14 अप्रैल है आज देश संविधान के महान शिल्पी बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जयंती मना रहा है यह बात और है इस बार महामारी के चलते लोग सड़कों पर नहीं है, नेताओं की टोली नहीं है ،नाम को बेच कर सियासत का धंधा करने वालों के आयोजन नहीं है ,लेकिन एक चीज हमेशा की तरह अभी भी बरकरार है वह हैं दलित उत्पीडन ,आज भी पहले ही की तरह अम्बेडकर के बेटे बेटियां अधनंगे खाली पेट और नंगे पैर हैं , मैं उनकी बात नहीं कर रहा जो अब बस नाममात्र इस समाज का हिस्सा हैं क्योंकि इस नाम से फायदा लेना है , मैं उस आमजन की पीड़ा की बात कर रहा हूं जिसे अभी नया नाम मिला है माइग्रेंट लेबर सुना तो होगा अभी बात पुरानी भी नहीं हुई है इसलिए याद भी होगी वैसे भी रोज एक आध किस्सा सुन पढ़ ही रहे हैं ,कोई 3 हज़ार किलोमीटर का सफर पैदल तय कर आया कोई 500 किलोमीटर का हालांकि यह कोई नई बात नहीं है लेकिन आपके लिए यह ज़रूर रोमांच का विषय हो सकता है लेकिन इन गरीबों की यही कहानी है।

देश के मुखिया ने देशबंदी को 3 मई तक बढ़ा दिया है और देश के लोगों से कहा है कि आप गरीबों का ख्याल रखिए ,यह बात और है उन्होंने अपील की है कोई किसी को नौकरी से न निकाले तनख्वाह भी दे, यह कोई नियम नहीं है कोई कानून नहीं बस यूंही कह दिया वैसे भी देश का कारोबारी वर्ग मजदूरों का कितना हितैषी है सब जानते हैं ,एक आध अपवाद तो हर जगह होता है लेकिन सच इतना है कि इन मजदूरों का कोई लेखा जोखा हो तो निकाले या रखे जाएं, मैं जानता हूं अभी आप तर्कों के तीर लेकर मुझ पर चढ़ाई कर देंगे लेकिन क्या खुद सोचिए जैसा कहा है क्या वैसा होगा?

खैर जाने दीजिए मरने दीजिए इन्हें कौन सा इनकी मौत से आपको कोई फर्क पड़ जायेगा बाप मरेगा तो आपके लिए बेटा काम करने आयेगा आखिर पेट का सवाल है उसके तो आप लाकडाउन में गोलगप्पे बनाईए अंताक्षरी खेलिये और जब इन सब से ऊब जाईए तो तब्लीग़ी जमात पर कुछ प्रकाश डालिए क्योंकि देश में महामारी यही फैला रहे हैं ?

आज अम्बेडकर की आत्मा कितनी खुश होगी जब उसने देखा होगा कि देश के सर्वोच्च न्यायालय से गरीबों को कैसा न्याय मिल रहा है उसे अपने निर्णयों की कितनी चिंता है अगर कोई फैसला दे दिया गया हो तो रात भर निर्णय करने वाला सो नहीं पा रहा है और फिर संशोधन कर रहा है उस निर्णय में ,निर्णय भी कितना ज़रूरी कि सिर्फ उनका फ्री में टेस्ट हो जिनके पास आयुष्मान योजना का कार्ड है या गरीब हैं बाकी सभी को पैसे देने होंगे।वैसे बात भी सही है आखिर देश की पथाओलॉजी के मालिकों का भी ख्याल रखना है और रही अमीर गरीब की पहचान करने की तो वह खून की जांच कर पता लग ही जायेगी शायद ऐसा भी कोई टेस्ट हो?

आखिर संविधान पता नहीं क्यों कहता है कि सभी को स्वास्थ्य सेवाए देना राज्य का कर्तव्य है,फिर जिस आपदा अधिनियम के चलते मुकदमे लिखे जा रहे हैं उसमे शायद ऐसा भी कुछ है कि जीवन की रक्षा हेतु सरकार सभी उपाय करेगी अब खैर हमें और आपको क्या मरना गरीब को है उससे कोई फर्क वैसे भी नहीं पड़ता।

खैर इसबार की महामारी ने एक काम तो कर दिया कुछ ही समय के लिए सही सभी को समान रूप से अछूत बना दिया इस समय छुआछूत राष्ट्रीय धर्म सा बन गई है जितना दूर रहिए उतने राष्ट्र भक्त ,अगर इस दृष्टि से कोरोना को देखें तो कमसे कम उस दर्द का एहसास तो सभी को हो गया जिसे यह दलित शोषित समाज सदियों से महसूस करता आया है।
सोशल डिस्टेंसिंग यह शब्द भारत के गरीबों के लिए नया नहीं है बस नाम अंग्रेज़ी है साहब वरना सामाजिक दूरी तो यहां का सच है एक जानवर को तो गोद में बिठाया जा सकता है लेकिन एक गरीब को नहीं कल एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब नाच रही थी जिसमें सड़क पर बह रहे दूध को एक कुत्ता और एक आदमी एक साथ सामाजिक दूरी बनाए हुए चाट रहे थे ,उम्मीद है भारत के प्रधानमंत्री और महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने भी यह तस्वीर देखी होगी फिर देश वासियों को अम्बेडकर जयंती की शुभकामनाएं दी होंगी?

