आप सोच में मत पड़िए बल्कि अपना दिमाग खोल लीजिये क्योंकि राजनीति मानसिक अपंगों का कार्य नहीं है यह कटु सत्य है , चलिये सुनिये नई कथा जो आपके भूखे बच्चे की मौत और पैरों के छाले पर भारी है ,क्योंकि लॉकडाउन में सब कुछ तो बंद है लेकिन राजनीति चरम पर जारी है,
अयोध्या में खुदाई शुरू हो गई और राम मंदिर में बुद्घ ने दर्शन दे दिये , फिर छालों पर धर्म का लेप लगाने अठावले जी बाहर अाये हुंकार भरी कि नहीं ज़मीन हमें दी जाये इस पर दलितों का अधिकार है ,यह जमीन आपकी खेती के लिए नहीं बल्कि सियासी खेती के लिए चाहिये जिसमें सत्ता के फूल खिलेंगे और धन एवम् पद का फल आयेगा आपको मिलेगी सिर्फ गोली, गाली ,भूख और पैरों के छाले।
ज़रा सोच लीजिए जब बुद्ध स्वयं मूर्ति पूजा के विरोधी थे तो उनके मंदिर की जंग क्यों? जब लड़ाई रोटी की है तो धर्म में उलझाने वाले कौन? आखिर बुद्ध की अचानक याद कैसे ? इससे पहले पुरातत्व विभाग ने क्या खोदा था और क्या पाया था? खैर आपको इन सवालों से क्या आपका मूल सवाल है रोटी तो फिर दलित अस्मिता की जंग लड़ने का दंभ भरने वाले धर्म में क्यों उलझाना चाह रहे है?
बाबा साहब ने कहा था कि अगर तुम्हारे पास 2 रुपए हों तो उसमे से 1 से रोटी खरीदो और 1 से किताब क्योंकि रोटी तुम्हे जीवित रखेगी और किताब जीवन कैसे जीना है यह बतायेगी । आज समाज रोटी की लड़ाई लड़ रहा है और किताब से तो रिश्ता ही मानो नहीं जुड़ पाया तो फिर साजिश तो होनी ही है।
दलितों के नेता जी से सवाल पूछा जाना चाहिए कि इस बात का ज्ञान तो उनके पास पहले से मौजूद था कि वहां बौद्घ चिन्ह मिले हैं तो उनके ज्ञान चक्षु अब क्यों खुले? यह समय क्यों जब जीवन सड़कों पर हैं,भूख की व्यथा लिखी नहीं जा सकती ,सवाल यह भी पूछना है कि मंत्री जी आपको समाज की बेबसी नहीं दिखती मूर्ति दिखती है,भूख से बिलखती मुनिया की मौत नहीं दिखती मूर्ति दिखती है ,आपको 8 माह के गर्भ का बोझ लेकर 1000 किलोमीटर पैदल चली जा रही कोई स्त्री नहीं दिखती मूर्ति दिखती है ,आप अयोध्या में बौद्घ मंदिर को लेकर व्याकुल हो जाते हैं क्यों?समाज के शुभचिंतक होने का दावा मजबूत करते हुए ज़मीन मांग लेते हैं ऐसा क्यों ?
कहीं श्रमिक ट्रेनों की तरह आपको भी रास्ता तो नहीं भटकाया जा रहा यह सवाल क्यों नहीं?सवाल कीजिए आखिर किस आधार पर कहा जा रहा है कि जितने मज़दूर आ रहे है उनमें 22% से अधिक संक्रमित हैं ? आप नहीं सोचेंगे क्योंकि आपको अफीम पिलाने की तैयारी शुरू हो चुकी है वरना आप सोचते कि यह बात यूंही तो नहीं की गई होगी कहीं इसका मतलब यह तो नहीं कि अब कोई इनसे काम न ले वरना संक्रमण का खतरा है,कोई इन्हें खाना न खिलाएं संक्रमण का खतरा है,कोई इन्हें अपने गावों में न घुसने दे संक्रमण का खतरा है यानी सामाजिक दूरी की परिभाषा आप समझें की नहीं? एक कहावत है ……………….घर का न घाट का मैं जाति और जानवर के नाम को लिखना उचित नहीं समझता बाकी आप समझदार तो बहुत हैं।
आप सवाल पूछ सकते हैं पासवान जी भी मंत्री हैं उनके पास पेट भरने का विभाग भी है फिर भी दलित और पिछड़ा भूखा है क्यों? बहनजी तो ट्विटर के मायावी महल में हैं वहीं से जादू की छड़ी हिला रही हैं लेकिन शैतान का मायाजाल इस बार तगड़ा है शायद उनके जादू से भूख नहीं मिट रही ,तेज़ धूप अंगारों की तरह जलती सड़क रास्ते की थकान भूख और प्यास की त्रासदी यह तस्वीर उस समाज की है जिसने आपको नेता माना ऐसा क्यों है?
