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जिस तरह के हालात देश में बने है उसने जहां नफरतों का बाजार गर्म किया है वहीं लोगों का मज़हबी रहनुमाओं से भरोसा चकनाचूर हो चुका है,हालांकि यह एक अच्छा संकेत है कि कौम मज़हबी ठेकेदारी करने वाले कौम के दलालों के चंगुल से बाहर निकली है, वहीं दूसरी तरफ एक नई परेशानी ने भी दस्तक दे दी है ,यह परेशानी भी अजब है जिस चीज से दामन छुड़ा कर राहत की सांस ली उसी की कमी से परेशान भी है।
दरअसल मज़हबी कयादत की अय्यारी और निकम्मेपन ने उसे बेपनाह ठगा और हमेशा उसके जज़्बात का फायदा उठाकर सरों का सौदा सियासी लुटेरों के हाथो किया ,जिससे पूरी कौम में एक मायूसी ने घर कर लिया, एकतरफ वह अपनी कयादत से पूरी तरह निराश हुआ वहीं उसे इसके सिवा कोई रास्ता नहीं दिखा कि खुल कर इनसे विरोध करे, लेकिन जब सत्ता में बदलाव हुआ और सरकार ने अपना एजेंडा पेश किया उसपर इन कथित धार्मिक ठेकेदारों ने उसे फिर डर दिखाया और हालात भी ऐसे बने कि कौम ने अपनी आवाज़ को थोड़ा धीमा कर लिया लेकिन उसका विश्वास इनसे पूरी तरह डिग गया।

बाबरी विध्वंस के फैसले से पहले जिस तरह की पेशबंदी हुई और उन गुप्त मीटिंग के फोटो और वीडियो बाहर आए जिसमें इनकी हकीकत छिपी थी उसके बाद हर उस मौके पर जब कौम को इन रहनुमा जैसे दिखने वालों की जरूरत पड़ी उसे धोखे के सिवा कुछ नहीं मिला और इतना ही नहीं जहां इन्हें खामोश रहना था वहां बोल कर इन्होंने नफरत की आग में घी भी खूब डाला हर फिरका और मसलक का झंडाबरदार हुकूमत का साथ पाने के लिए आतुर दिखा ।

इमाम ईदगाह लखनऊ खालिद रशीद फिरंगीमहली संघ के वरिष्ट प्रचारक रामलाल जी को इस्लामिक रिसर्च सेंटर ईदगाह लखनऊ में गुलदस्ता देते हुए

जिस तरह का मामला पैगंबरे अमन व शांति की शान में गुस्ताखी पर सामने आया उसने बची खुची सब हकीकत भी बाहर लाकर रख दी सब जुमलावीर जुमले अदा करके खामोश हो गए किसी में हिम्मत न हुई कि सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सके जबकि हजारों अधिवक्ता मुफ्त में केस लड़ने को तैयार बैठे हैं ,न ही किसी ने भारत के महामहिम से मिलने की चेष्टा की वहीं अगर इनपर कोई निजी हमला हुआ तो पूरी शिद्दत से उसके खिलाफ लड़ाई लड़ने को कमर कसे दिखाई दिए।
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अपने निज स्वार्थों के लिए कौम की परवाह नही करते हुए हर स्तर तक छल कपट का बाजार गर्म किया जा रहा है दरअसल अब इन मज़हब के ठेकेदारों से जनता ऊब चुकी है लेकिन अभी सीधे विद्रोह की स्थिति में नहीं है ,यानी अभी भी मौका है सुधार का यदि ईमानदारी से देश हित और समाज हित में यह कयादत काम करती है तो भरोसा वापिस पाया जा सकता है अन्यथा समाज ने अपना रास्ता चुन लिया है और वह इनके खिलाफ विद्रोह से होकर जाता है ।

हालांकि अभी यह सही समय नही है लेकिन जिस तरह का अवसाद ग्रस्त समाज बना है उसमें कुछ भी संभव है फतवे बाज़ और फितना परवर जमात के लिए यह चेत जाने का समय है सर्वधर्म सम्मेलन में गीता का पाठ और कुरान की तिलावत एक साथ होने पर लोगों में हर्ष होना इस बात का संकेत है कि जमीन पर आदमी सिर्फ मुहब्बत का भूखा है हालांकि गीता उन्हीं गिरधर गोपाल श्री कृष्ण का उपदेश है जिसपर बात करने पर मौलवी के माथे पर बल पड़ते हैं जबकि सूफी उनकी भक्ति में गीत गाता दिखता है ।समय संदेश दे रहा है वरना विनाशकाले विपरीत बुद्धि।
यूनुस मोहानी

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