सुना है अकेली दिल्ली में वहां के इमानदार आम आदमी से
मुख्यमंत्री बने केजरीवाल की सरकार 10 लाख लोगों को खाना खिला रही है आप जानते हैं न इनको ,आंकड़ों के जादूगर कहलाते हैं यह, इस काम में शायद ही इनसे कोई जीते ,वैसे सभी खबरिया चैनलों पर जितने में इनका विज्ञापन चला उसमें तो ज़रूर कुछ लोग खाना खा लेते खैर यह सिर्फ काम पर विश्वास रखते हैं ।

अन्ना के शिष्य है वह अन्ना हज़ारे जो न जाने कहां लाकडॉउन हैं अब सोचिए पूरी दिल्ली में 15 लाख सीसी टीवी कैमरे लगे हैं उसी तरह यह भी बता दीजिए मुख्यमंत्री जी कि वह 2 हज़ार सेंटर कौन कौन से हैं जहां से गरीबों को खाना मिल रहा है ,इसका भी विज्ञापन चलवा दीजिए कि किस किस इलाक़े में यह आपके 2000 सेंटर हैं आपके पास तो सोशल मीडिया की भी बड़ी फौज है फैलवा दीजिए न लेकिन हकीकत वहीं सामाजिक दूरी शायद ?प्रधानमंत्री 5 मिनट ताली और थाली बजवाते हैं ,9 मिनट दिया जलवाते क्या गरीब का चूल्हा भी कभी जलेगा इस सवाल से आंख क्यों चुराते हैं ?

सवाल बहनजी आपसे भी है कि आखिर यह आपके लोग है आपकी बात सुनने वाले हैं इनकी ज़िम्मेदारी आप क्यों नहीं उठाती अम्बेडकर किचन ही शुरू करवा दीजिए इतना ही तो कहना है बस कि उसे टिकट मिलेगा जो अपनी विधानसभा में दलितों का सबसे अधिक ख्याल रखेगा लेकिन शायद आपसे न हो पाए आप आनंद मय है आखिर आपके आनन्द को भय है।

आज के दिन बहुत याद आए अम्बेडकर काश आप वापस आ जाते फिर अपने देश ,एक बार देख लेते आपके बच्चो के लिए सत्ता की सोशल डिस्टेसिंग, गरीब की मौत यहां खबर नहीं है लेकिन किसी पूंजीपति को छींक आना राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जा सकता है।
न्यायालय ने साफ कर दिया है कि वह नफरत फैलाने वाली मीडिया पर नहीं रोक लगा सकते कोई भी अंतरिम आदेश पारित नहीं कर सकते ,सही भी है एक यही तो है जो हर झूठ को सच बना कर पेश कर सकती है इसे रोका भी नहीं जाना चाहिए एक फैसला और भी हुआ है कि स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण के लिए केंद्र सरकार को निर्देश नहीं दे सकते देश हित में दिए गए फैसलों को देखकर गरीब की आंख भर अाई मारे खुशी के उसकी भूख ही मर गई ।
सुप्रीम कोर्ट ने पी एम केयर्स फण्ड पर सवाल उठाने वाली याचिका भी खारिज कर दी है खैर हम सब बाबा साहब के लिखे संविधान का सम्मान करते हैं देश के न्यायालय और न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखते हैं ,खुशखबरी देना भूल गया था शराब अब ग्रीन जॉन में दाखिल हो गई है कैसे यह चौटाला जी और खट्टर जी का गठजोड़ बतायेगा। देश में क़दम क़दम पर बाबा साहब का सम्मान हो रहा है दिल्ली दंगों के लिए जमिया के छात्र छात्राओं को गिरफ्तार किया जा रहा है आखिर सोशल डिसटेंसिंग समझते है न आप कपिल को तो शांति का कोई पुरस्कार दिया जाना है अभी तय नहीं हुआ कौन सा खैर यह इसलिए बताया की तब्लीग़ी जमात के अमीर साहब को पुलिस ढूंढ नहीं पाती है लेकिन सफूरा से राष्ट्र को खतरा होता है। चलिए अब सब कुछ 3 मई तक बंद है भूख से मरिये अम्बेडकर जयंती पर उनके बच्चो को यही तोहफा है सहर्ष स्वीकार कीजिए।

जौ

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