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हमारे प्यारे भारत में लोग भले कितनी नफरत फैलाना चाहें लेकिन यहां का भाईचारा तो अविश्वसनीय है यहां गंगा जमुनी तहजीब का असर कुछ ऐसा है जैसे बिना हवा के चिराग नहीं जल सकता और हवा ही रोशनी की दुश्मन भी करार पाई है।जरा देखिए तो सही 1949 से चले आ रहे बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद के दो केंद्र हिंदू और मुसलमान रहे एक तरफ हाशिम अंसारी का नाम चला तो दूसरी ओर बीजेपी विश्व हिंदू परिषद और बहुतेरे पूरा देश इस जंग का साक्षी बना और फिर सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।

सभी ने न्यायालय के फैसले की अपने अपने हिसाब से व्याख्या की ,लेकिन फैसले को स्वीकार कर आगे बढ़ गये ,यह तो सभी जानते थे और जानते हैं कि यह पूरा विवाद राजनैतिक प्रेरणा से उपजा था तो राजनीत के लिए इसे इस्तेमाल तो अभी भी किया जाना था लिहाजा पूरे देश में राम के नाम पर चंदा शुरू हुआ लोगों ने दिल खोल कर अपनी अपनी हैसियत और श्रद्धा के अनुसार दान दिया ताकि मर्यादा पुरषोत्तम के भव्य मंदिर का निर्माण हो सके ,हालांकि यह चंदा प्रकरण कोई पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले भी लोगों ने रामजन्म भूमि की लड़ाई के लिए करोड़ों रुपया दान दिया जिसको लेकर संत समाज ने विश्व हिंदू परिषद पर 1400 करोड़ के चंदे की हेर फेर का आरोप भी लगाया जिसे दबा दिया गया।

हालांकि यह कारनामा सिर्फ एक पक्षीय नहीं था, मुसलमानों ने भी बाबरी मस्जिद को लेकर करोड़ों रुपया चंदा दिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नामक एक विंग को, इन पैसों का कोई हिसाब किसी के पास नहीं है, हालांकि बहुतेरे जमीन से उठ कर गगनचुंबी इमारतों के मकीन हो गए ।
इस घोटाले में जमीयत उलमा हिंद का नाम भी आया जब मौलाना अबु तालिब रहमानी ने फर्जी वाउचर का मामला उठाया क्योंकि जमीयत ने जिन वकील को फीस के नाम पर इन्हें फाड़ा था जी हां राजीव धवन उन्होंने तो पूरा केस मुफ्त में लड़ा खैर ऐसा बहुत कुछ हुआ यह तो सिर्फ बानगी भर है ,दोनो पक्षों ने खूब नूरा कुश्ती की और सत्ता से लेकर चंदा तक की बंदर बांट हुई कई लोग लड़ते लड़ते बड़े बड़े संस्थानों के सर्वे सर्वा बने कई ने राजनैतिक सफर तय किया ।

अजब संयोग है या यह कहें की उसकी लीला है, देश में जहां प्राणवायु को लेकर अभी जंग खत्म भी नही हुई है अभी कई घरों में आंसुओं का सैलाब थमा भी नहीं है और पूरे देश में जनजीवन भी पटरी पर नहीं आया है सत्तालौलुप अपने कारनामों को अंजाम देने में जुट गए हैं ।
ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी से लेकर जीवन रक्षक दवाओं की ब्लैकमार्केटिंग तक और नकली दवाओं के नेटवर्क से धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों और अस्पतालों की लूट का दर्द कम भी नहीं हुआ कि देश को वापिस चुनाव की तरफ मोड़ दिया गया है। हालंकि इसमें राजनैतिक दलों का कोई दोष नहीं वह पूरी तरह निर्दोष हैं क्योंकि इस देश में क्रांति की संभावनाएं सदा से नहीं रही हैं इसका ज्ञान राजनेताओं को भलीभांति है, क्योंकि चाहे स्वतंत्रता संग्राम रहा हो या कोई और आंदोलन इस देश की मात्र 5% से ऊपर आबादी ने उसमे सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया यह कड़वा सच है ।यानी 95% में अधिकतर ने यह सोचा कि अगर ये दीवाने जीते तो लाभ हमें भी होगा अगर हारे तो हम जैसे जी रहे हैं जीते रहेंगे परेशानी इन्हें होगी ,यही आज भी जारी है इसीलिए देश के राजनेता निडर हो गए हैं उन्हें पता है कि 5% की आवाज को कैसे दबा देना है कैसे उन्हें गलत साबित करना है ।
इसका ताजा उदाहरण एक कृषि प्रधान देश में लंबा चल रहा किसान आंदोलन है ,जब देश में 70% लोग किसान है ऐसे में अपने हक के लिए मात्र 1% से भी काम लोगों का जुटना हमें बताता है कि हम कहां खड़े हैं ,जबकि पूरा देश महंगाई की चपेट में है सरसो का तेल 200 रुपए के पार जा चुका है वजह सब जानते है कि ऐसा क्यों हुआ जबकि इस बार तिलहन की रिकॉर्ड पैदावार हुई है ।
खैर जाने दीजिए मैं विषय से भटक रहा हूं आखिर हमें आपको इन फिजूल बातों से क्या मतलब हम भी तो उन 95% वालों में ही हैं जिन्हें क्रांति से नहीं बल्कि नफे या नुकसान से सरोकार है।

