यह तल्ख़ हकीकत है हमारे समाज की जिसे हम न सुनना चाहते हैं न देखना न उसके बारे में कोई बात करना .
यही हमारा बेईमानी भरा किरदार है कि हम अपनी कमियों को देखने के बजाये दूसरों कि कमियाँ देखते हैं और उस पर खूब बात करते हैं .आइये आज कुछ इस तरफ नज़र दौड़ा ली जाये मैं जनता हूँ आपको मेरी बातें ज़हर लगेगी क्योंकि अब आपको इन बातों की आदत नहीं रही है आप सिर्फ कड़वा कड़वा थू .और मीठा मीठा गप के आदी हो चुके हैं फिर भी मैं अपनी बात आपके सामने रख रहा हूँ .
2014 में देश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी और तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को हार का मज़ा चखना पड़ा इसमें उस वक़्त ये समझा गया कि पिछली सरकारों का भ्रष्टाचारी चेहरा ,उनके खिलाफ लोगों की नाराज़गी से ऐसा हुआ रहा सहा इलज़ाम ई वी एम पर लगाया गया चूँकि हम हकीकत से मुँह चुराने के आदी रहे हैं लिहाज़ा जो कुछ कहा गया हम उसे मानते चले गए .
फिर उसके बाद लगातार जिन भी राज्यों में चुनाव हुए उनमें दिल्ली ,बिहार और पंजाब को अगर छोड़ दिया जाये और अभी हाल में कर्नाटक को अलग रखा जाये तो हर जगह बीजेपी की या उसके सहयोगियों की सरकार बनी ख़ास तौर से नोट बंदी के बाद उत्तर प्रदेश में जिस प्रचण्ड बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी वह हैरान कर देने वाली है लेकिन हम तब भी कुछ समझने को तैयार नहीं हुए क्योंकि हमें बता दिया गया कि चुनाव में ई वी एम का खेल था लोगों ने वोट नहीं किया .
हम वही समझना चाहते हैं जो हमें समझाने की फिराक में हमारा दुश्मन या फिर हमारा इस्तेमाल करने वाला चाहता है आपने कभी गौर किया इस बात पर कि ऐसा क्यों है ?
आप आरएसएस से बहुत नफरत करते हैं और उसके द्वारा बनाये गये सरस्वती शिशु मंदिर नाम के स्कूल तो आपके लिए बहुत नापसंदीदा हैं यहीं से शुरू होती है मेरी बात सरस्वती शिशु मंदिर की सन 2002 तक पूरे देश में 17396 शाखाएं थी जोकि विध्या भारतीय नामक संस्था जिसकी स्थापना 1977 में हुई संचालित होती हैं आज देश में जो भी नज़र आ रहा है विचारधार के रूप में जिसे आप कट्टरपंथी हिंदुत्व की संज्ञा देते हैं दरअसल इनके द्वारा बहुत मेहनत से तैयार किया गया माहौल है .शिशु मंदिर में पढने वाले बच्चे जिन्हें सनातन विचारधारा और परंपरा की रक्षा के के लिए तैयार किया जाता है इन सब बातों के साथ बहुत उच्च स्तर की शिक्षा भी पाते हैं वह वहां सिर्फ धर्म नहीं सीखते बल्कि विज्ञान ,गणित ,अंग्रेजी के साथ साथ सामाजिक विज्ञानं और इतिहास पर भी उतनी ही पकड़ रखते हैं जितनी अन्य स्कूलों में पढने वाले छात्र – छात्राएं .आप मेरी बात पर आँख मूँद कर विश्वास मत कीजिये बल्कि जाइये सरस्वती शिशु मंदिर के किसी बच्चे से खुद जान लीजिये आपको हकीकत का अंदाज़ा हो जायेगा.उनकी लगन और इमानदार कोशिश ने देश में ऐसा परिवर्तन लाया की सत्ताशीर्ष तक एक सोच पहुँच गई .
मेरा उद्देश्य किसी कि आलोचना नहीं है मै सिर्फ आइना दिखा रहा हूँ कि अगर कोई काम ईमानदारी और लगन से किया जाये तो उसके परिणाम उम्मीद से बेहतर होते हैं आइये अब मुसलमान जोकि मज़लूमियत का रोना रोते रहते हैं उनकी बात कि जाये मदरसों की दिन प्रतिदिन बढती तादाद और उनसे निकलने वाली जमात का आप हाल बखूबी जानते हैं 2006 तक पूरे हिन्दोस्तान में मदरसों कि लगभग तादाद जिनमे छोटे बड़े सभी मदरसे शामिल हैं लगभग 5 लाख थी जोकि अब और बढ़ चुकी है लेकिन इतनी बड़ी तादाद में मदरसों से कौम ने क्या हासिल किया ?क्या कौम को कोई सोच मिली ?इनसे निकलने वाले या इनमे अभी पढने वाले बच्चे क्या समाज के साथ क़दम से क़दम मिलकर चल सकने योग्य हैं ?मैं चंद मदरसों कि बात नहीं कर रहा जिन्होंने वक़्त के साथ खुद को बदल दिया है बल्कि ज़्यादातर अभी भी वही हाल बनाये हुए हैं जिनसे निकलने वाली फ़ौज अर्ध बेरोज़गारी को अपना मुक़द्दर मानती है .

