यह मासूम सवाल उस मासूम बच्ची का है जिसने 2 दिन से कुछ नहीं खाया बस जहां गई उसे दिए जलाने हैं यह चर्चा सुनाई दी किसी ने उसे एक 5 रुपए का सिक्का दिया इसे लेकर एक दुकान पर पहुंची जहां मैं खड़ा था उस बच्ची ने 5 रुपए देकर कहा कि कुछ ऐसा देदो अंकल जिससे पेट भर जाय लेकिन दुकानदार तो दुकानदार होता है उसने कह दिया इसमें कुछ नहीं मिलेगा तभी उसके मासूम लबो पर एक मासूम मगर दिल चीर देने वाला सवाल आया कि अंकल मोमबत्ती दे दो क्या उससे रोटी मिलती है मैं जो अभी दूर खड़ा था बरबस ही रों दिया उसके बाद क्या हुआ उसकी चर्चा नहीं करना चाहता लेकिन मैं बस देश के जिम्मेदारों की भरी हुई थाली में इस मासूम बच्ची का सवाल परोस रहा हूं कि अब हर निवाले में अचार या चटनी समझकर इस सवाल को खाइए जनाब अगर इसके बाद भी आप भरपेट खा सकते हैं तो मैं बस इतना ही कहूंगा कि हम किसी मरुस्थल में रहते हैं जहां एक ज़िंदा लाश को गिद्धों का झुंड नोच रहा है।
आप बिल्कुल भी गुस्सा मत हों मैंने आपको गिद्घ नहीं कहा है बल्कि खुद को ज़िंदा लाश कहा है अभी मुझे खुद को कुछ बोलने की आजादी तो है न ?
ज़रा महसूस कीजिए इस दर्द को आपको मोटे मोटे आंसुओं के साथ धूल भरा एक चेहरा नज़र आएगा, जिसके बाल उजड़े हैं चेहरे पर भूख और थकान है और बला की मासूमियत छोटी बच्ची के इस सवाल को दोहराइए विश्वास कीजिए आप अगर इंसान हैं तो हिल जाएंगे ,यह सच्चा प्रसंग है हुज़ूर अपने बच्चे को भी सुनाईएगा जिसे आपने सोने से पहले हॉर्लिक्स डाल कर दूध पिलाया है और उसने बड़े नखरे किए हैं आधा दूध छोड़ दिया है सुबह नाश्ते की मेज़ पर उसे यह किस्सा ज़रूर सुनाएगा फिर देखिए उसके चेहरे के भाव आपको शायद तब महसूस हो भूख की शिद्दत क्या होती है।
मैं आपके दिया जलाने के फैसले का हरगिज़ विरोधी नहीं हूं जो समझ में अाए कीजिए लेकिन क्या इस सवाल के बाद भी अपने आप को कोई तैयार कर सकता है दिया जलाने के लिए,? हुज़ूर यह सवाल सिर्फ इस नन्ही बच्ची का नहीं उस संतोषी का भी होता जो इस समय अगर ज़िंदा होती जिसे भूख ने भात -भात कहते निगल लिया, यह सवाल उन हज़ारों कामगारों के बच्चो का है जो भुखमरी की कगार पर हैं।
वैसे भूख का कोई मज़हब नहीं होता वैसे ही जैसे देश के प्रधानमंत्री का कोई धर्म नहीं होता सिवा राष्ट्रहित के ,देश में महामारी फैल रही है और भूख एक नया अध्याय लिख रही है हिन्दू मुस्लिम वाली फ़िल्म बहुत हिट जा रही है आत्ममुग्ध किए दे रही है कि हमें पता ही नहीं चल रहा है कि आखिर क्या हो रहा है हमारे चारो तरफ। सिर्फ एक बात वह जिहादी है किसी तस्वीर और वीडियो के साथ जाहिल और जिहादी शब्दों का प्रयोग और बदले में दूसरी तरफ से भी वीडियो और फोटो के साथ सवाल कि आखिर यह क्या है अब फिर आइए मै पूछता हूं कि क्या हम सही कर रहे हैं ?
