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सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज सीट 2017 में अपने किए गए निर्णय को लेकर काफी चर्चा में रही है यही वह सीट रही थी जहां जीत का अंतर सबसे कम था डुमरियागंज संसदीय क्षेत्र से जगदम्बिका पाल सांसद हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में नेपाल के अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित डुमरियागंज विधानसभा जहां सभी धर्मों की मिली-जुली आबादी रहती थी वर्ष 2017 के आंकड़ों के मुताबिक डुमरियागंज विधानसभा में 419016 कुल मतदाता है,इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 217592 है जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 184294 है, वहीं जातिगत आंकड़ों के मुताबिक डुमरियागंज में लगभग 29 प्रतिशत पिछड़े मतदाता, 31 प्रतिशत मुस्लिम, 16 प्रतिशत दलित और 14 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता हैं।2017 विधानसभा में डुमरियागंज सीट से राघवेंद्र प्रताप सिंह पूरे प्रदेश में सबसे कम वोटों से जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। राघवेंद्र प्रताप सिंह को इस चुनाव में 67227 (33.35 प्रतिशत) वोट मिला था,वहीं बहुजन समाज पार्टी से सैयदा खातून को 67056 (33.26 प्रतिशत) वोट मिला था और समाजवादी पार्टी से रामकुमार यादव को 52222 वोट मिला था।
यहां से इस बार समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर आई सैयदा खातून को अपना उम्मीदवार बनाया है और रामकुमार यादव को टिकट नहीं दिया है जिससे एक तरफ सैय्यदा खातून से दलित वोटरों में नाराज़गी है वहीं यादव समाज भी खुश नहीं दिख रहा है वहीं इस विधानसभा की शान माने जाने वाले और बड़े कद्दावर नेता मलिक कमाल यूसुफ के बेटे इरफान मलिक ने भी अपनी दावेदारी मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन से ठोक दी है जिसके बाद सभी उम्मीदवारों के समीकरण गड़बड़ा गए हैं।
क्योंकि मलिक कमाल यूसुफ इस क्षेत्र में वह नाम हैं जिसे बच्चा बच्चा जानता है और उनका सम्मान करता है क्षेत्र के हर घर तक उनकी पैठ मानी जाती है और वही एक अकेले ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें सभी लोग वोट करते हैं सामजवादी विचारों को अपने जीवन में जीने वाले इस परिवार की अपनी एक विरासत है यही वजह रही जब साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने मलिक कमाल यूसुफ का टिकट काटा तो उन्होंने पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की इस बार खुद मलिक कमाल यूसुफ काफी बीमार हैं और उनका बेटा इरफान मालिक मैदान में है लोगों की हमदर्दी उसके साथ दिखाई पड़ रही है।
ब्राह्मण वोटर भी मुखर होकर इरफान मलिक के पक्ष में बोल रहे हैं और उनके साथ जनसंपर्क करते देखे जा रहे हैं वैसे भी सन 2017 के बाद से क्षेत्र में बीजेपी के द्वारा जिस तरह ध्रुवीकरण किया गया उसे अभी भी जारी रखने का प्रयास किया जा रहा है जिससे जहां सेक्युलर लोग एकजुट होकर इरफान मलिक के पक्ष में खड़े हो रहे हैं वहीं इस विधानसभा में मौजूद लगभग 1,50,000 मुस्लिम वोटर भी पतंग उड़ाने के प्रबल मूड में दिखाई दे रहा है ।
लोगों में समाजवादी पार्टी के प्रति नाराज़गी इसलिए भी ज्यादा है कि उसने कुछ दिन पहले बहुजन समाज पार्टी छोड़ कर आई सैय्यदा खातून को टिकट थमा कर आम कार्यकर्ताओं को छला है वहीं उनके महबूब नेता जोकि काफी बीमार हैं और बिस्तर पर हैं का अपमान किया है लिहाजा लोग शीर्ष नेतृत्व का अहंकार तोड़ने का मन भी बना रहे है,युवा मुस्लिम मतदाता वैसे भी ग्रामीण अंचलों में अपनी कयादत की तरफ सोचने लगा है और इन सारी बातों का सीधा लाभ इरफान मलिक को मिलता दिख रहा है यहां बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी को लेकर युवाओं में विशेष आकर्षण ने चुनावी फिज़ा को बिलकुल बदल दिया है।
सैयदा खातून के लिए एक यह सोच भी घातक होती जा रही है कि 2017 में जब वह बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ी थी और मलिक कमाल यूसुफ का भी समर्थन उन्हें प्राप्त था मुस्लिम मतदाताओं के एकजुट रहने के बावजूद भी वह विजय पताका नहीं लहरा सकी तो इस बार उनकी जीत को लेकर लोगों में पहले से ही बड़ी दुविधा है जो उनका कमजोर पक्ष बनकर निकला है ।
ब्राह्मण वोटर परंपरागत रूप से इस सीट पर मलिक कमाल यूसुफ के समर्थन में हैं उन्हें किसी दल से नहीं व्यक्ति से मतलब है और दूसरी ओर एक हमदर्दी भी इस बार इरफान मलिक के साथ है ऐसे में उनकी पतंग बहुत ऊंचाइयों पर दिख रही है।
समाज के सभी वर्गों का समर्थन जिस तरह इरफान मलिक को मिल रहा है उससे सीधे तौर पर यहां लड़ाई बीजेपी और मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन के बीच सिमट गई है ।और बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी के बीच तीसरे नंबर की लड़ाई दिखने लगी है।
कांग्रेस सांकेतिक तौर पर चुनाव मैदान में है l फिलहाल पूरे क्षेत्र में इस दिलचस्प मुकाबले को लेकर खूब चुनावी चकल्लस चल रही है।