धर्म के माध्यम से राजनीत यह कोई नई बात नहीं है देश में आम चुनाव होने वाले है और बीते वर्षों में जिस तरह की निराशा हाथ लगी है उसके बाद बदलाव की बात कहीं न कहीं चल रही है ।
हर प्रदेश में गठबंधन की बयार चल रही है सभी बीजेपी हराओ के अभियान में लगे हुए हैं ऐसे में एनडीए के सहयोगी भी भागने लगे हैं क्योंकि कोई भी डूबते जहाज़ की सवारी नहीं करना चाहता ।
उत्तरप्रदेश की राजनीति भी बदल चुकी है एक दूसरे की परस्पर विरोधी पार्टियां सपा और बसपा एक साथ आ खड़ी हुई है ऐसे में राममंदिर मुद्दे पर बीजेपी की हो रही किरकिरी ने माहौल और खराब किया है।
इधर गठबंधन में आयी पार्टियां आश्वस्त हो चली है अपनी जीत के प्रति वहीं राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ ने अपनी रणनीति बदल दी है जिसकी भनक भी लोगों को नहीं लगी।
सभी लोग कुंभ की भव्यता की बात तो करते रहे और जाकर स्नान कर आए लेकिन इसी बीच एक बड़ा काम हो गया।
अब पत्रकारों के बीच एक बात घूम रही है कि को कुंभ हो आया वह बीजेपी के अलावा किसी को वोट नहीं करेगा इस बात में कुछ सच तो ज़रूर है लेकिन कोई खुल कर बताने को तय्यार नहीं है ।
वैसे अब यहां इस बात की पड़ताल ज़रूरी है कि स्नान को आने वाले लोगों में किस वर्ग के लोग अधिक है तो यह दलित और पिछड़े वर्ग के लोग है जिनको साधने के लिए गठबंधन हुआ है अब अगर यहां से कुछ संदेश आरएसएस देने में सफल हो गया है तो बहनजी और मिस्टर मुस्कान अखिलेश यादव के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
गंगा की सौगंध खा कर पलट जाने का पाप हर कोई करने की हिम्मत नहीं कर सकता इस बात को समझना होगा बाकी सब जानते है यह राजनीत है भाई!!