तीन तरह के इल्म का ज़िक्र कुरान में है एक इल्मे अन्क़बूती ,दूसरा इल्मे नमल ,और तीसरा इल्मे नहल तीनो ही इल्म हैं अपनी अपनी क़िस्म के एक इल्म मकड़ी का है यानि इल्मे अन्कबूती कि वह जाल बनाती है इस गरज से कि कोई उसका चारा आएगा कीट पतिंगा उसमे फँस जायेगा और उसका पेट भरेगा उसका यह काम सिर्फ उसके खुद के लिए ही है उसके इस इल्म से किसी को कोई फायेदा नहीं पहुंचना अलबत्ता लोगों को तकलीफ ज़रूर हो सकती है कुरान की सुरह अन्क़बूत कि आयत नंबर 6 में आता है कि “और जो शख्स कोशिश करता है तो बस अपने ही वास्ते कोशिश करता है इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा सारे जहाँन से बेनियाज़ है”आइये अब इल्मे अन्क़बूती रखने वालों की तरफ गौर करें तो आपको मदरसों की नाकामी का कारण नज़र आ जायेगा मेरा मकसद किसी व्यक्ति विशेष कि आलोचना नहीं है लेकिन सत्य कहना मेरा कर्तव्य है और अगर यह नहीं समझा गया तो हम सब अपना नुक्सान कर लेंगे अक्सर मदरसे गुणवत्ता परक शिक्षा प्रदान नहीं कर पा रहे हैं बिना सभी संसाधन जुटाए सिर्फ इस लिए जाल बुना जा रहा है कि उनका शिकार कहीं फँस जायेगा और उनका मामला हल हो जायेगा, कौम की ज़रूरत के नाम पर किया जा रहा काम और इस पर सबकी ज़बानों पर लगाम इस्लाम के नाम पर लगाना किस हद तक जायज़ है इसका फैसला आपको खुद करना है क्योंकि मेरा मकसद आपकी सोच को अपने तौर से बदल देना नहीं है आपको बस एक विचार देना मेरा काम है .सदका ,ज़कात और खैरात की भारी भरकम रकम का इस तरह बर्बाद होना किस हद तक जायज़ है यह भी सोचने वाली बात है.क्योंकि नबी ने जो धन को ऊपर से नीचे की तरफ ले जाने की खूबसूरत प्रणाली इस्लाम के मानने वालों को दी अगर उसका सही इस्तेमाल किया जाये तो पूरे समाज से गरीबी को मिटाया जा सकता है ,लेकिन समय के साथ जिस तरह कि बुराइयों ने जन्म लिया उसने पूरे समाज को प्रभावित किया मुझे बहुत कुछ खुल कर कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप खुद समझदार हैं .
