आप परेशान मत हों वही हुआ है जो पहले से होता आया है लेकिन अब ज़्यादा इसलिए पता चल रहा है कि कहीं न कहीं हम बीजेपी आ जायेगी वाले खौफ से बाहर निकले हैं , उत्तर प्रदेश में यादव और मुसलमानों के वोट लेकर मुख्यमंत्री बनने वाले अखिलेश यादव ने एक फैसला लिया और बांगरमऊ विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की घोषणा कर दी हालांकि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव जिले की यह अकेली विधानसभा सीट हैं जहां मुसलमान मतदाता बड़ी तादाद में हैं और यही वजह है कि इस विधानसभा क्षेत्र से मुसलमान टिकट की दावेदारी करते हैं और टिकट मिलने पर जीत भी दर्ज करते रहे हैं।

रेप के मामले में सज़ा होने पर यहां से निर्वाचित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता रद्द हो गई जिस कारण यह सीट खाली हुई और इस पर उपचुनाव हो रहा है,इस उपचुनाव में सबसे पहले कांग्रेस ने आरती बाजपेई को अपना उम्मीदवार घोषित किया और बहुजन समाज पार्टी ने महेश पाल को टिकट दिया लेकिन भारतीय जनता पार्टी और अब तक मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में रही समाजवादी पार्टी ने पत्ते नहीं खोले थे सभी ओर से यह कयास लगाये जा रहे थे कि समाजवादी पार्टी तो किसी मुसलमान को ही मैदान में उतारेगी, लेकिन उस वक़्त सभी चौक गये जब समाजवादी पार्टी के मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री मिस्टर मुस्कान अखिलेश यादव ने पुलिस रिकार्ड में हिश्ट्रीशीटर के तौर पर दर्ज सुरेश पाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया,यह वहीं अखिलेश यादव हैं जिन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव से सार्वजानिक रूप से मनमुटाव होने का प्रदर्शन 2017 विधानसभा चुनाव से पहले अंसारी बंधुओ को समाजवादी पार्टी में शामिल करने पर किया था और समाजवादी पार्टी को बाहुबली मुक्त वाली छवि देने जैसा नाटक किया था।

अतीक अहमद और अंसारी बंधु से दूरी बनाकर उन्होंने अपना काम किया अब शायद उन्हें महसूस हुआ कि राजनीत में अपराधी ,बाहुबली बहुत ज़रूरी है या फिर उन्हें सुरेश पाल अपराधी नहीं लगते हों इस बिना पर उनको समाजवादी पार्टी की साइकिल थमाई है अब यहां एक बात और गौर करने योग्य है कि पाल के ऊपर ऐसा कोई मुकदमा नहीं दर्ज है जिसे राजनैतिक मुकदमा की श्रेणी में रखा जा सके ऊपर से इनपर फ्रॉड ,सरकारी दस्तावेजों के कूटकरण जैसे मुकदमे पंजीकृत हैं जो अलंकार की तरह चमक रहे हैं।
शायद उनके ऊपर सजे इन्हीं आभूषणों से प्रभावित होकर समाजवादी पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी घोषित किया हो ऐसी बहस बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण आपस में कर रहे हैं ,पाल पर लगभग 3 दर्जन मुकदमे दर्ज हैं और इनपर पुलिस की मेहरबानी की बात भी सामने आ रही है।खैर यह तो परिचय था अखिलेश के कोहेनूर की अब बात करते हैं करवट लेती हुई प्रदेश की राजनीति पर जिस तरह प्रदेश में मुसलमानों का मोह समाजवादी पार्टी से भंग हो रहा है और वह किसी विकल्प को तलाश रहे हैं ऐसे में प्रियंका गांधी का तेज़ी के साथ ज़मीन पर उतरकर हर मुद्दे पर प्रदर्शन उन्हें कांग्रेस में घर वापसी के लिए तैयार करता दिख रहा है लेकिन अभी वह इस निर्णय की जल्दबाजी में लेने से संकोच कर रहे हैं उसकी वजह यह है कि मुसलमान मतदाता यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कौनसा दल जीतने की स्तिथि में है वैसे प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी से भी मुसलमानो का विश्वास टूटा है ऐसे में कांग्रेस ही एक मजबूत विकल्प के रूप में दिख रही है लेकिन यहां पर देखने वाली बात यह है कि ब्राह्मण समाज ने क्या मन बनाया है यदि वह कांग्रेस की तरफ रुख करता है तो मुस्लिम समाज पूरी तरह मन बना चुका है समाजवादी पार्टी को अलविदा कहने का और ऐसे समीकरण बनते हैं तो मिस्टर मुस्कान के पास मात्र 4 से 5 प्रतिशत यादव वोटर और 5% अन्य के अलावा कुछ नहीं बचेगा ऐसी स्तिथि में मुख्य विपक्षी दल मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी 2022 विधानसभा चुनावों में 25 सीटों तक सिमट जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी।

