अभी हालिया लखनऊ में एक पालतू पिटबुल प्रजाति के कुत्ते ने अपनी ही मालकिन जो उसे हर वक्त अपने साथ रखती थी खाना देती थी नोच कर मार दिया यह एक हादसा है लेकिन इसने ऐसे समय में सबको सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है कि आखिर हम ऐसे हिंसक जानवर क्यों घरों में पालने लगे हैं जो किसी भी समय अपने मालिक पर ही हमला कर सकते हैं।

इस घटना को एक पालतू जानवर के हिंसक हो जाने पर अपनी मालकिन की हत्या के तौर पर न देखते हुए थोड़ा व्यापक रूप में देखना होगा अफगानिस्तान में रूस की फौजों के पैर उखाड़ने के लिए जिस तरह तालिबान नाम का संगठन बना और उसे बड़े पैमाने पर हथियार और प्रशिक्षण दिया गया आखिर उसने पहले रूस को अपनी धरती से भगाया और बाद में अपने बनाने वालों के खिलाफ आ खड़ा हुआ और अंत यह हुआ कि अमरीकी फौजों के पैर उखड़ गए करोड़ो डॉलर का नुकसान उठा कर अमेरिका खाली हाथ अफगानिस्तान से निकल गया और उसके लिए काल उसी के द्वारा पोषित किया गया संगठन ही बना।

भारत में भी अब यही प्रयोग सत्ता की खातिर दोहराया जा रहा है एक हिंसक भीड़ को तैयार किया गया है जो समय समय पर राजनैतिक विचार से असहमति जताने वालों के खिलाफ नफरती मुहिम चला रही है और हिंसा कर रही है दूसरी ओर सत्ता में बैठे लोग उन्हें आंखे मूंद कर समर्थन करते दिखते हैं गाहे बगाहे मंत्री सांसद और विधायक भी इनके सुर में सुर मिलाते सुने जाते हैं जिससे इनका मनोबल और ऊंचा होता जा रहा है पुलिस प्रशासन भी इनकी ओर से आंख मूंदे रहता है ,आए दिन सत्ता की लालच में इस भीड़ का इस्तेमाल किया जा रहा है ,कभी इस उन्मादी भीड़ का शिकार कोई अखलाक़ होता है तो कभी तबरेज अंसारी कभी निशाने पर पहलू खान आता है कभी हाफिज जुनैद ,कभी यह भीड़ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का नाम लेकर दूसरे मजहबों की इबादतगाहों पर भगवा फैराती है तो कभी किसी बुजुर्ग की मजार तोड़ती दिखती है,

यही हिंसक भीड़ किसी पादरी ग्राहम स्टेन को उसके बच्चों सहित जिंदा जला देती है तो कभी इसका कहर निहत्थे दलितों की बस्तियों पर टूट पड़ता है और कभी निशाने में होते हैं आदिवासी इसका कोई अपना नहीं होता इसलिए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह भी इसके निशाने पर आ जाते हैं। भीड़ तो बस भीड़ होती है उसका कोई मजहब नहीं होता लेकिन हिंसक भीड़ कभी संयमित भी नहीं रहती है।हिंसक दरिंदों के समर्थन में रैली निकालकर उनका प्रोत्साहन उनका माल्यार्पण कर उनकी हौसलाफजाई एक भयंकर खतरे की ओर इशारा कर रही है।
आइए पिटबुल के विषय में कुछ जानकारी हासिल कर ली जाए ताकि हम आने वाले खतरे को बखूबी समझ सकें दुनियाभर के कई देशों में प्रतिबंधित पिट बुल प्रजाति के कुत्ते सबसे खतरनाक और आक्रामक माने जाते हैं। सबसे ज़्यादा अटैक करने के मामले सामने आने के बाद ज़्यादातर लोग इस ब्रीड को पालतू डॉग के रूप में घर पर रखने से डरते हैं। बुलडॉग और टेरियर नस्ल के विदेशी कुत्ते से क्रॉसब्रिडिंग के कारण पिटबुल डॉग में बुलडॉग जैसी ताकत और टेरियर नस्ल के कुत्ते जैसी क्षमता पाई जाती है। पिटबुल नस्ल के कुत्ते की पहचान करना बहुत ही कठिन होता है। अमेरिकन पिटबुल टेरियर, अमेरिकन स्टैफर्डशायर टेरियर, अमेरिकन बुली, स्टैफर्डशायर बुल टेरियर जैसे कुत्तों की कई नस्लें पिटबुल श्रेणी के अंतर्गत आती हैं।