आइये अब बात करते हैं इल्मे नमल कि ये इल्म चीटियों का इल्म है और वह ये है कि वह अपने जिंदा रहने का इंतज़ाम कर लेती हैं आपने अक्सर देखा होगा कि चीटियाँ बारिश आने से पहले अपने खाने के लिए जो ज़रूरत है उसे ढो ढो कर अपने बिल में जमा करती है हालाँकि ये बात और है कि उससे किसी दूसरे को कोई फायेदा बज़ाहिर नज़र नहीं आता है लेकिन वह यह काम बड़ी लगन के साथ करती हैं और उनकी पूरी ज़िन्दगी लगभग इसी अमल में खतम हो जाती है उनके इस इल्म का ज़िक्र कुरआन कि सूरा नमल की आयत नंबर 18 में किया गया है जिसमे आता है कि “तो वह सबके सब (मसल मसल) खडे क़िए जाते थे (ग़रज़ इस तरह लशकर चलता) यहाँ तक कि जब (एक दिन) चीटीयों के मैदान में आ निकले तो एक चीटीं बोली ऐ चीटीयों अपने अपने बिल में घुस जाओ- ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लश्कर तुम्हे रौन्द डाले और उन्हें उसकी ख़बर भी न हो”चीटियों के इस ज़िक्र में आज के दौर के मदरसे से निकलने वाले छात्रों को देखिये या तो वह अपनी ज़िन्दगी के लिए हाथ पांव मारते दिखेंगे या फिर किसी मुसीबत के आने पर बिल तलाश करेंगे .हालाँकि उनके इस काम में उनका खुद का कोई दोष नहीं है जिसकी एक वजह यह भी है कि उनको गुणवत्ता परक शिक्षा नहीं मिली वहीँ दूसरी वजह मज़हबी अकीदे से जुडी हुई है वह ये है कि ज़कात माल की गन्दगी है और कुरान का इल्म नूर है और जब ज़कात का गलत उपयोग कर यह जानते हुए कि ये सही नहीं है किया जाता है तो नतीजा वैसा ही होता है जैसे लालटेन की लव चाहे जितनी तेज़ कर दी जाये अगर उसका शीशा नहीं साफ़ है तो रोशनी नहीं फैलेगी हाँ शीशा अगर ज़्यादा गरम होगा तो चिटक जायेगा यानि नुक्सान होगा ठीक वैसे ही जब गलत तौर से ज़कात के ज़रिये कुरान की शिक्षा दी जाएगी तो उसका असर ऐसा ही होगा.आप मेरे इस विचार से सहमत और असहमत हो सकते हैं आप स्वतंत्र हैं .लेकिन क्या हमें इस ओर सोचने की ज़रूरत नहीं ?क्या मकसदे ज़कात हम समझ प् रहे हैं ?क्या हम उसका सही इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि उसके इस्तेमाल के लिए हमें कुरान न साफ़ साफ़ बताया है कि किस किस को प्राथमिकता देते हुए इसे किया जाना है ?
खैर आइये अब बात करते हैं इल्मे नहल की ये इल्म है शहद कि मख्खियों का इल्म जिससे वह शहद बनाती है जिससे इंसानों को शिफा मिलती है और जायेका भी साथ ही वह जो छत्ता बनाती है उससे मोम मिलता है यानि उसका इल्म जहाँ खुद उसके लिए फायेदेमंद है वहीँ इंसानों और दुसरे प्राणियों के लिए भी लाभदायक है कुरान की सूरा नहल की आयात नंबर 68 और 69 में इसका ज़िक्र मिलता है जिसमे अल्लाह फरमाता है कि “और (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तू पहाड़ों और दरख्तों और ऊँची ऊँची ट्ट्टियाँ (और मकानात पाट कर) बनाते हैं उनमें अपने छत्ते बना फिर हर तरह के फलों (के पूर से) (उनका अर्क़) चूस कर फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताबेदारी के साथ चली मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख्तलिफ रंग होते हैं इसमें लोगों (के बीमारियों) की शिफ़ा (भी) है इसमें शक़ नहीं कि इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वालों के वास्ते (क़ुदरते ख़ुदा की बहुत बड़ी निशानी है) यह इल्म सूफियों का इल्म है जिनके इल्म से लोगों को फायेदा पहुँचता है जिसके ज़रिये जहाँ एक ओर वह खुद अपने रब के नज़दीक से और नज़दीक होते जाते हैं वहीँ समस्त प्राणियों को उनके यहाँ से फायेदा मिलता है दरसल इसी इल्म की आवश्कता है इसी विचार की ज़रूरत है किसी को कोसने से हम इस इल्म को हासिल नहीं कर सकते बल्कि इसके लिए आवश्यक है भरपूर ईमानदारी और लगन की हमें मदरसों की तादाद से कोई फायेदा नहीं होने वाला जब तक हम उनकी गुणवत्ता के लिए कोई काम नहीं करेंगे तो फिर हम इल्मे अन्क़बूती और इल्मे नमल वाले लोग ही समाज में पैदा करते रहेंगे जिनका काम मदरसे में रहकर मदरसे का नाजिम बनने की ख्वाहिश रखना भर रहेगा और एक दुसरे की टांग खीचने की प्रतिस्पर्धा में ही उनकी रचनात्मकता समाप्त होगी अगर इसे रोकना है तो हमें ईमानदारी से विचार करना होगा कि हम इतनी बड़ी संख्या में मदरसे खोल कर भी क्या हासिल कर पाए ?और अगर हमें नतीजे नहीं मिले तो कमी कहाँ पर है ?वैसे एक बात और है जिसे कहना ज़रूरी है और सूफिया इस दिशा में गए हैं वह ये है कि इब्ने ज़ियाद का इल्म इल्मे अन्क़बूती है ,कूफ़ियों का इल्म इल्मे नमल है और हुसैन का इल्म इल्मे नहल है अब फैसला हमें करना है कि हम किसकी जानशीनी के दावेदार हैं और हमें उसके लिए क्या हासिल करना है .

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