इमारत के चुनाव में नीतीश का सियासी तड़का ।

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आगामी 9 अक्टूबर को इमारत शरिया के अमीर का चुनाव होना अब तय पाया है,हालांकि इस चुनाव के बाद निर्वाचित उम्मीदवार अमीर के तौर पर विरोधी गुट को स्वीकार होगा या फिर यह गतिरोध जारी रहेगा यह कह पाना अभी संभव नहीं है, अमीरे शरीयत का चुनाव जिस तरह हो रहा है उससे उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनावों की याद ताजा हो रही है।
हर रोज नई कहानी सामने आ रही है इसी बहाने खुद को कौम का रहबर बताने वालों के असली चेहरे भी बेनकाब हो रहे हैं कौम के पैसों की लूट के किस्से हों या धर्म के नाम पर भोली भाली आवाम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ सब कुछ सोशलमीडिया के जरिए आपसी विरोध के चलते आम जनता को पता चल रहा है।

हालांकि कई दावेदारों की खुली बेईमानी लोगों को पता है कि इमारत ट्रस्ट के नाम से मिलता जुलता ट्रस्ट या सोसाइटी रजिस्टर कराकर जमीनों को इमारत शरिया की जगह निजी ट्रस्ट या सोसाइटी के नाम पर पंजीकरण हुआ और धन का बंदरबांट किया गया वहीं एक और नायब अमीर की आशिक मिजाज़ी अखबारों की सुर्खी भी बनी अब जिस तरह चुनाव में दल बल का प्रयोग किया जा रहा है उससे साफ है कि इस तरह इमारत पर कब्जा कर यकीनन कुछ ज्यादा गलत करने की कवायद हो सकती है।

पटना शहर के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर का इस चुनाव में हद से ज्यादा दिलचस्पी लेना और सक्रिय रूप से जुटना एक नए राजनैतिक समीकरण की तरफ इशारा करता है,नीतीश ने अपनी राजनीत में जिस तरह पसमांदा मुस्लिम समाज को बढ़ावा दिया है और पूरे समाज को बांटने का काम किया है उससे सभी वाकिफ हैं,चाहे अली अनवर को सांसद बनाना हो या फिर साबिर अली को संसद भेजना ,इस तरह नीतीश ने मुस्लिम समाज में सैयद शहाबुद्दीन का विकल्प समाज में बंटवारा कर पैदा किया ।
अधिकतर खानकाहों में नीतीश के हामी मौजूद हैं और अक्सर बड़े संस्थानों पर भी नीतीश के समर्थक मौजूद हैं लेकिन मौलाना वली रहमानी जब तक हयात रहे उनकी न तो लालू से ही बनी और न नीतीश से उनका कोई गठजोड़ बन सका हालांकि दिखावे के तौर पर ऐसा जरूर लगा कि सब सामान्य है जबकि नीतीश इस बात को बखूबी समझते रहे कि मौलाना वली रहमानी से उनकी केमिस्ट्री सही नही है।

इमारत जिसका बिहार सहित झारखंड,उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में बड़ा असर रहा है अगर उसका अमीर नीतीश का समर्थन करता है तो यकीनन नीतीश मजबूत होते हैं लेकिन अगर मौलाना वली रहमानी के घर से कोई अमीर बनता है तो शायद स्थितियां नहीं बदलने वाली हैं।
ऐसे में पटना शहर के प्रतिष्ठित डॉक्टर की भी अपनी कुंठा है कि अहमद अशफाक करीम ने अपना मेडिकल कॉलेज भी बना लिया और उच्च सदन की सदस्यता भी हासिल कर ली जबकि यह अभी तक क्लीनिक पर ही टिके हुए हैं ऐसे में इनके पास भी इमारत का चुनाव एक मौका है जिसमें अगर यह बाजी मारते हैं तो शायद मेडिकल कॉलेज या फिर आगे अगर कहीं मौका मिले तो किसी सदन के सदस्य बन सकें हर तरफ लोग अपने लिए अवसर तलाश रहे हैं किसी को भी न कौम की फिक्र है और न ही इमारत शरिया के कयाम का मकसद याद है।
यहां एक बात गौर करने वाली है कि मौलाना वली रहमानी के अमीर रहते हुए जिस तरह के तरक्की वाले काम हुए उससे कोई इनकार नहीं कर सकता उसमें उनका बड़ा कारनामा रहमानी 30 की स्थापना और उसका सफल एवम कुशल संचालन एक उदाहरण है पूरे देश के लिए, मुसलमानों में जिस तरह शिक्षा की कमी है इसको ध्यान में रखकर कम संसाधन या संसाधन विहीन प्रतिभाशील बच्चों को बेहतर अवसर प्रदान करने की उनकी यह तहरीक सम्मान के लायक है,लेकिन ऐसा कर पाने या ऐसा सोच पाने के लिए दूरदर्शिता और शिक्षा जो कि नई और बदलती हुई दुनिया को समझने के लिए जरूरी है उसका होना नितांत आवश्यक है।
अभी इमारत के चुनाव में सियासत का तड़का भी लग चुका है और नीतीश कुमार पर्दे के पीछे से इमारत के चुनाव में अगड़ा पिछड़ा खेल खेलते लग रहे हैं यहां भी पसमांदा कार्ड खेला जा रहा है और चुनाव में यदि अनीसुर्रहमान की जीत होती है तो सीधे तौर पर इमारत से भी इस खेल को और बढ़ावा मिलने की पूरी संभावना है,इसके जरिए मुसलमानों में इस ऊंच नीच की खाई को और बढ़ाया जायेगा जिससे सीधे तौर पर नीतीश कुमार को फायदा होगा । इस संदेह को और अधिक बल प्रशासन का इमारत में हुई गुंडई पर चुप्पी साधना और अधिक देता है।

कुल मिलाकर जहां एक ओर वर्चस्व की लड़ाई है वहीं यह सियासी खेल भी चल रहा है जबकि कौम की भलाई इसमें है कि एक दूरदर्शी पड़े लिखे और नए विचारों वाले व्यक्ति को अमीर के पद के लिए चुना जाए जो कौम को सही राह दिखा सके और इसकी भलाई के लिए कुछ नया कर सके,यदि पहले से घोटाले आदि के आरोप झेल रहे लोग इस चुनाव में जीते तो पतन तय है।
यूनुस मोहानी
8299687452,9305829207
younusmohani@gmail.com

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