आज के बाद कोई पुलवामा के शहीदों की बात न करे ,कोई सवाल न करे कि आखिर शहीदी दर्जा इन सैनिकों को कब दिया जायेगा या दिया भी जायेगा या नहीं?
आपको अब इस सवाल का भी कोई हक नहीं कि इनके आश्रितों के लिए नौकरी है कि नहीं क्योंकि प्रतिवर्ष 2 करोड़ नौकरियां देने से शायद अब पद बचे नहीं है।
खैर प्रधान सेवक ने आज इलाहाबाद में गंगा स्नान के बाद सफाई कर्मियों के पैर धोये. इसके साथ ही खबरिया चैनलों में उनकी तुलना दलित प्रेमी नेता के तौर पर होने लगी लेकिन पिछले 5 साल का रिकॉर्ड मोदी सरकार की दलितों के प्रति बेरुखी से भरा पड़ा है. शायद ये इतिहास का दलित उत्पीड़न के मामले में सबले काला समय रहा है. आप रोहित वेमुला को भूल चुके हैं ऊना की घटना आपको याद नहीं है
शब्बीरपुरा आपके मस्तिष्क पटल पर अब धुंधला हो गया है तो आपको पूरा हक है खुशियां मनाईए ।आपको यह पता ही होगा कि हर 15 मिनट में एक दलित उत्पीड़न का शिकार हो रहा है

सबसे पहले तो सरकारी आंकड़ों पर ही नजर डाल लेते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों को ही सच मानें तो इन चार वर्ष में दलित विरोधी हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है.
साल 2014 में अनुसूचित जाति के साथ अपराधों के 40,401 मामले, 2015 में 38670 मामले व 2016 में 40,801 मामले दर्ज किए गए. आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान हिंदुस्तान में हर 15 मिनट में किसी न किसी दलित के साथ कोई न कोई आपराधिक घटना घटी.
NCRB के आंकड़ों से जो चौंकाने वाली बात निकलकर आई है, वह ये कि बीते चार वर्षों के दौरान देश के जिन राज्यों में दलितों का सर्वाधिक उत्पीड़न हुआ, उन राज्यों में या तो BJP की सरकार है या BJP के गठबंधन वाली सरकार. बात करें दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहे राज्यों की तो मध्य प्रदेश दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहा. 2014 में MP में दलित उत्पीड़न के 3,294 मामले दर्ज हुए, जिनकी संख्या 2015 में बढ़कर 3,546 व 2016 में 4,922 तक जा पहुंची. देश में दलितों पर हुए आपराधिक मामलों में से 12.1 फीसदी मामले अकेले MP में घटे.

दलितों पर अत्याचार के मामले में BJP शासित राजस्थान दूसरे स्थान पर रहा. हालांकि यहां उत्पीड़न के मामलों में कमी जरूर देखने को मिली है. राजस्थान में 2014 में दलित उत्पीड़न के 6,735 मामले, 2015 में 5,911 मामले व 2016 में 5,136 मामले दर्ज हुए.
इसके बाद दलित उत्पीड़न के मामले में तीसरे नंबर पर रहा बिहार, जहां बीजेपी व जदयू के साझेदारी की गवर्नमेंट है. बिहार में 2016 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के 5,701 मामले दर्ज हुए.
सबसे हैरान करने वाला रहा चौथे नंबर पर गुजरात का रहना. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जिस राज्य को देश के सामने मॉडल स्टेट की तरह पेश किया, वहां दलितों की स्थिति चिंताजनक है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में 2014 में दलित उत्पीड़न के 1,094 मामले, 2015 में 1,010 मामले व 2016 में 1,322 मामले दर्ज किए गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में अनुसूचित जाति पर हमलों का राष्ट्रीय औसत जहां 20.4 प्रतिशत था वहीं गुजरात का भाग 32.5 प्रतिशत रहा.
वास्तव में यह एक ऐसा आंकड़ा है, जिसमें कोई भी राज्य आगे नहीं आना चाहेगा. पूरे देश में बीते चार वर्षों के दौरान दलित उत्पीड़न के मामलों में तो बढ़ोतरी देखी ही गई, उत्तर प्रदेश इस मामले में कुछ ज्यादा ही आगे निकला. दरअसल 2016 में UP दलित उत्पीड़न के मामले में देशभर में सबसे ऊपर निकल गया.