जवाब कोई चश्मा लगाकर मत दीजिएगा सच बोल दीजिए कोई नहीं सुन रहा यह सवाल आपका अपने आप से जवाब भी आपकी अंतरात्मा को देना है लेकिन यह सार्वजनिक वाली अंतरात्मा नहीं है नीतीश जी वाली या सिंधिया जी वाली या फिर एक साथ मिलाकर नेताओं वाली, यह आपकी अंतरात्मा है जिससे आपको सिर्फ सच सुनने को मिलेगा कि कहीं न कहीं हम गलत कर रहे हैं।
मैं किसी मरकज का समर्थक नहीं हूं और सवाल पूछ रहा हूं कि मरकज के अमीर के साथ यह सरकारी रहम की कोई खास वजह है क्या? आप यह सवाल क्यों नहीं पूछ रहे हैं क्योंकि आप इस सवाल तक पहुंच नहीं पा रहे और इस सवाल में मसाला भी नहीं है ऐसा ही है न ?
आप सोचिए क्या जो तस्वीरें फंदे पर लटके पूरे पूरे परिवारों की आ रही हैं उसपर सवाल नहीं होना चाहिए ? आखिर भूख से हारकर मौत चुनने वाले लोग क्या हमारे समाज का हिस्सा नहीं थे ? क्या यह भारत के लोग नहीं थे ? या फिर इन्हें इनकी गरीबी लाचारी ने एन आर सी से पहले ही बाहर करवा दिय ? हर एक प्रश्न का जवाब आप जानते हैं और मैं दावे के साथ कह सकता हूं सोशल मीडिया पर एक नफरत भरी बात कहने के बाद आपको आत्मग्लानि ज़रूर होती है क्योंकि यह आपकी वास्तविकता नहीं है बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई शराबी जब नशे से बाहर आता है तो शर्मिंदा होता है ।
आप कब तक सवालों से आंखे चुरा पायेंगे? महामारी से तो हम जीत जायेंगे लेकिन इसके जाने के बाद जो बेरोजगारी का तूफान आने वाला है उससे बचने का क्या उपाय है ? क्या आपकी नफरत आपको रोजगार दे सकती है ? अगर नहीं तो मूल सवालों पर वापिस आइए सरकार से पूछिए कि हल क्या है ? पूछिए दिया जलाने से हमें परहेज नहीं मगर इससे क्या गरीबों के चूल्हे जलेंगे?
सवाल पूछिए क्योंकि यह बताता है कि आप ज़िंदा है और सो भी नहीं रहे और किसी तरह की नफरतों के संक्रमण में नहीं हैं। दिया ज़रूर जलाइएगा क्योंकि किसी चिराग़ का अपना कोई मकान नहीं होता जैसे सड़कों पर फुटपाथों पर रहने वालो का, लेकिन भूख चिराग़ नहीं होती वैसे भी दीपमाला सूरज के डूबने के बाद बनती है सूरज को छिपा कर नहीं इधर भी गौर कर ही लीजिएगा,।
वैसे याद रखिए देश में आपको बचाने के लिए पर्याप्त वेंटिलेटर नहीं है,देश में प्राइवेट कोरोंना टेस्ट कराने में अभी 4500 रुपए लगते हैं जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकार सबका फ्री टेस्ट कराए। डाक्टरों के पास पीपीई किट पर्याप्त मात्रा में नहीं ,मास्क नहीं है, और हां करोड़ों लोग भूखे है ,करोड़ों बेरोजगार हैं।इसलिए सरकार के लाकडाउन का पूरा पालन करें घरों में रहें सुरक्षित रहें।
सवाल वैसे पूछ सकते थे आप हवाई सेवाओं को जारी रखने पर,नमस्ते ट्रंप पर,मध्य प्रदेश में शपथ ग्रहण पर मगर अब इसका वक़्त नहीं लेकिन सुनिए वक़्त नफरतों का भी नहीं है यही वजह है मोहब्बत वाले सड़कों पर भूखों के लिए उतरे हैं आइए हम और आप भी हाथ बढ़ा दे क्योंकि जलाओ दिए मगर रहे ध्यान इतना अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाय।
यूनुस मोहानी
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