पहले मज़दूर अपने ही देश में प्रवासी घोषित किया गया अब उसे लुटेरा प्रचारित करने का काम शुरू है अभी रेलवे स्टेशन की कई खबरें देखी जिसमें बताया जा रहा है कि मजदूरों ने पानी लूटा ,खाना लूट लिया,चिप्स के पैकेट लूट लिए इस लूट शब्द पर ध्यान दीजिए ।
तब्लीग़ी जमात वाला एजेंडा अब मज़दूर यानी साफ शब्दों में कहा जाये तो दलित,आदिवासी,और अति पिछड़े समाज पर लागू हो रहा है शायद? ज़रूरी नहीं कि मैं जो कह रहा हूं उससे सहमत ही हुआ जाए हो सकता है मैं गलत हूं लेकिन सोचना हम सबका कर्तव्य है।
ज़रा सोचिए तो सही कोरांटीन सेंटर में कुत्तों से भी बुरी ज़िंदगी जीने को मजबूर शोषित समाज के लोगों का गुनाह क्या है यही कि उन्होंने आपको अपना माना ?उनके अपने उनके साथ खड़े नहीं होते विपदा की घड़ी में?
दरअसल अयोध्या विवाद से पहले मुसलमानों को निशाना बनाया गया और आज हर तरफ उनके प्रति नफरत नजर आने लगी अब जब देखा कि भूखे नंगे लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं बगावत भी कर सकते हैं और इतिहास गवाह है कि भूखे लोग ही क्रांति लाते हैं ,तो कहीं यह भीड़ अपना रास्ता न चुन ले तो धर्म की अफीम लेकर हमारे बीच खुद को समाज का अपना कहलाने वाले आ गये है ,,कोई बड़ी बात नहीं कि भारत का उच्चतम न्यायालय अयोध्या मामले में की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए राम मंदिर निर्माण को रोक दे, इससे यह होगा कि जो पिछड़े वर्ग के भाई बहन इस थोपी गई आपदा में हमारे साथ पिस रहे हैं दलितों के खिलाफ खड़े हो जायेंगे ,वहीं वह दलित समाज के लोग जो अभी बौद्घ धर्म की दीक्षा ग्रहण नहीं किये और हिन्दू धर्म को मानते हैं वह भी अपने ही दलित भाईयो के खिलाफ हो जायेंगे इससे जहां एक तरफ दलित समाज अपने अंदर ही से उठे विरोध में अपने लक्ष्य से भटक जायेगा वहीं अति पिछड़ों और स्वयं दलितों द्वारा ही दलितों का बड़े पैमाने पर दमन होगा ।
इस प्रकार पैरों के छालों पर धार्मिक हथकंडा भारी पड़ेगा और एक तरफ दलितों के दुश्मन दलित और अति पिछड़े बन जाएंगे, एक मारने वाला और एक जेल जाने वाला, वहीं सत्ता लौलुप चैन की बंसी बजा रहे होंगे यही सदियों से होता आया है जब समाज पीड़ा को क्रांति में बदलने की कगार पर आता है अंदर बैठे जयचंदो द्वारा उन्हें भटका दिया जाता है ,जब तक समाज इन विदूषकों से मुक्ति नहीं पाता उसका उद्धार संभव नहीं है फैसला आपके हाथ में है एक ओर आपके बच्चो का भविष्य है, एक ओर धर्म की अफीम, संगठित होकर बदलाव लाना है या फिर मंदिर की चौखट पर भीख मांगनी है ?क्योंकि अंदर जाने की अनुमति शायद अभी तक आपको नहीं।
यूनुस मोहानी
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