फ़िरोज़ाबाद लोकसभा चुनाव चरम पर है और पूरे देश की निगाह इस सीट के परिणाम पर लगी हुई है । यह सीट समाजवादी राजनीत का अखाड़ा मानी जाती है जहां से देश के सबसे बड़े राजनैतिक कुनबे के लोग चुन कर आते रहे हैं उसकी वजह यादव बाहुल्य फ़िरोज़ाबाद की जनता का सीधा जुड़ाव मुलायम सिंह के साथ होना माना जाता है।
लेकिन इस बार इस सीट से समाजवादी पार्टी से अपनी इच्छा के विरुद्ध अलग पार्टी बनाने पर मजबूर शिवपाल सिंह यादव अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया बनाकर मैदान में वहीं गठबंधन ने यहां से प्रोफेसर रामगोपाल यादव के बेटे और फ़िरोज़ाबाद से सांसद अक्षय यादव को मैदान में उतारा है।
यहां जहां लोगों में नामांकन तिथि समाप्त होने से एक शाम पहले भाजपा ने अपने प्रत्याशी की घोषणा की और प्रत्याशी भी जिसे बनाया गया है उनके विषय में आम लोगों की राय यह है कि प्रत्याशी कमजोर है।
लोगों से बात करने पर आम जनता जहां अक्षय यादव से और प्रोफेसर रामगोपाल से नाराज़ है वहीं वह यादव सिंह प्रकरण पर भी बात कर रही है साथ है उनका मानना है कि प्रोफेसर ने परिवार बीजेपी के इशारे पर अपने को बचाने के लिए तोड़ दिया और इसी के पुरस्कार के तौर पर उनके पुत्र के विरूद्ध बीजेपी ने कमजोर प्रत्याशी दिया है।
बीजेपी के कमजोर प्रत्याशी देने से लोगों में जो संदेह था वह विश्वास में बदल रहा है और लोग इसपर खुल कर बात भी कर रहे हैं।जहां शिवपाल यादव के सम्मान को लेकर लोगों में लहर है वहीं मुसलमानों के साथ प्रोफेसर रामगोपाल यादव के दुर्व्यवहार के किस्से भी कम नहीं है।
फ़िरोज़ाबाद सदर से विधायक रहे अजीम खान और सिरसागंज के मौजूदा विधायक हरिओम यादव भी शिवपाल के साथ खड़े हैं या यह भी कहा जा सकता है कि समाजवादी सोच के सभी लोग बीजेपी से रिश्ते की बात से अक्षय के खिलाफ लामबंद हो गए हैं।
इस बात से जहां पहले से ही नाराज़ मुसलमानों में और गुस्सा है वहीं यादव समाज भी नेताजी के अपमान के तौर पर और बीजेपी द्वारा यादव नेतृत्व खतम करने की साज़िश के तौर पर देख रहा है।
अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।