश को 20 लाख करोड़ दिया ,है कोई ऐसा दानी? ऐसी क्षमता वाला जो आत्म निर्भर होने की बात कर सके? ,प्रवासी मज़दूर शायद उनके ट्वीट नहीं पढ़ते उन्हें पढ़ना चाहिए पैदल चलते वक़्त समय काटने के लिए ही सही ,तो कितना आत्मबल मिलता उनको जान है तो जहान है कि बात समझते खैर जाने दीजिए हमें आपको क्या हम लोग तो पढ़ते हैं सराहते हैं ,देखिए डाक्टरों का कितना सम्मान हुआ हवाई जहाज़ से फूल बरसे बैंड बाजा ताली थाली सब बजा अब एक कोई सिरफिरा डाक्टर जो समझ नहीं रहा था विशाखापत्तनम में तो पुलिस ने उसे जानवरों की तरह पीटा लेकिन यह बंगाल में नहीं हुआ है तो डाक्टरों को कुछ सोचने की जरूरत नहीं है अपना काम करते रहें ।
अब तो 20 लाख करोड़ मिल गए हैं मीडिया को चाहिए कि सिर्फ मोदी जी के बयान दिखाए जिससे देश में नई शक्ति का संचार हो और 20 लाख करोड़ से भारत आत्मनिर्भर हो जाए और हम सब जुलाई में भारत आने वाले पहले रफेल लड़ाकू विमान का जश्न मना सकें फिर जापान वाली बुलेट ट्रेन आ जाए तो समझिए अपना बनारस भी क्योटो बन ही जायेगा कोई कह रहा था अहमदाबाद वुहान बन रहा है और आगरा न्यूयार्क अरे मूर्खों अभी इसकी घोषणा तो लालकिले से हुई भी नहीं।वैसे मौतों का मातम मना कर क्या फायदा मज़दूर की पैदाइश ही मरने के लिए होती है खट खट कर और सिसक सिसक कर ,तो यह नजारा कुछ अलग नहीं सड़कों पर नंगे पैर भूख और प्यास टहल रही है और घात लगाए बैठी मौत भी कोई मौका नहीं छोड़ रही है ,पलायन का यह भव्य आयोजन यूंही तो नहीं ,सवाल तो यह भी है कि कहीं यह एन आर सी का पहला चरण तो नहीं ? अपने ही देश में प्रवासी कोई यूंही तो नहीं होता? आखिर इन्हें भारतीय मजदूर भी कहा जा सकता था या इन्हें राष्ट्र निर्माता क्यों नहीं कहा गया?
इन सवालों के जवाब आपको लोहे की पटरियों पर पड़ी सूखी रोटी ,पावों में फफोले और दिल में गमों का पहाड़ लिए मज़दूर को देना है ।
यूनुस मोहानी
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