जिस अल्लाह के हुक्म से हम रमज़ान के तीस दिन रोज़े रखते है, नमाज़ पढ़ते हैं उसी ने हमें कुरान मजीद में स्पष्ट बता दिया है कि ‘ए ईमान वालों तुम पर रमज़ान के रोज़े इस लिए फ़र्ज़ किए गए हैं ताकि तुम मुत्तकी बन जाओ’ अर्थात तुम चरित्रवान बन जाओ।
कुरान ने यह स्पष्ट कर दिया कि रोज़े हमे चरित्रवान बनाने के लिए ही हम पर फ़र्ज़ किए गए है। इसलिए हमे हमेशा याद रखना चाहिए कि मात्र पांच वक्त की नमाज़ और कुरान पढ़ लेने और सुबह की अज़ान से पहले खाना पीना छोड़ देने और रात शुरु होने के बाद खाना पीना फिर से शुरू कर देने के लिए ही रोज़े फ़र्ज़ नहीं किये गए है।
बल्कि पूरे एक महीने चरित्रवान बनने की प्रेक्टिस कर के चरित्रवान बन जाने के लिए हम पर रोज़े फ़र्ज़ किया गए हैं, रोज़ा रख के हम ऐसे बन जाए कि हमारे विचार पवित्र हो जाए, हम अपने अंदर गलत विचारों को न पनपने दे,जब भी सोचे मानवता की भलाई और सच और हक़ बोलने के लिए सोचे, ऐसे नेक इंसान बन जाए कि अपने मुंह से किसी को गलत बात न कहे जब भी बोले सच और हक बोले,प्यार से बोले,अपने हाथों से किसी को तकलीफ न दें न गलत नापे,न तौलें न गिनती गलत गिने, न मिलावट करे. जब भी नापे तौले या गिने तो ठीक से नापे तौले और गिने,किसी बेगुनाह पर कभी हाथ ना उठाए बल्कि अपने हाथों से ज़रूरत मंद की मदद करें,पैरो को गलत जगह जाने से रोके,सही जगह जाने और पहुंचने की कोशिश करे,आंखो से गलत चीज़े न देखे,न पढ़े न ही गलत इशारे करे बल्कि अपनी आंखो से अच्छी चीजों को देखे,अच्छा लिट्रेचर पढ़ें और समझे,हम अपने कानों से गलत और गंदी बातें न सुने,बल्कि अच्छे विचार और अच्छी बातें ध्यान दे कर सुने।
रोज़े में जहां भूख और प्यास पर पाबंदी है वहीं इंसान को हाथ,पैर, मुंह,आंख,कान और विचारों को अपने कंट्रोल में रखने पर भी बल दिया गया है।रमज़ान के महीने में कुरान को पढ़ने पर बहुत अधिक बल दिया गया है और कुरान में ही कुरान मजीद पढ़ने वाले को ठहर ठहर कर और सोच समझ कर पढ़ने और गौरों फिक्र करने पर ख़ास बल दिया गया है इसका मुख्य कारण यह है कि पढ़ने वाला जब तक अच्छी तरह समझ नहीं सकेगा और गौर नहीं करेगा कि अल्लाह ने किन किन बुरी बातों से उसे रोका है और किन किन अछी बातों को करने का आदेश दिया है उसका पालन किए बगैर वह चरित्रवान नहीं बन सकता और चरित्रवान बने बगैर कोई भी व्यक्ति सच्चा रोजदार नहीं बन सकता और जब तक वह चरित्रवान नहीं बन जाता वह ना तो अपने आप को फायदा पहुंचा सकता है और ना ही अपने समाज को ही फायदा दे सकता है।
इसी लिए सच्चा रोजदार ठहर ठहर कर और समझ समझ कर कुरान पढ़ता है और कुरान में बताई हुई बातों पर गौर फिक्र कर के अमल करता है और अपने शरीर और दिमाग दोनों पर स्वतः कंट्रोल के चरित्रवान बनने का पर्यास करता है।
हर कोई जानता है कि भूख और प्यास में क्या तकलीफ होती है इसका एहसास भी रोज़े में हर एक रोजेदार को करना आवश्यक है और सिर्फ एहसास ही करना काफी नहीं है बल्कि इस एहसास के बाद भूखों की भूख मिटाने का प्रयास भी करना चरित्रवान बनने के लिए अति आवशयक है।
मालदार रमज़ान मे अपने माल की ढाई प्रतिशत ज़कात भी अल्लाह के ही आदेश पर निकालता है उसका मुख्य कारण यह है कि अल्लाह ने उसे अपने माल से गरीबो की भूख और गुरबत मिटाने का स्पष्ट आदेश कुरान में दे रखा है। इस लिए ज़कात निकालने वाले को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जकात की धनराशि सर्व प्रथम गरीबों की गुरबत दूर करने में ही खर्च हो।उसके बाद ही अन्य कार्य में खर्च हो हमे इस बात का पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिए कि ज़कात की राशि ज़रूरत मंद और गरीबों तक पहुंच जाए और किसी तरह के बिचौलिए और कॉमिशन एजेंट उसे किसी भी हाल मे डकारने ना पाएं।
कुरान मजीद में बताए गए स्पष्ट निर्देशो को अगर ठहर ठहर कर पढ़ा जाए और उस पर रमज़ान के तीस दिनों में अमल करना अपने ऊपर फ़र्ज़ कर लिया जाए तो निश्चित ही हर रोज़दार ही नहीं हर इंसान चरित्रवान बन सकता है और ऐसे ही चरित्रवान व्यक्ति समाज से बुराई, गुरबत और भुखमरी को दूर कर के अपने चरित्र के बल पर न्याय और शांति प्रिय समाज की रचना कर सकते है।
हर एक रोज़दार का यही कर्तव्य है कि जिस ईश्वर के कहने से वह तीस रोज़े रखता है उसी ईश्वर के कहने से वह अपने आप को चरित्रवान बनाए
लोगों की गुरबत और भूख को मिटाने का पूर्ण प्रयास करे।
शौकत भारती
अध्यक्ष असर फाउंडेशन

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