बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और प्रथम चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होना है लेकिन अभी तक वैसी चुनावी गहमा गहमी आम मतदाताओं के बीच नहीं देखी जा रही है जैसे इससे पूर्व चुनावों में बिहार की ज़मीन पर देखी जाती रही है।चुनाव में किसी दल की कोई लहर साफ तौर पर दिखाई नहीं दे रही है ,और अभी तक वह मुद्दे भी अपना मूर्त रूप नहीं ले सकें हैं जिनपर कहा जाये कि बिहार विधानसभा का रण होना है।
नितीश कुमार के 15 साल के शासन के खिलाफ जो सत्ता विरोधी जज्बात होने चाहिये उसपर भी लोग बंटे हुए हैं ,लोग उनकी बुराई कर तो रहे हैं लेकिन साथ ही उनके गुणों को भी साथ में जोड़ रहे हैं और इस तरह स्पष्ट तौर पर वह उन्हें नकारते नहीं दिख रहे हैं ,लेकिन एनडीए के भीतर जो चल रहा है उससे ज़रूर कुछ परेशानी है, वहीं आरजेडी की बात नीचे तक हो रही है लेकिन यह बात भी सही है कि आरजेडी में उसके नेतृत्व का जातीय वोट बिहार में बहुसंख्यक वर्ग में सबसे अधिक है ,और यादव समाज दबंग प्रवत्ति का है और मुखर है जिसके चलते ज़मीन पर आरजेडी के बोल ज़्यादा सुनाई दे रहे हैं जबकि अधिकांश अन्य वोटर चुप्पी साधे हुए है और सभी को सुन रहा है ।
अभी तक भारतीय जनता पार्टी ने अपना पांसा नहीं फेंका है जिसकी उम्मीद प्रधानमंत्री के बिहार आगमन के बाद लगाई जा रही थी उसके बाद बिहार में गर्मी बढ़ने की उम्मीद थी हालांकि बिहारी मजदूरों का पैदल पलायन,महंगाई,मंदी ,बेरोजगारी इन सब के बाद भी मोदी खुद एक ब्रांड के तौर पर अभी बरकरार है और कुछ लोग बातचीत में इस तरह की बात भी करते हुए मिल रहे हैं कि देश के लिए मोदी बेहतर है ,लेकिन बिहार में बदलाव होना चाहिए।
कुछ लोग राम मंदिर निर्माण को भी बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाते हुए दिख रहे हैं, हालांकि यह लोग किसी दल के साथ नहीं है लेकिन धार्मिक आधार पर ज़रूर भारतीय जनता पार्टी से भीतर भीतर संतुष्ट हैं ,वैसे चुनाव के समय सी ए ए , एन आर सी का भूत फिर बाहर लाया गया है ,भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा है कि जनवरी 2021 से पूरे देश में सी ए ए., एन आर सी लागू होगा ,वहीं आंशिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को लेकर जिस तरह से चिंता जताई गई है पाकिस्तान का चुनाव में प्रवेश दिख रहा है।
राम मंदिर की धार तेज करने के लिए कुछ इलेक्ट्रानिक चैनल राममंदिर को लेकर आई एस आई एस (ISIS) की धमकी की खबर के साथ सवाल कर रहे हैं कि अब तय हुआ कि आतंकवाद का मजहब होता है ?, इस तरह के सवालात खड़े कर जनता को मूल प्रश्नों से हटाकर धर्म की राजनीति का पुराना हथकंडा बीजेपी आज़मा रही है।
तेजस्वी भी केजरीवाल की तर्ज पर अपनी चुनावी सभा में चप्पल फिकवाने का स्टंट आज़मा लिए, लेकिन इस पर उतनी हाय तौबा नहीं मची यह सब जनता बखूबी समझ रही है क्योंकि मीडिया फुटेज पाने का सबसे आसान और सुगम तरीका बन गया है यह, उनकी रैलियों में खूब भीड़ जुट रही है उसमें कितनी हेलीकॉप्टर देखने आ रही है कितनी तेजस्वी को सुनने इसका सही अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन भीड़ द्वारा हेलीकॉप्टर देखने की लालसा देख कर कहा जा सकता है सब गोलमाल है भई सब गोलमाल।
कांग्रेस अपनी धीमी चाल,टिकेट बंटवारे में कार्यकर्ताओं की अनदेखी,खराब उम्मीदवारों के चयन के चलते पिछड़ती दिख रही है, यदि वह अकेले लड़ती और ज़मीन पर कार्य करने वाले लोगों को उम्मीदवार बनाती तो हालात बेहतर होते, लेकिन अभी तो वह आर जे डी के वेंटिलेटर पर है इससे अधिक नहीं ।
वहीं चिराग पासवान का लगातार नितीश पर हमला जहां महागठबंधन को ताकत दे रहा है वहीं भारतीय जाता पार्टी के बड़े भाई वाले ख्वाब को और अधिक शक्ति प्रदान करता दिख रहा है।