पिटबुल मेल डॉग की ऊंचाई 18 से 22 इंच और औसतन वजन 16 से 26 किलोग्राम होता है तथा फीमेल डॉग की ऊंचाई 16 से 20 इंच और वजन 15 से 22 किलोग्राम व उम्र 12 साल तक होती है। फीमेल डॉग एक बार में औसत 5 से 10 बच्चों को जन्म देती है। इसकी खोपड़ी बड़ी, चेहरे की मांसपेशियां व जबड़े विकसित होते हैं और ये सिर को बहुत अधिक हिलाते हुए मज़बूती व दबाव के साथ गहराई तक काटते हैं। बाल भी छोटे होने के कारण इनकी ज़्यादा केयर नहीं करनी पड़ती है। इनमें से कई नस्लों को मूलरूप से क्रॉस बाउंडिंग, बुल बाइटिंग, बैल जैसे बड़े जानवरों से लड़ने के लिए विकसित किया गया था, लेकिन खूनी खेल में कुत्तों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण इनका इस्तेमाल पालतू जानवर के रूप में किया जाने लगा।
आप सोच में पड़ गए होंगे कि में आखिर हिंसक भीड़ के साथ पिटबुल की बात बार बार क्यों कर रहा हूं ,आखिर क्यों आपको इसका इतिहास बता रहा हूं तो सुनिए मेरा मकसद सिर्फ आपको यह बताना है कि यह कुत्ता कितना खतरनाक है कि इसे पालना खतरे से खाली नही यह लड़ाई के लिए तैयार किया गया अब दूसरी तरफ उन्मादी भीड़ को देखिए शायद कुछ समझ में आए ।

और एक बात आपसे और कह दूं इस उन्मादी भीड़ को कतई किसी धर्म के चश्मे से मत देखियेगा क्योंकि हिंसक और उन्मादी भीड़ का धर्म नहीं होता कुछ भूख को हराने के लिए इसका हिस्सा होते हैं कुछ बेरोजगारी से पनपे अवसाद के कारण और कुछ राजनैतिक साजिश का शिकार धर्मांध इसके सिवा कोई और नहीं इनका धर्म से कोई रिश्ता नहीं होता क्योंकि अगर धर्म के मर्म को यह समझते तो हिंसा का मार्ग नहीं अपनाते,खैर यह एक लंबी बहस है अभी हम बात कर रहे हैं हिंसक भीड़ और पिटबुल की आइए वापस अपने मुद्दे पर आते हैं ।

अब आप भलीभांति पिटबुल का चरित्र और हिंसक भीड़ का चेहरा पहचान रहे हैं तो आइए अब आपको रूबरू कराते हैं हालिया लखनऊ में खुले लूलू माल विवाद की हकीकत से उत्तर प्रदेश में यह माल विदेशी निवेश के माध्यम से खुला है भारतीय मूल के यूसुफ अली जोकि अब आबूधाबी के नागरिक हैं द्वारा 2000 करोड़ का निवेश कर लखनऊ में एशिया का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल खोला गया है जिससे जहां लखनऊ की शान में इजाफा हुआ है वहीं रोजगार भी मिला और व्यापार भी बढ़ा लेकिन मॉल के खुलते ही यहां कुछ लोगों द्वारा नमाज़ पढ़ लिए जाने को लेकर विवाद हो गया और उसके बाद यहां हनुमान चालीसा का पाठ करने और सुंदर काण्ड पढ़ने की धमकी शुरू हो गई अब जरा कोई धर्म जानने वाले से पूछ कर बताइए या अपने विवेक से बताइए कि क्या नमाज़ ,हनुमान चालीसा या फिर सुंदरकांड का पाठ धमकी का विषय हो सकते हैं ,नमाज़ या पूजा या मंत्रोचारण दिल को सुकून देते हैं भयभीत नहीं करते।

लेकिन अब यह डराने के लिए धमकी के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं,माल खुलते ही नमाज़ और पूजा की जंग छिड़ गई कुछ लोगों ने माल के बहिष्कार की बात कह दी और प्रोपेगंडा फैलाने वाले मीडिया ने इस खबर पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया अब सवाल यह है कि इस हिंसक और अराजक भीडतंत्र में सरकार की विदेशी निवेश को आकर्षित करने की अथक कोशिश पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
क्या कोई उद्योगपति अपनी गाढ़ी कमाई ऐसे प्रदेश में निवेश करने को तैयार होंगे जहां अनियंत्रित भीड़ विवाद करती हो आपका जवाब भी न में होगा जब पूरा विश्व वैश्विक मंदी के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है ऐसे समय में यह नासमझी क्या नए रोजगार के अवसर दिला पायेगी? नहीं बिलकुल नहीं जब निवेश नहीं आएगा संयंत्र नहीं लगेंगे नए कार्यालय नहीं खुलेंगे तो भला कैसे नए पद सृजित होंगे और अगर रोजगार नहीं होगा तो युवाओं में अवसाद बढ़ेगा ,भुखमरी बढ़ेगी और बढ़ेगी अराजकता अभी गाहे बगाहे जो हम धर्म का चश्मा लगाकर इस हिंसक भीड़ का समर्थन कर देते हैं कल यही भीड़ हमारी तरफ भी दौड़ेगी जैसे आज सरकार के नियंत्रण से लगभग बाहर चुके हैं यह उन्मादी ,सरकार इनपर सख्त नहीं हो सकती वोट का सवाल है और हाथ पर हाथ धर का नहीं बैठ सकती क्योंकि इसमें सबका नुकसान है।

अब हिंसक भीड़ ने ऐसे हिंसक पिटबुल का रूप धारण कर लिया है जो अपने ही मालिको के लिए परेशानी का सबब बन गई है आइए अभी समय है धर्म का चश्मा उतार कर इस सच को समझें वरना खतरा बड़ा है सरकार को भी इसे गंभीरता से सोचना होगा क्योंकि प्रदेश को निवेश की जरूरत है और अराजकता के बीच निवेश नहीं आता।

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