क्योंकि सपा का मुख्य वोटर यादव और मुसलमान ही है प्रदेश में 9% यादव और लगभग 22% मुसलमान वोटर है अगर मुसलमान समाजवादी पार्टी से हटते हैं तो सिर्फ 4 प्रतिशत यादव ही शेष बचते हैं क्योंकि यादवों में लगभग 2% वोट बीजेपी का है और बाकी बचा हुआ 7% में से 3% चाचा शिवपाल के पाले में ऐसे में समाजवादी पार्टी 4% पर खड़ी होती है जहां उसके पास सरकार बनाने जैसा कोई बल नहीं दिखता यह सत्यता होने के बावजूद भी अखिलेश यादव का लगातार मुसलमानों की अनदेखी करना साफ करता है कि या तो उनमें राजनैतिक परिपक्वता की कमी है या फिर वह कहीं और से नियंत्रित हो रहे हैं ।

लगभग ऐसा ही हाल बिहार में लालू पुत्र तेजस्वी का है और अपने इसी व्यवहार के चलते आरजेडी अपने मुख्य मतदाता वर्ग मुसलमानों में वैसी अपील नहीं कर पा रही और लोग अभी भी ऊहापोह की स्तिथि में हैं क्योंकि यहां भी न तो पार्टी में मुसलमानों को सम्मान है और न ही उनकी जनसंख्या के आधार पर भागेदारी जिसके चलते लोगों में व्यापक स्तर पर नाराज़गी है और समाज में यह बात चल निकली है कि हम इनके बंधुआ नहीं है वोट हमारा राज यह करे अब बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, जिसके चलते कोई लहर बिहार में ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रही है , 15 साल के कार्यकाल के बाद भी नितीश कुमार को लेकर लोगों में वैसा नाराज़गी का भाव नहीं है यह तेजस्वी के युवा जोश और समझदारी में तालमेल न होने की वजह से है। ऐसे में कांग्रेस जहां उत्तर प्रदेश में वापसी करती दिखने लगी है वहीं अगर बिहार में भी कोई नया समीकरण उभरे तो हैरानी नहीं होगी ,क्योंकि बात ज़मीन पर यह है कि लोग नितीश को कमजोर नहीं करना चाहते वहीं कांग्रेस को लेकर भी शिकायत कम है, ऐसे में अगर कांग्रेस आरजेडी से दामन छुड़ा कर चुनाव बाद जदयू से नाता जोड़ लेती है और सरकार बनाती है तो भी यह लोगों को अचंभित नहीं करेगा, वहीं आरजेडी और बीजेपी मिलकर सरकार बना लेते हैं तो लोग इस समीकरण को मान कर ही चल रहे हैं कि ऐसा होने की व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं।
वैसे बांगरमऊ में अखिलेश यादव का पाल प्रेम कांग्रेस को नई ज़मीन दे सकता है।

क्योंकि अगर उपचुनाव में मध्य यूपी में कांग्रेस अपना खाता खोल लेती है तो उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा वहीं मुस्लिम समाज इस प्रयोग को 2022 में दोहराने का मन बना लेगा और यह समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के भविष्य का फैसला करने वाला चुनाव साबित होगा क्योंकि पश्चिम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने खुद को ज़मीन पर खड़ा कर लिया है और पूर्वांचल में भी इसका काम तेज़ी से चल रहा है ऐसे में आरती बाजपेई की जीत ब्राह्मण मुस्लिम गटजोड़ को मजबूत करेगा जो कांग्रेस की ज़मीन रही है। लेकिन जुम्मन को समाजवादी झटका अगर उलट गया तो मिस्टर मुस्कान की चिंता ज़रूर बढ़ेगी और उन्हें पुनर्विचार पर मजबूर कर देगी।

यूनुस मोहानी
8299687452,9305829207
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