वैसे कांग्रेस की रैलियों में भी भीड़ कम नहीं है और कन्नहैया कुमार को भी लोग खूब सुन रहे हैं, ज़मीन पर मगर इन सबके बावजूद भी मूल प्रश्न कहीं नहीं है ,लोग बाग भी मूल प्रश्नों पर बात करते नहीं सुने जा रहे हैं कुल मिलाकर पलायन और कृषि बिल कोई मुद्दा नहीं है ,मुद्दा है तो बस नितीश को हटाना है, लोग सिर्फ बदलाव की बात कर रहे है वहीं इस पूरी चुनावी चौसर में प्यादे अहम रोल निभा रहे हैं एक तरफ पप्पू यादव की फील्डिंग है ,एक तरफ ओवैसी खड़े हैं जो सीधे तौर पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचा रहे हैं और अपना भी कोई फायदा करते नहीं दिख रहे ,लेकिन फिर भी ओवैसी का गठबंधन अधिक मजबूत है क्योंकि उनके साथ मायावती और उपेन्द्र कुशवाहा खड़े हैं ,जिससे उनके गठबंधन की तरफ कुछ ताकत दिख रही है मगर वह विजय श्री प्राप्त कराने वाली नहीं है, वहीं पप्पू यादव ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है और कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के राजनैतिक धड़े एस डी पी आई के साथ हाथ मिलाकर अपनी सभी संभावनाओं को मानों विराम दिया है, लेकिन यह गठबंधन भी आरजेडी और जदयू दोनों के वोट काट रहा है।
हर सीट पर अलग लड़ाई देखने को मिल रही है कहीं लोग दल को वोट देने के मूड में है लेकिन प्रत्याशी से नाराज़गी के चलते ऐसा विकल्प तलाश रहे हैं जो उनके हिसाब से सही है,और ऐसे में निर्दलीय उम्मीदवार भी कई जगह चौंका सकते हैं।
इस पूरी चुनावी बहस में जहां सभी पार्टियों को नफा नुकसान के समीकरण समझने के प्रयास हो रहे हैं वहीं प्यूरलस पार्टी को चुनावी विश्लेषकों द्वारा नजर अंदाज किया जा रहा है ,और उनके प्रदर्शन पर लोग नजर नहीं रख रहे हैं जबकि सच यह है कि इस नई नवेली पार्टी ने जिस तरह का प्रयोग किया है ऐसी ऊहापोह की स्थिति में जब कहीं कोई वास्तविक लहर नजर नहीं आ रही है कोई चमत्कार दिखे तो हैरान होने जैसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि सभी राजनैतिक दलों से युवा कहीं न कहीं नाराज़ हैं और यह नाराज़गी अगर पढ़ा लिखा नेतृत्व तलाश करने की तरफ मुड़ती है तो परिणाम बदले दिखेंगे,और यह बड़ी बात नहीं होगी कि बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान इस दल से होता हुए दिखे, क्योंकि सबका ध्यान चिराग की तरफ है कि वह जदयू का नुकसान कर रहे हैं ,वहीं पप्पू यादव और ओवैसी दोनों मिलकर महागठबंधन और एन डी ए दोनों को कहीं न कहीं नुकसान बराबर से दे रहे हैं क्योंकि जहां ओवैसी लड़ रहे हैं वहां महागठबंधन का नुकसान है और जहां कुशवाहा हैं वहां एनडीए को कुछ डेंट लगेगा ज़्यादा नुकसान जदयू को होगा लेकिन पुष्पम प्रिया की पार्टी बीजेपी को नुकसान दे रही है।
ऐसी स्तिथि में एक बात दिख रही है कि बिहार में अगर जदयू का नुकसान अधिक होता है तो नितीश मुख्यमंत्री नहीं होंगे वहीं आरजेडी के साथ भी यह मामला है कि उनकी सीट अधिक होगी लेकिन सरकार बनाने के लिए काफी नहीं होगी ऐसे में या तो महाराष्ट्र फार्मूला दोहराया जायेगा या फिर बीजेपी का मुख्यमंत्री जदयू के सहयोग से होगा,मुसलमान जो अभी बंटे हूंए हैं और अधिक संख्या में महागठबंधन के साथ बड़ी नराजगी के साथ भी हैं अगर बीजेपी को बड़े भाई की भूमिका से रोकने का प्रयास करते हुए जहां जदयू है उन सीटों पर उसके साथ खड़े होते हैं तो तस्वीर बदल सकती है और भारतीय जनता पार्टी का गेम प्लान फ्लॉप हो सकता है ,क्योंकि जदयू अगर बहुत अधिक नुकसान नहीं उठाती तो बीजेपी का दबाव कम होगा वहीं इस रणनीति से महागठबंधन में भी तेजस्वी की ताकत निरंकुश वाली नहीं रहेगी।
अब देखना यह है कि आखिर परिणाम क्या होता है लेकिन यह बात तय है कि लहर जैसी कोई चीज नहीं है और अफसोस यह कि जनता अपने मूल मुद्दों से खुद भी दूर है और धर्म और जाति के नशे में झूम रही है परिणाम 10 नवंबर को आना है ।
यूनुस मोहानी
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