संविधान का अनुच्छेद 44 स्पष्ट शब्दों में कहता है कि राज्य भारत के समस्त नागरिकों के लिए एक सामान सिविल संहिता बनाने का प्रयास करेगा संविधान निर्माण के समय से ही यह अनुच्छेद विवाद का विषय रहा है और इस सम्बन्ध में होने वाले हर एक विमर्श को अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं उनकी संस्कृति पर हमले के रूप में कुछ लोगो द्वारा दुर्भावनापूर्ण तरीके से कुप्रचारित किया जाता रहा है, हालांकि यदि इसे गंभीरता से समझा जाए तो यूनिफॉर्म सिविल कोड न तो भारत में रह रहे अल्पसंख्यकों के किसी अधिकार में हस्तछेप है न ही यह संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वायत्ता का उल्लंघन है ।
सर्वोच्च न्यायलय ने विभिन्न वादों में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि एक समान सिविल संहिता आवश्यक है न केवल राष्ट्रहित में बल्कि पारिवारिक विधियों में व्याप्त विभेदकारी प्रावधानों को दूर करने के लिए भी संविधान का भाग 3 सबके लिए समानता एवं गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है । भारतीय मुस्लिम पारिवारिक विधि जो न तो सीधे तौर से कुरआन के आदेशों पर पूरी तरह आधारित है न पैगम्बर साहब की हदीसों पर बल्कि यह विभिन्न प्रथाओं एवं परम्पराओं पर आधारित है जो कई जगह सीधे तौर पर कुरआन और हदीस से प्राप्त आदेशों से टकराती हुई दिखती है
इस्लाम समानता एवं न्याय पर आधारित धर्म है जो स्त्री एवं पुरुष को एक समान दृष्टि से देखता है जबकि भारतीय मुस्लिम पारिवरिक विधि बहुत से मामलो में न केवल विभेदकारी हैं बल्कि महिलाओं के प्रति अत्याचारी एवं उत्पीड़नकारी भी हैं उदहारण के लिए पुरुष बहुविवाह से सम्बंधित मुस्लिम पारिवारिक विधि जो महिलाओं के लिए न केवल उत्पीड़क एवं विभेदकारी हैं बल्कि यह संविधान प्रदत्त समानता एवं मानव गरिमा से जीवन जीने के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है कुरान स्पष्ट शब्दों में बहुविवाह पर कठोर प्रतिबन्ध की बात करता है क्यूंकि यह पत्नियों के बीच न्याय को अनिवार्य बनाता है जो कि लगभग असंभव है (4:3 & 4:129) लगभग समस्त इस्लामिक देशों जैसे सीरिया, तुनिशिया, मोरोक्को, पाकिस्तान, ईरान आदि ने पारिवारिक विधियों का संहिताकरण करके बहुविवाह को प्रतिबंधित कर दिया है ।
भारतीय मुस्लिम पारिवारिक विधि में कुरआन और हदीस के स्पष्ट आदेशों की अव्हेलना जान पड़ती है जिस आधार पर यह पुरुष प्रधान एवं महिलाओं के विरुद्ध है ।
उदहारण के लिए कुरान पति एवं पत्नी दोनों को विवाह समाप्त करने का अधिकार समान रूप से प्रदान करता है , पति को तलाक के रूप में जिसकी विस्तृत प्रक्रिया कुरान में बताई गयी है एवं पत्नी को खुला के रूप में खुला मुस्लिम पत्नी का एक ऐसा पूर्ण एवं अप्रतिबंधित अधिकार है जिसके अंतर्गत पत्नी पति को मेहर वापस करके उससे तलाक ले सकती है। (4:128) परन्तु मुस्लिम पारिवारिक विधि में पत्नी के इस अधिकार को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है यह शर्त लगा करके कि खुला के लिए पति कि सहमति का होना आवश्यक है।
वास्तव में समान सिविल संहिता का उद्देश्य विभिन्न धर्मो कि पारिवारिक विधियों में व्याप्त असमानता एवं लैंगिक भेदभाव को दूर करते हुए भारत के समस्त नागरिको के लिये विवाह, विवाह विच्छेद, दत्तक, भरणपोषण, उत्तराधिकार आदि मामलो के लिए एक समान विधि का निर्माण करना है जो संवैधानिक समानता एवं लैंगिक न्याय पर आधारित हो ।

