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आज जहांगीरपुरी में जिस तरह बुलडोजर चला उसके बाद पूरा सोशल मीडिया इन तस्वीरों से पट गया हर तरफ से शोर मच गया सभी अपनी अपनी तरह से मजलूमियत का रोना रोने में मसरूफ हो गए यह हमारी बेहिसी का बदनुमा चेहरा है कि हम हर चीज पर सिर्फ चीखना जानते हैं इसका हल तलाश नही करना चाहते ।
,बंद एसी कमरों में बैठकर दस्तरख्वान पर इफ्तार की बेशुमार नेमते सामने रख कर हम किसी गरीब मां का जब सोशल मीडिया पर दर्द लिखते हैं जिसमें एक तस्वीर के साथ कहा जाता है कि अपने बच्चे के लिए घर जो अब मलबे में तब्दील हो चुका है रखा अफ्तारी का सामान तलाश रही मां के मुंह से निकली बद्दुआ जरूर असर दिखायेगी ।यह है हमारी हकीकत आप नाराज मत हों मैं यह सब अपने आप को कह रहा हूं आप इससे खुद को बिल्कुल मत जोड़िए।
लेकिन फिर भी इस बारे में अगर आपका जहन आपको सोचने के लिए मजबूर कर दे तो नजर डालियेगा कहीं आप भी तो ऐसा ही नहीं कर रहे?
जहांगीरपुरी में जिस तरह साम्प्रदायिक माहौल बना उसके बाद जो कुछ भी हुआ उसे सब जानते हैं उसकी चर्चा फिजूल है लेकिन उसके बाद से अब तक सिवा मौलाना अरशद मदनी के किसी मजहबी रहनुमा या सियासी रहनुमा की कोई मदद मुसीबत में गिरफ्तार लोगों तक पहुंची ?
बुलडोजर उत्तर प्रदेश से निकल कर देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया और एक सफल फॉर्मूला बन कर सामने आ गया है ,खरगौन हो या लखनऊ , मऊ से बरेली तक हर जगह बुलडोजर चल रहा है लेकिन अगर इसे मजहबी पोशाक पहनाने की गलती हुई तो यह वाकई कामयाब हो जायेगा मुहब्बत की इमारत को धराशाही करने में, जोकि मुसलमानों के एक तबके ने शुरू कर दिया है।
हालांकि मुसलमानों की बेहिसी ने ही उसे यहां तक पहुंचाया है और आज भी पूरी कौम उससे बाहर आने को तैयार नहीं है और अभी भी लगातार खुद अपने आपको धोखा देने के लिए नई नई सूरत तलाश रही है। रमजान का पाक महीना चल रहा है और मुसलमानों का आलम यह है कि मगरिब की अज़ान के बाद से फजिर की अज़ान तक उसमें और ब्वायलर मुर्गी में फर्क करना आसान नहीं रह जाता दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में मुसलमान इस शिद्दत से खाने पर टूट रहा होता है जो यह बताने के लिए काफी है कि हमें रमजान का मक़सद कितना याद है।
रोज़ा भूख और प्यास की उस शिद्दत को समझने के लिए है जिससे हम किसी की भूख को समझ सकें किसी की प्यास को महसूस कर सकें और उसके काम आएं वहीं मेडिकल साइंस के हिसाब से लीवर को पूरे एक महीने आराम मिलता है बॉडी डेड सेल्स को खाती है कैंसर के खतरे को कम करती है यह नेचुरल कीमियो थेरेपी है लेकिन क्या उसका यह तरीका है ?
खैर मैं कहां तबलीग करने बैठ गया मुझे तो बात करनी है आज हुए बुलडोजर कांड पर रामराज्य का दावा करने वाली सरकार की कार्यवाही से जिस तरह से लोगों में खौफ घर कर रहा है वहीं संवैधानिक ढांचे में जिस तरह बुलडोजर की चोट से दरार आई है इस पर ,मगर सब तो कुछ और बात करते दिख रहे हैं सबका कहना है कि यह कार्यवाही सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ हो रही है क्या यह बात सही है ?
नहीं यह बिल्कुल गलत बात है यह कार्यवाही भारतीय न्याय व्यवस्था के खिलाफ हो रही है ,जी हां यह कार्यवाही भारतीय संविधान के खिलाफ हो रही है मुसलमान के खिलाफ नहीं ।
यह कार्यवाही बाबा साहब अम्बेडकर द्वारा रचित उस ग्रंथ के खिलाफ है जिसने दबे कुचलों को बराबर अधिकार दिए यह बुलडोजर मुसलमानों पर हरगिज़ नहीं चल रहा है बल्कि सच सिर्फ इतना है कि मुसलमान बीच में आ गए हैं निशाना मुसलमान नहीं संविधान है निशाना हर वह व्यक्ति है जो इंसाफ चाहता है ,निशाने पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था है ।
पूरे देश में जिस तरह का शोर है उसके पीछे संवैधानिक संस्थाओं के दरकने की आवाज़ दब रही है जिसे या तो हम सुन नहीं पा रहे हैं या सुनना नहीं चाहते ।मुस्लिम बिकाऊ मजहबी और सियासी कयादत भी इस पूरे प्रकरण में बराबर की मुजरिम है उसकी बुजदिली और साजिश वाली चुप्पी मुसलमानों को अपने ही मुल्क में दोयम दर्जे का शहरी बनने की तरफ ले चली है और इमाम साहब सियासी रफीको के साथ इफ्तार पार्टियों में मसरूफ हैं ।
अभी वक्त है समझिए यह पूरा मामला संविधान को समाप्त करने वाला है तो लड़ाई संविधान बचाने की है न कि यह पूरी लड़ाई मुसलमान के खिलाफ है और हम इसे मुसलमानों पर जुल्म के खिलाफ लड़ने लग जाएं अगर हमने दिशा समझने में गलती की तो फिर जीत सामने वाले की तय है।