जी हां लाशों का धर्म नहीं होता,न उनकी जाति होती है, उनका तो देश भी नहीं होता, वैसे ही जैसे मजदूरों का नहीं होता,आप कहेंगे कि किसने कहा कि लाशों का धर्म नहीं होता मुसलमान की लाश ,हिन्दू की लाश सिख की लाश इसाई की लाश तो सुनिए लाशों के रिश्तेदारों का मज़हब होता है जाति,देश सब होता है लेकिन लाशों का नहीं ,खैर क्यों उलझे हम बेकार की बहस में जब ज़िंदा लाशें सड़कों पर हों, ।
आजकल जहां देखिए लोग लाशों का ज़िक्र कर रहे हैं ,फोटो ,वीडियो ऐसे कि अगर इंसान देख ले तो कलेजा मुंह को आ जाये एक मां की लाश के साथ खेलता बचपन अगर बाल बच्चे वाले हैं आप तो निशब्द रह जायेंगे ,मां अपने कलेजे के टुकड़े की लाश को गोद में लिए पैदल चली जा रही है ,बाप अपने घर के चिराग का जनाजा अपने कांधे पर उठाए पैदल जा रहा है लेकिन इन सब बातों से दृश्यों से आपको या किसीको तब ही फर्क पड़ेगा जब इंसानियत होगी वरना हैवान तो खून के प्यासे होते हैं और लाशे उनके लिए अवसर होती हैं। यह अवसर वाली बात आप कहीं प्रधानमंत्री से मत जोड़ दीजियेगा क्योंकि मैं उन्हें कुछ नहीं कह रहा ,
वैसे मौत कम से कम सुकून तो दे देती है, चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है,न भूख न प्यास ,न घर पहुंचने की जल्दी लिहाज़ा गरीब के लिए भी यह अवसर है कि मर जाये क्योंकि अगर बाद में मरा तो शायद उसकी लाश को दर्शक न मिलें जो अभी हैं।मेरी इन बेतुकी बातों पर आपको बहुत गुस्सा आता होगा ,आखिर आप अपने घर में आराम से हैं आपके बच्चे अगर बाहर थे तो सरकार उन्हें घर सुरक्षित वापिस ले आई है,और हां आपसे किराया भी नहीं वसूला है इसलिए आपका फ़र्ज़ बनता है कि सरकार की तरफ से लाशों से सवाल करें और पूछे कि 1000 मज़दूर के खाते में,2000 किसान के खाते में,500 गृहणी के खाते में,500 वृद्धावस्था पेंशन राशन फ्री ,उज्जवला योजना का सिलेंडर मुफ्त यह सब पाने के बाद जो सरकार पर आरोप लगा रहे हैं यह नमकहराम है क्यों ?
सवाल में दम है आपके क्या खूब पूछा है अब यह लाशें जवाब नहीं दे पायेंगी आपने तो निरुत्तर कर दिया उन्हें लेकिन सुनिये बाबू जी 1 साल के बच्चे ने अपनी मां की लाश के साथ खेलते हुए भी एक सवाल किया है आपसे कि क्या नेता प्रवासी नहीं होते हम गरीब ही क्यों?
जवाब तो आपके पास हर बात का है इसका भी होगा वरना आजकल तो इंटरनेट है आपके पास तलाश लीजिए उसकी मासूमियत बार बार पूछ रही है कि प्रवासी क्या सिर्फ मज़दूर होते हैं?सवाल तो यह भी है उसका क्या बच्चे सिर्फ अमीरों के होते हैं? गरीबों के बच्चे नहीं बेबसी होती है बोलिये?
एक नेता देश में कहीं से भी चुनाव लड़कर उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है मगर उसे प्रवासी सांसद नहीं कहा जाता लेकिन उस नेता को सांसद बनाने वाली जनता अगर रोटी रोज़ी के लिए दूसरे प्रदेश में जाती है तो कहलाती है प्रवासी मज़दूर क्या यह दोगलापन नहीं है?
अगर एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर काम करना प्रवासी बना देता है तो आदरणीय प्रधानमंत्री जी को प्रवासी सांसद कहा जाना चाहिए ,स्मृति ईरानी को क्या कहेंगे आप? राहुल भी तो प्रवासी सांसद हुए केरल से ? आखिर हम न्याय कहां कर रहे हैं एक प्रवासी के जलवे है उसके पास सत्ता है,सत्ता का बल है सभी सुख सुविधा हैं और एक प्रवासी के पास लाचारी है भूख है और मौत है।
एक देश में दो व्यवस्थाएं एक गरीब के लिए और एक उसकी गरीबी को अवसर बना लेने वालों के लिए ,एक के लिए सम्मान है एक के लिये जीना हराम है,वैसे आप भी तैयार रहिये देश से गरीबी मिट रही है और आप भी अपनी असली हालत जानते हैं। मैं आपको इस सवाल के साथ छोड़ रहा हूं कि प्रवासी मज़दूर ही क्यों नेता क्यों नहीं?
यूनुस मोहानी
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