लोकसभा चुनाव 2019 आ गया है और कभी भी चुनाव आयोग चुनाव की तारीखों की घोषणा कर सकता है सभी राजनैतिक दल अपनी ताकत बढ़ाने में दिन रात मेहनत कर रहे हैं ऐसे में उत्तरप्रदेश की राजनीति सबसे अहम है जहां एकतरफ सपा बसपा ने गठबंधन कर खुद को जीता हुआ मान लिया है वहीं बीजेपी अपने सहयोगियों को मनाने की हार संभव कोशिश कर रही है चाहे निगम देने पड़े या बंगले सब कुछ हो रहा है।
छोटी क्षेत्रीय पार्टियां भी अपना ठौर तलाश कर रही हैं यहां एक बात काबिले गौर है कि गठबंधन से कांग्रेस को दूर रखा गया है और बस इतनी रियायत दी गई है या यूं कहे संबंध निभाए गए हैं कि गांधी परिवार की 2 सीटें छोड़ दी गई है जहां गठबंधन अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगा ऐसे में कांग्रेस के लिए धर्मसंकट है या तो वह मात्र 2 सीटों पर चुनाव लड़े और दोस्ती निभाये या फिर सभी सीटों पर प्रत्याशी उतार कर चुनाव लड़े यह दोनों ही स्थितियां कांग्रेस के लिए मुफीद नहीं है क्योंकि उसे ज़मीन पर अपनी ताकत का पूरा अंदाज़ा है वहीं दूसरी तरफ बड़े राज्य में सिकुड़ने का बड़ा खतरा ।
कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश में अपने तरकश का सबसे बड़ा तीर चल दिया है जो कांग्रेस का भविष्य तय करेगा यदि यह फ्लॉप होता है तो भविष्य में संभावनाओं पर कहीं न कहीं बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जिसका अहसास केंद्रीय नेतृत्व एवं रणनीतिकारों को भलीभांति है ,प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से जहां कार्यकर्ताओं में जोश आया है वहीं लोगों का रुझान भी कांग्रेस की तरफ हुआ है लेकिन वोटर अभी कांग्रेस को वोट करने की सोच नहीं बना पा रहा है जिसकी वजह जातिगत समीकरण और पिछले चुनाव में कांग्रेस के नतीजे है अगर कांग्रेस अकेले चुनाव में जाती है तो गठबंधन की तरफ सेक्युलर वोटर का झुकाव रहेगा ऐसे में कांग्रेस का पारंपरिक वोटर भी बीजेपी की तरफ रुख कर सकता है क्योंकि ब्राह्मण और क्षत्रिय वोट या तो बीजेपी में जाएगा या कांग्रेस में ऐसे में बीजेपी को सीधा फायदा होगा और भ्रमित अल्पसंख्यक वोट गठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा ऐसे में सीधा फायदा बीजेपी को होना तय है जो अभी काफी मुश्किल में है लेकिन अगर ऐसा हुआ तो भाजपा के नुकसान की भरपाई कांग्रेस से ही होगी।
कांग्रेस के लिए दूसरी स्थिति यह बनती है कि वह उत्तरप्रदेश के क्षेत्रीय दलों के साथ मैदान में आये और बीजेपी की 2014 की रणनीति का जवाब उसी शैली में 2019 में दे जिसके लिए उसे प्रदेश के सभी जिलों में संगठन रखने वाले शिवपाल यादव सहित बीजेपी से असंतुष्ट दलों के साथ जातिगत पार्टियों को एकजुट करना होगा यदि ऐसा होता है तो गठबंधन से नाराज़ वोटर सीधे तौर पर कांग्रेस की तरफ आएगा वहीं जहां बीएसपी मैदान में है वहां यादव के साथ मुस्लिम वोट 75% कांग्रेस के साथ खड़ा होगा और कांग्रेस के पारंपरिक वोट के साथ यह जिताऊ स्तिथि में आ सकता है जिसे देखकर हवा के साथ आने वाला वोट भी जुड़ेगा और जीत की संभावना अधिक हो जाएगी ऐसे बीजेपी को गहरा आघात लगेगा।
अभी गठबंधन में मुलायम सिंह यादव के रोज़ अलग शिगूफों की वजह से असमंजस की स्थिति बनी हुई है और ज़मीनी कार्यकर्ता भी भ्रम में है आज की सपा में 60% अखिलेश वादी और 40%मुलायम वादी लोग हैं जो मुलायम सिंह के गठबंधन से नाखुश होने पर अलग तरह की रणनीति पर काम कर रहे हैं ऐसा ज़मीन पर दिख रहा है यदि इन्हे सही जगह नहीं मिलती तो इनका झुकाव यदि बीजेपी की तरफ होता है तो भी कांग्रेस और गठबंधन दोनों के लिए घातक होगा।
अब फैसला कांग्रेस को करना है कि वह अखिलेश से संबंध निभाएगी या बीजेपी को हराएगी यहीं एक बात और ध्यान देने वाली है वह यह कि गठबंधन में अखिलेश की समाजवादी जो भी सीटें जीतेगी समर्थन बीजेपी को नहीं दे सकती क्योंकि उनके अस्तित्व का सवाल है तो कांग्रेस का यह डर तो नादानी स्वरूप है।