मुझे इस बात से कोई इनकार नहीं कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा और हो भी क्यों न क्योंकि जब पालनहार ने अपने महबूब के नूर को हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के माथे पर सजाकर दुनिया में भेजा तो ज़मीन जो चुनी वह हमारा भारत ही तो है देखिए सरहदों के फलसफे मत समझाइए सच तो यही है तो फिर इससे किसी को कैसा इनकार!
खैर अब बात करते हैं जन्नत की अभी तक तो हम लोग कहते अाए थे फ़िरदौस गर रुए ज़मींअस्त , हमींअस्त हमींअस्त यानी अगर जमीन पर कहीं जन्नत है तो सिर्फ यहीं हैं यहीं है यह बात कश्मीर की खूबसूरत वादियों के लिए कहीं गई थी
लेकिन हालात जिस तरह के बने ज़मीन की जन्नत में आतंक की खेती लहलहा उठी फूलों की महक ने बारूद की गन्ध का लिबास पहन लिया सफेद बर्फ से ढके पहाड़ वीरान हुए तो केसर और सेब की सुर्खी की जगह इंसानी खून ने लेली यह तस्वीर ज़मीन पर मौजूद जन्नत की ही हुई और इस सबको देखकर जब कलम ने अल्फ़ाज़ उगले तो लिखा जन्नत में फाके हैं।
अब मंत्री जी कह रहे हैं भारत मुसलमानों के लिए जन्नत है मै उनकी बात से 100 फीसदी नहीं बल्कि हज़ार फीसदी सहमत हूं, लेकिन विश्वास तो यही है कि जन्नत में जाने के लिए मरना पड़ता है और कुछ नफरत के पुजारियों को यह बात पता है लिहाज़ा वह चाहते हैं कि मुसलमानों को जन्नत भेजा जाय क्योंकि मरे यहीं तो दफन भी यहीं होंगे लिहाज़ा जन्नत में रहिए मगर ज़िंदा नहीं ।
वैसे मंत्री जी ने अपने अनुभव से कहा हो यह भी मुमकिन है ? भूख , थकन,नफरत,तिरस्कार से कोई सामना नहीं हो तो जन्नत जैसा ही महसूस होता है अगर आप सुविधासम्पन्न हो , गाड़ियों का काफिला हो,सिर्फ बोल देने से चीज सामने हो यह तो जन्नत जैसा ही है।
मैं पूरे विश्वास से आज भी कहता हूं मेरा मुल्क दुनिया का सबसे खूबसूरत मुल्क हैं और यहां मोहब्बत की खेती होती है अगर दुनिया भर की सरकारें अपने नागरिकों को सहायता न दे तो लोग भूख से मर जाएं मगर मेरे हिंदोस्तान में यह संभव नहीं यह आपको कहीं नहीं मिलेगा कि मोहब्बत की चादर में सबको समेट लिया जाये।
यहां रामप्रसाद को कंधा अब्दुल देता है और हैदर अली अपना आखिरी सफर श्यामलाल के कांधे पर तय करता है,मीरा की डोली सैफ उठाता है तो रुखसाना को विदा उसका भाई रवि करता है यह है मेरा भारत लेकिन रुकिए मैं भारत की बात कर रहा हूं न्यू इंडिया की नहीं!
और मंत्री जी आपने जन्नत किसे कहा है यह तो बताया नहीं न्यू इंडिया को या भारत को? भारत और इंडिया का फर्क तो लोग जानते थे कि शहरों वाला इंडिया और ग्रामीण भारत है या यूं कहें जिनके लिए सब सहूलते वह इंडिया में बाकी भारत अब एक और वर्ग आ चुका है जो न्यू इंडिया का ब्रांड एंबेसडर है उसके हाथों में अगर क़लम है तो अल्फाजों में नफरत अगर कुल्हाड़ी है तो निशाने पर गर्दन,अगर मशाल हाथ में है तो जद में कई घर हैं आप ही बताइए क्या मैं गलत हूं ?
न्यू इंडिया में गोली मारो के नारे हैं एक दूसरे का लहू पीने की चाहत है नफरत है ज़हर है जहालत है, इन सबके मूल में बेरोजगारी है हताशा है धर्म के नाम पर अधर्म का नशा है ,न्यू इंडिया में तबरेज है,जुनैद है ,अखलाक है,पहलू खान है साधु संत है रोहित वेमुला है शब्बीरपुरा है ऊना है क्या ऐसा जन्नत में होता है?
न्यू इंडिया में मस्त पूंजीपति है पस्त मज़दूर है,भूख है,बलात्कारी का सत्कार है ,सच शर्मिंदा है झूठ की जय जयकार है क्या जन्नत में ऐसा होता है?
क्या जन्नत में भी नफरत होती है? बताइए बयान बहादुर आप नहीं बोलेंगे तो कौन बोलेगा हम भारतीय किसी और को हक नहीं देते कि हमारे मुल्क के बारे में कुछ कहे लेकिन आपसे सवाल तो होगा जवाब तो देना होगा आखिर आप जन्नत किसे कह रहे हैं भारत को या न्यू इंडिया को?
जहां मज़हब देखकर सब्जी की बिक्री होगी तो फल बिना धर्म बताए नहीं बिकेगा ऐसी जन्नत यह कैसी जन्नत? अमीरों के लिए सारी सुविधाएं गरीब पैदल चल कर मर जाए यह कैसी जन्नत?कोई हवाई जहाज़ से कोई बस से घर पहुंचाया जाए किसी को खाने के लिए दाना भी नहीं यह कैसी जन्नत ? कोई पास बनवाकर बेटा लेने दूसरे राज्य पहुंच जाए और किसी को भूख मिटाने की कोशिश में सड़क पर आने में मौत मिले यह कैसी जन्नत ?
वैसे जन्नत की बात चली तो याद आया वादी में जो हालात थे लगभग आज पूरे देश में हैं कहीं इसलिए तो नहीं कहा जन्नत है? सोचिए और हां आइये भारत लौट चले यकीन मानिये मोहब्बत वाला भारत जन्नत ही है न सिर्फ मुसलमानों के लिए बल्कि सभी इंसानों के लिए।
यूनुस मोहानी
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