सर्वोच्च नयायालय ने शाहबानो के वाद से लेकर अनेक वादों में बार बार इस बात पर जोर दिया है कि भारत में समान सिविल संहिता को लागू किया जाना चाहिए I धार्मिक विश्वास एवं धार्मिक आचरण दो पृथक चीज़ें हैं I एक व्यक्ति का धार्मिक आचरण किसी भी प्रकार से लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं सामाजिक कल्याण के विपरीत नहीं होना चाहिए एवं राज्य ऐसे आचरण को प्रतिबंधित कर सकता है Iअनुच्छेद 44 इस अवधारणा पर आधारित है एक सभ्य समाज में धर्म और पारिवारिक विधि के बीच में कोई आवश्यक सम्बन्ध नहीं है विवाह, विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार एवं भरण पोषण से सम्बंधित मामले अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता का भाग नहीं है अतः इनका संहिताकरण किया जा सकता है।

क़ुरआन और हदीस के इतर जाकर कयास और इजमा की बुनियाद पर जो विभेदकारी विधि निर्मित हुई उसने भारतीय मुस्लिम पारिवारिक विधि को दूषित कर दिया है जिस कारण समय समय पर स्वयं मुसलमानों को अपने अंदर से ही विरोध का सामना करना पड़ा है,।क़ुरआन और हदीस की गलत व्याख्या कर जिस प्रकार की चुनौती स्वयं मुसलमानों ने अपने लिए खड़ी की है उससे बाहर आने के लिए दुबारा से विचार की ज़रूरत है।
अल्पसंख्यकों को विशेषकर मुसलमानों को समान नागरिक संहिता के नाम पर सिर्फ डराया जाता रहा है और उन्हें भ्रमित किया गया है ,धार्मिक एवम सामाजिक संगठनों ने स्वयं आगे बढ़ कर समाज सुधार का प्रयास नहीं किया और लगातार समाज को अनजाने डर में रखा।
मुसलमानो में विवाह, विवाह-विच्छेद, भरण पोषण,दत्तक,एवं उत्तराधिकार संबंधी भारतीय मुस्लिम विधि के स्थान पर समान नागरिक संहिता लागू होने पर समान विधि लागू होगी जिससे इस्लाम के किसी सिद्धांत की न तो अव्हेलना होती है और न ही किसी भी प्रकार धार्मिक स्वायत्ता बाधित होती है , हां इससे कुरआन और हदीस की गलत व्याख्या के आधार पर जिस विधि का निर्माण किया गया है जो अन्नयायपूर्ण है उसकी समाप्ति होती है।
अतः यह समय कि मांग है कि मुस्लिम पारिवारिक विधि के वे सभी नियम जो कुरान एवं हदीस कि गलत व्याख्या पर आधारित हैं और जो महिलाओं को इस्लाम एवम संविधान प्रदत्त मानव गरिमा से जीने के अधिकार से वंचित करते हैं ऐसे नियमों को समाप्त किया जाये एवं एक समान सिविल संहिता का सरकार के द्वारा अतिशीघ्र निर्माण किया जाये । एक धर्म निरपेक्ष समाज में विधि भी सबके लिए समान होनी चाहिए एक समान सिविल संहिता न केवल महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करेगी बल्कि यह महिलाओं को पुरुषों के शोषण एवं उत्पीड़न से भी बचायेगी ।
डॉक्टर सूफिया अहमद
सहवयाख्याता डिपार्टमेंट ऑफ़ लॉ,
स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज
बाबासाहब भीमराव अंबेडकर विश्विद्यालय
लखनऊ
sufi.bbau@gmail.com

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