जी हां मेरा संवाद उनसे है जो शायद हम भारत के लोग की परिधि में आते नहीं ,या अब निकाल दिए गए हैं ,अब इन्हें भारतीय मज़दूर नहीं बल्कि प्रवासी मज़दूर कहा जाता है ,यह मैं नहीं कह रहा बल्कि यह शब्द आधिकारिक शब्दकोश से आया है और इन्हें क्यों न प्रवासी कहा जाए यह हिजरत करके ही तो शहरों में आ बसे थे ,सभ्य शहरियों ने इन्हें तब तक बर्दाश्त किया जबतक यह इनका कूड़ा उठा रहे थे,इनके घरों में खुशनुमा रंग भर रहे थे , इनके लिए महल तैयार कर रहे थे ,इनको शहरों की गलियों में इधर से उधर ढो रहे थे,लेकिन अब तो लाकडाउन है सबकुछ बंद है अब प्रदूषण भी कम हो गया है तो इन मेहनतकश लोगों के जिस्म से उठती पसीने की बू बर्दाश्त क्यों करे कोई?

आखिर इन्हें मुहाजिर क्यों न कहे कोई ?वैसे भी इनके तड़पने से,मरने से भूखा रहने से आलीशान महलों के मकीनों को कब फर्क पड़ता है ?हां यह तब ज़रूर याद आते हैं जब आटे और चावल की बोरी खुद उठानी पड़ रही है। अब जब यह प्रवासी हो ही गए तो अब इनसे कैसी हमदर्दी ? अब अगर यह घर जाने की मांग करें तो इन्हें मस्जिद के बाहर जमा हुआ बता दो फिर इनकी मांग को पीछे धकेल कर इनकी भीड़ को नफरत के लिए इस्तेमाल करो क्योंकि यह गरीब हैं !

अगर भात भात कहने वाली भीड़ सड़कों पर आकर खाना मांगे तो मुकद्मे दर्ज कर दो हिरासत में लेलो क्योंकि यह गरीब हैं खाना क्यों मांग रहे हैं ?इन प्रवासियों को पता ही नहीं कि जब यह खाना मांगते हैं तो सरकार की किरकिरी होती है क्योंकि वह तो लाखों को रोज़ विज्ञापन में खाना खिला रहे हैं हालांकि यह पूरी तरह झूठ नहीं है लेकिन मज़दूर गरीब समझते ही नहीं कि संकट काल में जो थोड़ा बहुत मिल रहा है खा कर गुज़ारा कर लें।
अब कोई क्या कर भी सकता है सरकार अपना पूरा कर्तव्य निभा रही है ,प्रधानमंत्री भी लगातार राष्ट्र के नाम संदेश दे रहे हैं ,अब कोई गरीब और मज़दूर इतना बड़ा विषय नहीं कि इनका ज़िक्र प्रधानमंत्री करें और इनके खाने पीने के बारे में कोई बात करें उन्होंने बाकी सारी ज़रूरी बात कही और इसके बदले में आपसे क्या मांगा सिर्फ सहयोग के क्या आप इतना भी नहीं कर सकते? अरे हफ्ते में 3 दिन तो भूखे रह ही सकते हैं तो रहिए कोई मर तो नहीं जायेंगे ?आप गरीब प्रवासी मजदूर हैं अपनी हैसियत न भूलें।

अगर आप तीर्थयात्री होते तो आपको घर भेज दिया जाता ,क्योंकि आप तब भगवान के मेहमान होते तो अतिथि देवो भव: के मंत्र का पालन होता ,आपका सत्कार होता और फिर कोई राजनेता आपकी बात उठाता और पूरे जत्थे को वापिस उसके घर भेजा जाता वह भी फ्री में समझे यह सब होता समझे ? लेकिन आप मज़दूर हैं गरीब हैं लिहाज़ा चुप रहो वरना पुलिस की लाठी और जेल की काली कोठरी आपका अंजाम है समझे?
अब अगर आप बड़े अधिकारी या नेता के घर का चिराग़ होते तो फिर आपको चीन के वुहान से भी विशेष विमान से वापिस ले आते, आखिर यह बड़े लोगों का मामला है, देश का भविष्य हैं यह, इन्हें तो लाना ही पड़ेगा अब रही आपकी बात तो आपने देश के लिए किया ही क्या है? जो करते हो उसके शाम को पैसे मिल जाते हैं इनकी तुम्हारी बराबरी कहां?यह देश के लिए सोचने वालों के बच्चे है अब सोच की कोई कीमत नहीं होती जो भी लाख दो लाख रुपए तनख्वाह मिलती है सुविधा मिलती है वह सोच की कीमत तो नहीं हो सकती लिहाज़ा थोड़ा बहुत भ्रष्टाचार ही सही लेकिन आपका कोई योगदान नहीं है इसलिए ख़ामोश रहिए।
आपको पता है कोटा में देश का भविष्य कोचिंग करता है अब यह अमीरों के फूल हैं लिहाज़ा लाठी नहीं चलेगी, मुकदमे भी नहीं होंगे लिहाज़ा इनके लिए प्रबंध किया गया है 200 बस कोटा से इन फूलों को लेकर इनके घर पहुंचा देंगी लेकिन आप परेशान नहीं हों आपके लिए सरकार ने ऐलान किया है जहां हैं वहीं रहना है खाना हम खिला देंगे कितने टाइम नहीं पता लिहाज़ा सरकार का हुक्म मानिए और सवाल उस मालिक से कीजिए कि हम गरीब क्यों हैं क्योंकि गरीबों का सिर्फ खुदा होता है।

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