साल 2016 में अनुसूचित जाति पर हमलों के मामले में यूपी (10,426) शीर्ष पर रहा. यहां दलित स्त्रियों के साथ बलात्कार के 1065 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले लखनऊ में 88 घटनाएं घटी हैं. उसमें भी 43 घटनाएं स्त्रियों से दुष्कर्म की रहीं.
वैसे तो हमेशा से दलितों के खिलाफ उत्पीड़न को एक सामाजिक समस्या के रूप में देखा गया और इसके निराकरण के लिए सरकारें परोक्ष रास्ते अपनाती रहीं. लेकिन बीते चार वर्षों के दौरान कुछ ऐसे वाकये हुए, जिनसे ऐसा लगने लगा कि अब यह सामाजिक रूढ़ि से आगे बढ़कर सरकारी उत्पीड़न का रूप ले चुका है. क्योंकि अधिकतर दलित उत्पीड़न के मामलों में प्रशासनिक अमले की संवेदनहीनता निकलकर सामने आई है.
अब चाहे वह उत्तर प्रदेश के कासगंज में दलित दूल्हे की बारात को सवर्णों की बस्ती से निकलने की इजाजत न देने का फैसला हो या मध्य प्रदेश के उज्जैन में दलितों को बारात की तीन दिन पहले से सूचना देने का निर्देश. देश के विभिन्न हिस्सों से दलित दूल्हे या दलितों की बारात के साथ सवर्णों की बदसलूकी के मामले लगातार सामने आते रहते हैं.
मोदी सरकार के लिए दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर तब सर्वाधिक मुसीबत का सामना करना पड़ा, जब उसके ही कई दलित मंत्रीपार्टी के खिलाफ उठ खड़े हुए. इटावा से भाजपा के दलित सांसद अशोक दोहरे ने आरोप लगाया कि एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में दलितों का उत्पीड़न किया जा रहा है.

राबर्ट्सगंज से सांसद छोटे लाल खरवार, नगीना से सांसद यशवंत सिंह भी भाजपा सरकार के कामकाज पर उंगली उठा चुके हैं. 2014 में यूपी की सभी सुरक्षित लोकसभा सीटों पर मिली जीत और 2017 के विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी से अधिक सुरक्षित सीटें जीतने वाली भाजपा को अपने ही दलित सांसदों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
यह सब आंकड़े बीजेपी के दलित प्रेम की बखूबी व्याख्या करते हैं और कलयुग के कृष्ण के रूप में प्रोजेक्ट किये जा रहे प्रधान सेवक के व्यक्तित्व का चित्रण भी जहां सबका साथ सबका विकास एक जुमला बन गया और दलितों का उत्पीड़न सरकारी तंत्र का खेल।
खैर अब सोशल मीडिया पर पहले से चले आ रहे एक व्यंग की ओर देखते हैं जिसमें कहा जाता है कि इस बार लोकसभा चुनाव दो चरणों में होंगे पहले वो आपके चरणों में होंगे फिर आप उनके चरणों में अब आप समझदार पाठक है और सब देख भी रहे हैं।
याद रहे मैं न मोदी भक्त हूं न ही उनका विरोधी मै सवाल आपके सामने रख रहा हूं फैसला आपको करना है सवाल बहनजी से भी पूछिए आप किसी दलित को जानती हैं क्या? यह सवाल अटपटा है मगर समझदार हैं साहब आप पूछिये ज़रूर मिस्टर मुस्कान अखिलेश यादव से भी क्या आपको कोई पिछड़ा याद है?
खैर मोदी जी संगम में रेनकोट पहन कर नहा चुके हैं नमामीगंगे याद कीजिए अब सारे आंसू जो शहीदों के लिए बहने थे गंगा जी में बह गए हैं अब इसकी बात करना मना है सिर्फ प्रधान सेवक का नया कारनामा देखिए और ज़ोर से कहिए भारत माता की जय।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here