आइए बात करते हैं चंदे के ताजा गोलमाल पर ,जैसा आरोप है कि रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 2 करोड़ की जमीन 18.5 करोड़ में खरीद ली वहीं 20 लाख की जमीन खरीदकर ट्रस्ट को 2.5 करोड़ में बेची गई आदि। हमें इससे कोई सरोकार नहीं कि किसने कितने का गोलमाल किया यह जांच का विषय है और राजनीत का भी।

जांच से तो आप परिचित होंगे ही यहां लाशें भी कई बार बयान दर्ज करा देती हैं पता तो होगा आपको खैर जाने दीजिए ज्यादा दिमाग पर जोर मत दीजिए अभी तो कोरोना का डर समाया हुआ है ऐसे में अपना ध्यान रखिए।
वैसे जानकारी के लिए सुनिए नुजूल की जमीन भी लिखवा कर बेची गई है हुआ तो बहुत कुछ है लेकिन हमें आपको क्या होने दीजिए कोई चंदा लेने आयेगा तो फिर से जन्नत और स्वर्ग का सौदा समझ कर देंगे भले पड़ोसी भूखा सो जाए लेकिन चंदा तो देना कर्तव्य है।
अब आइए मूल विषय पर आते हैं जरा देखिए तो प्रभु की लीला जो मंदिर मस्जिद के नाम पर लड़ाते रहते हैं आज राम की भक्ति का दावा करने वाले रहमान के बंदे की पैरवी में खड़े हैं।

खबरदार किसी ने उंगली भी उठाई आप भले ही राम के उपासक हों लेकिन रहमान के इस बंदे को अगर कुछ कहा तो आप रामद्रोही कहलाएंगे, आखिर इससे ज्यादा भाईचारा अब कहां होगा बोलिए?
क्या आप अब भी कहेंगे कि देश में नफरत का माहौल है अब आप गाजियाबाद की घटना को लेकर मत बैठिए न मणिपुर में हुई ताजा माबलिंचिंग की बात कीजिए और सुनिए असम के जनसंख्या नियंत्रण को लेकर विद्वेशकारी कानून की बात भी मत कीजिए सब मुसलमान सुल्तान नहीं हैं न ,फिर सबके साथ एक व्यवहार भी संभव नहीं है सोचिए मुख्तार अब्बास नकवी,शाहनवाज हुसैन ,मोहसिन रजा जैसे आप मुसलमान नही हैं तो फिर सुल्तान जैसे भी आप नहीं हैं।
राम मंदिर चंदा प्रकरण हिंदू मुस्लिम धार्मिक सौहार्द्य की अद्भुत मिसाल है इसमें राम भक्तों ने रहमान के बंदे को साझीदार बनाया है जरा सोचिए कैसे डंके की चोट पर सुलतान कह रहा है कि उसकी राम में आस्था है तो रामभक्त उसे गले लगा रहे हैं ऐसे प्रेम के लिए 18.5 क्या अगर पूरे 3100 करोड़ चले जाएं तो भारत के लोगों को कोई गम नहीं क्योंकि यह बताता है कि इस देश में राम और रहीम के मानने वाले हर जगह एक हैं सिवा सियासत नफरत कोई नहीं चाहता ।

अब बताइए आपको घोटाले ने प्रेम दिखा कि नहीं तो जाने दीजिए पैसा तो हाथ का मैल है प्रेम पर फोकस कीजिए जब रामलला के मंदिर निर्माण में रहमान का बंदा सुलतान इतनी अहम भूमिका निभा रहा तो आंखे खोलिए और जैसे यह वहां एक हुए हैं आप धरातल पर हो जाइए यकीन मानिए नफरत को हरा कर ही एक मजबूत देश का निर्माण संभव है।
हर चीज में सिर्फ बुराई मत ढूंढिए घोटाले में प्रेम का पहलू देखे मैं राजस्थान वाले पहलू खान की बात नहीं कर रहा क्योंकि वह घटना भी इस देश के माथे पर एक बदनुमा दाग थी ।आप मुझे पागल कह सकते हैं लेकिन ये भी एक दृष्टिकोण है।
यूनुस मोहानी
8299687452,9305829207
younusmohani@gmail.com

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