आज 1 मई है यानी अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस है और आज ही के दिन अपने ही देश में प्रवासी कहलाए जा रहे मज़दूर का यही वाजिब सवाल है ,वह पूछ रहा है देश के मुखिया से क्या मज़दूर ‘हम भारत के लोग’ की परिधि में नहीं आते? उसका अजब सवाल है कि क्या हमारे बच्चे इस देश का भविष्य नहीं? अब इस बेचारे अज्ञान को कोई कैसे जवाब दे कि नहीं बिल्कुल नहीं इस देश के संसाधनों में तुम्हारा कोई हक नहीं तुम मज़दूर हो ,गरीब हो और तुम्हारी गरीबी की वजह हमें पूरे विश्व में शर्मिंदा होना पड़ता है ,तुम न खुद के बारे में सोचते हो न देश के अमीरों के सम्मान के बारे में ,जब वह देश के बाहर घूमने जाते हैं तो कई बार उन्हें तुम्हारी गरीबी की तस्वीर दिखा दी जाती है ,लेकिन तुम हो कि कुछ समझते ही नहीं।
जब गांव में थे तो जमीदार की गुलामी में मौज कर रहे थे ,जब कुछ दिक्कत होती तो साहूकार दरियादिली दिखाकर तुम्हारी बेकीमत ज़मीन गिरवी रख मदद कर देता था, मां की शादी में जो पायल और चांदी की बिछिया मिली थी उसके भी तो 50 रुपए ले आए थे तुमने अभी तक उसे अदा नहीं किया अब वह रकम 5 हज़ार हो गई है, उसको चुकाने की कोई जुगत नहीं बनी कल साहूकार घर आया था न जाने क्या क्या कह रहा था साथ में धमकी भी दे गया है कि पैसे नहीं मिले तो मरियल सा बैल और झोपड़े की जगह भी ले लेगा, अम्मा ने संदेश कहलाया था लेकिन अब तो शहर में भी कोई धंधा नहीं है कैसे कर्ज चुकेगा लगता है अब गांव भी पराया ही समझो।
शहर को अपने कंधो पर खीचने वाले रामदीन अब खुद अपना शरीर भी नहीं खींच पा रहे हैं रोटी खाए तीन दिन हो गए हैं, भूखे पेट अपनों के बीच पहुंचने की जंग जारी है लेकिन वहां मुनिया से क्या कहेंगे उसके हाथ पीले करने थे ,यहां तो जीने के लाले है शहर ने तो प्रवासी कह दिया है बेटी की सूनी आंखें और ख़ामोश लब क्या क्या सवाल पूछेंगे क्या जवाब दूंगा?बस इसी सोच में गुम चलते जा रहे हैं।
यह कोई कथा नहीं और न कोई कहानी यह सच है भारत के मज़दूर का,यह पीड़ा है देश के किसान की जिसका सोना कौड़ी मोल है ,यह सिर्फ गरीब है हिन्दू या मुसलमान नहीं लेकिन सुनिए एक सच और है इसका धर्म है विधायक जी जानते हैं ,नेता जी जानते हैं, वहीं विधायक जी जो क्षेत्र में बसने वाले हर धर्म के व्यक्ति के जन प्रतिनिधि हैं आज इनको धर्म के आधार पर देखते है, शायद उनके इस प्रयास से गरीबी कम हो सके।लोगों को जागरूक करते हैं मुसलमानों से सब्जी फल न खरीदो,तो कभी किसी गरीब को धर्म के आधार पर दुत्कारते हैं।
श्रद्धालु घर पहुंच रहे हैं बच्चे भी मगर मज़दूर अभी सियासी और सरकारी खेल में हैं यह कोई अभिनेता तो हैं नहीं जिनकी मौत से सबको पीड़ा हो दर्द छलके उनका भी जो पड़ोसी की मौत पर खुशी मना लेते हैं।
ऐसे चर्चे कि असली खबर कहीं खो गई बिल्कुल गरीब की लाश की तरह जिसका कोई पता नहीं, खबर वहीं 68 हज़ार करोड़ वाली आपको पता तो होगी कि बेचारे अमीरों के कर्ज को सरकार ने बट्टे खाते में डाल दिया है,यानी मान लिया गया है कि अब यह नहीं मिलेगा ,रुचि सोया इंडस्ट्रीज का भी 2212 करोड़ रुपए का कर्ज इसी खाते में है यह वहीं कंपनी है जिसे अब महान देशभक्त आदरणीय बाबा रामदेव की पतंजलि ने 2019 में अधिग्रहीत कर लिया ऐसे ही दूसरे बेचारे अमीरों के कर्ज इसमें शामिल है ,यह कोई किसानों को दिया गया ऋण नहीं है जिसकी अदायगी न होने पर बेटी की शादी के मंडप से किसान को पुलिस ले जाये और इस अपमान को सहन न कर पाई अभागन बेटी फांसी पर झूल गई और वहां हवालात में इस खबर को सुन बाप हार्ट फेल से मर गया ऐसी बहुत सी घटनाएं हो जाती है देश में खैर जाने दीजिए सरकार ने अमीरों की सुध ली है और लेनी भी चाहिए क्योंकि उन्हीं से देश है शहर है गांव है आपका क्या आप मज़दूर है सिर्फ मज़दूर।
आप घर बनाते हैं लेकिन आपको सड़कों पर ही रहना है,आप फैक्टरी चलाते हैं लेकिन आपको आपकी मजदूरी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा,आप सिर्फ एक मशीन हैं जिनसे जो काम कहा जाए उतना करें और बदले में कुछ न चाहें सिवा उतने के जिससे आप ज़िंदा रहें।
मैं बहुत से दार्शनिकों की बातें कर सकता हूं उनके कथन कोड कर सकता हूं लेकिन मुझे लगता है कि उसकी कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि मज़दूर के पैरों के छाले ,गर्भवती गरीब और सर पर ईंटों के पहाड़ बहुत कुछ कहते हैं,हांड कपा देनी वाली ठंडी सुबह में जब आप राज़ाई में दुबके होते हैं रूम हीटर कि गर्मी से कमरा गर्म होता है उसी सर्द सुबह में कलावती की 8 माह की मुन्नी बालू के ढेर पर कुछ कपड़ों के नाम पर चीथड़े लपेटे खेल रही है और कलावती कहीं सर पर तस्ला लेकर चली जा रही है आपने तब जो महसूस किया होगा कुछ ही पल के लिए सही जो विचार आया होगा वहीं दर्शन है जो इस पीड़ा को बयान कर सकता है।
आपको लगता होगा मैं फिजूल की बात करता हूं कुछ ज़्यादा ही काल्पनिक हूं लेकिन आप ही दिल पर हाथ रख कर कहिए कि क्या मज़दूर दिवस की बधाई देने पर यह तस्वीर बदल जायेगी? आखिर इनके लिए कौन सोचेगा? क्या यह देश के नागरिक नहीं? क्या देश की सरकार का इनके प्रति कोई कर्तव्य नहीं ?
और अगर है तो इनके सवाल का जवाब दीजिए न गांव अपना,न शहर अपना,न देश,तो अपना क्या?
यूनुस मोहानी
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