शायद खबर पक्की करना चाहता था पत्रकार ???

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ClickTV special

जी हां इस झूठ के दौर में मौत और जिंदगी भी कहां भरोसे के काबिल है जिसे जिंदा कहा जाता है वह मर चुका होता है और जिसे मरा दिखाया जाता है वह जिंदा होता है ऐसे में कब तक कोई सूत्रों के हवाले से खबर चलाए बताइए?
आखिर यह कोई आतंकी तो नहीं पकड़ा गया न जिस खबर के लिए पड़ताल की जरूरत नहीं होती क्योंकि सब जानते हैं कि आतंकी पकड़ा गया है तो मुसलमान होगा पाकिस्तान से संबंध होगा कहीं न कहीं आतंकी घटना को अंजाम देने की तैयारी होगी आखिर इस आम सी खबर में कोई क्यों पड़ताल करे लेकिन जब बात गंभीर हो तो जांच जरूरी होती है जैसे असम में उस पत्रकार ने जान जोखिम में डाल कर किया क्यों ?

जरा सोचिए कितनी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी इस पत्रकार को जो लाठियों से लैस भीड़ से तनिक न डरा हालंकि असम पोलिस इस हुजूम से इतनी भयभीत थी कि उसे आत्मरक्षा में सीधे सीने पर गोली चलानी पड़ी आखिर पुलिस वाले भी तो इंसान ही होते हैं उनके अंदर भी जान होती है जख्म लगने पर खून बहता है फिर कानून उनको भी जान बचाने का अधिकार तो देता है न आत्मरक्षा कहते हैं इसे अब जब हिंसक भीड़ जिसके पास लाठी जैसा मारक हथियार हो उससे बंदूकों से लैस पुलिस वाले अगर खुद को न बचाते तो आप लोग ही उनकी आलोचना करते ।
खुद को जरा उस पत्रकार की जगह रख कर देखिए फिर आपभी उसके साहस को मान लेंगे क्योंकि जख्मों से रिस्ते लहू और सांसों की डोर तोड़ते किसी इंसान पर कूदने की हिम्मत आप नहीं जुटा पायेंगे, क्योंकि ऐसा करने के लिए आपको दरिंदा बनना पड़ेगा।
लाशों से भी खौफ इसे कहते हैं कि जब पत्रकार ने अपनी खबर की जांच पड़ताल कर ली तो पुलिस इस शख्स की लाश से इतनी भयभीत दिखी कि बुलडोजर के पीछे लाश को उल्टा कर बांधा गया और उसे घसीटते हुए ले गए शायद अंदेशा हो कि अगर इस हिंसक लाश ने हमला कर दिया तो कैसे बचाव करेंगे क्योंकि गोलियों से जिंदगी खत्म होती है लाशे नहीं ।
आप सोच रहे होंगे मैं पत्रकार की हिमायत क्यों कर रहा हूं तो सुनिए मेरा जवाब मैं सिर्फ आपकी सोच को एक आयाम दे रहा हूं कि इसे इस तरह भी देखिए।

बदरुद्दीन अजमल

मुझे न पुलिस से , न असम सरकार से और न ही इस पत्रकार से कोई सवाल है मेरा सवाल सीधा उन जिंदा लाशों से है जो यह खूनी खेल देखने के बाद भी मुंह में दही जमाए बैठे हैं , वोटो के सौदागर बदरुद्दीन अजमल कहां हैं ? क्या उन्हें असम के मुसलमानों का सिर्फ वोट चाहिए? आखिर मुसलमानों के कथित मसीहा बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी कहां हैं ? वह पर्सनल बोर्ड वाले और बड़ी बड़ी मुस्लिम तंजीम वाले कहां सो रहे हैं क्या इनकी जिम्मेदारी कौम से चंदा वसूलना और सरो का सौदा है?

नफरत का व्यापार कामयाब हो रहा है और देसी तालिबान खुद को विदेशी तालिबान से ज्यादा क्रूर साबित करने की हर कोशिश में लगा हुआ है, देश नफरती बारूद के ढेर पर है जिसे कोई सरफिरा कभी भी सुलगा देने को है यकीन जानिए देश का मुसलमान या हिंदू खतरे में नहीं है पूरा देश खतरे में है ।

कभी यूं भी सोचिए कि देश के बड़े उद्योगपति के पोत से ड्रग्स बरामद होती है इलाहाबाद में महंत जी आत्महत्या कर लेते हैं सारा ध्यान महंत की आत्महत्या पर केंद्रित है जैसे सुशांत सिंह की आत्महत्या पर कभी हुआ था

ड्रग्स की खबर गायब है, काश ऐसा कोई साहसी पत्रकार वहां भी होता जो ड्रग्स को चख कर बताता तो कि आखिर है क्या ?

प्रधानमंत्री अमेरिका में हैं वहां उनके आने की खबर अखबारों से गायब है लेकिन उनका छाता खुद खोलना बड़ा कमाल का है आखिर ऐसे हैं हमारे पीएम अब सवाल यह है कि जब सारे पत्तलकार वही चले गए साथ तो कोई साहसी अपनी जगह तो बना ही सकता है लिहाजा पत्रकार ने मार दिया मौके पर चौका बस बात इतनी है वैसे असम में सिर्फ तीन लोग नहीं मारे गए करोड़ों जमीर भी साथ मारे गए हैं जिन्हें इस बर्बरता में राष्ट्रवाद दिख रहा है।
अगर आप खुद को जिंदा कहते हैं या मान रहे हैं तो गौर कीजियेगा कहीं आप नफरत की चपेट में तो नहीं हैं ? देसी तालिबान का समर्थन करते समय जरूर सोचिएगा क्या हम अपने देश के साथ सही कर रहे हैं?
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

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