जो शख़्स अपने को क़ाएदे मिल्लत बनाकर पेश करे उसका फ़र्ज़ है के लोगों को नसीहत करने से पहले अपने नफ़्स को तालीम दे और ज़बान से तबलीग़ करने से पहले अपने अमल से तबलीग़ करे और यह याद रखो के अपने नफ़्स को तालीम व तरबियत देने वाला दूसरों को तालीम व तरबियत देने वाले से ज़्यादा क़ाबिले एहतेराम होता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का यह कौल है जिसे आज समझा जाना चाहिए।

देश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे हर तरफ एक खौफ की लहर दौड़ रही है लेकिन मुस्लिम बिकाऊ कयादत अपने काम में मशगूल है ,हालांकि आवाम में बेदारी के नाम पर अभी तक सिर्फ इतना हुआ है कि मसलकी खानाजंगी में थोड़ा कमी जरूर आई है लेकिन अभी भी अंधभक्ति का आलम वही है , पूरी कौम एक भेडचाल में आज इसके पीछे कल उसके पीछे अपने हाकने वाले के इशारे पर नाच रही है।
इस रेवड़ की कीमत सियासी बाजार के व्यापारी तय करते हैं और दाम हासिल चरवाहे को होता है ,यह कोई नई चीज नहीं है यह हमेशा से होता आया है लेकिन अब इस तरफ सोचा जा रहा है, लेकिन अगर मैं सही कह रहा हूं तो बताइए इससे पहले क्या आपने कभी ऐसा सोचना भी बेहतर समझा था? आपका जवाब न में है, लेकिन आप खामोशी का पर्दा उसपर डाले हैं ,अब जब तस्वीर इस कदर साफ है तो भी हम क्या कर रहे हैं ?
क्या अब हम बिकाऊ मजहबी कयादत की चालबाजियों को कामयाब नहीं होने दे रहे ? क्या हमे अकीदत की अफीम जो चटाई जाती रही है उसके नशे से बाहर आ गए हैं ? क्या अब हम अपनी आस्थाओं के नाम पर बेवकूफ नहीं बनाए जा रहे ? फिर आपने चुप्पी साध ली है क्योंकि शायद आप खुद सवालों से भागने के आदी हो गए हैं।
खैर कुछ चेहरे जिस तरह से बेनकाब हो रहे हैं उसके बाद आप कुछ बोलना तो जरूर सीखे हैं ,अभी खुद को बड़ा मुस्लिम कायद बताने वाले ने बड़ा बयान दिया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी RSS के बारे में उन्होंने कहा कि संघ अब सही रास्ते पर है उसमें बदलाव आया है, यह बयान मौलाना अरशद मदनी का है अब फिर सवाल आपसे ही होना है कि संघ सही रास्ते पर है या मौलाना रास्ता भटके हैं ? मैं न मौलाना पर कोई टिप्पणी कर रहा हूं न ही संघ पर बस एक सवाल आपकी तरफ उछाल रहा हूं ताकि आप अगर जरा भी हिम्मत कर सकें तो सही जवाब दें।
अभी देश में धर्मपरिवर्तन पर बड़ा बवाल मचा है गिरफ्तारियां हो रही हैं ,हालांकि लोग इसे उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले माहौल बनाने की गतिविधि के तौर पर देख रहे हैं लेकिन इन सब मामलों में मजहबी कयादत की चुप्पी बहुत कुछ कह रही है ,आवाम खौफ का शिकार हो रही है और मजहबी और सियासी कयादत अपनी मस्ती में है,यह चुप्पी सिर्फ इन गिरफ्तारियों पर ही नहीं है बल्कि वसीम रिज़वी का मामला हो,या अल्लाह के रसूल की लाइव टीवी डिबेट के दौरान तौहीन का मामला हो लगातार जारी है और इसे हिक्मत का लिबास पहना दिया गया है ,हालांकि इससे पहले यही कयादत सड़कों पर भोली भाली आवाम को उकसा कर लाती रही है,और अब कानूनी लड़ाई से भी परहेज़ करती दिखती है। वैसे धर्मपरिवर्तन पर इस्लाम का सीधा सिद्धांत है कि दीन में कोई जबरदस्ती नहीं है ,मुसलमान कभी भी कन्वर्टर नहीं हो सकता है उसकी भूमिका कम्युनिकेटर की है यानी लोगों तक सही संदेश पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है न कि धर्मपरिवर्तन, और इसका पालन भी होता है।
इमारत शरिया जैसे इदारों में जिस तरह वर्चस्व की जंग चल रही है वह यह बताने के लिए काफी है कि मजहब का चोला ओढ़ कर आपको गुमराह करने वाले आपको अपने बचाव का कोई रास्ता तलाशने नहीं देना चाहते हैं, इमारत में मौलाना वली रहमानी के बाद जिस तरह से कब्जे की मुहिम चल रही है वह साफ तौर पर तख्त की लड़ाई जान पड़ती है और जिसको जीतने के लिए बिकाऊ कयादत हर पैंतरा खेल रही है, जिन पर गबन ,बदकीरदारी जैसे आरोप हैं वह भी सरगर्म नजर आ रहे हैं और अपने आरोपों का जवाब देने के बजाए लोगों से हिमायत के तलबगार हैं।
सवाल यह भी है कि कौम को दूरंदेश और पढ़े लिखे नौजवान की जरूरत है तो फिर घिसे पिटे बिकाऊ लोग कयादत का दावा कैसे कर पा रहे हैं ? जवाब मिलता है जनाब मिल्लत की भलाई इसमें है कि वह अपनी पुरानी चाल को न बदले और कौम के ठेकेदारों को अपना काम करने दे ,जबकि अगर वाकई यह मजहबी कायद मिल्लत के हमदर्द हैं तो वह अपने दावे से पीछे हट क्यों नहीं जाते ?
सियासत के मोहरे सब धीरे धीरे फिट हो रहे हैं और मिल्लत न रो पा रही है और न हंस पा रही है, बीजेपी हटाओ की मुहिम के चलते बिकाऊ कयादत मिल्लत को वरगलाने के लिए कमर कस चुकी है, इमारत पर कब्जे की कोशिश भी इसका एक पहलू है अमीर बन कर और अमीर बनने की ख्वाहिश ने नेताओं को मात दे दी है एक पढ़े लिखे शक्स की जगह खालिस मुल्लाइयत का दांव साफ करता है मंशा क्या है।हालांकि हर मसलक में मिल्लत पर कंट्रोल वाली गद्दी की जंग है क्योंकि सभी को इसे नचाना है धुन पैसा देने वाले की रिंगमास्टर की भूमिका इनकी और नाचने वाली मिल्लत हालांकि मुसलमान इस खेल को पहली बार नहीं देख रहे हैं और न यह सिर्फ भारत में खेला जा रहा है लगभग सभी इस्लामी कहलाने वाले देशों में यह खेल चलता है जबसे हज के काफिलों को लूटने वाले लोग ताकत में आए तबसे वहां जिस तरह की खराबियां बढ़ी हैं किसी से छुपी नहीं हैं अब भारत में खानकाहों में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है दर्शन करने आने वालों से जिस तरह से लूट पाट आम हुई है उससे लोगों में चिढ़ बढ़ी है और इस लूट की वजह वही है कि लुटेरे अब भेष बदल चुके हैं हालांकि इसे बहुत अधिक समझने के लिए आपको इतिहास के झरोखे में झांकना पड़ेगा जहां पहाड़ों में घात लगाकर लूट करने वालों का वर्णन मिलता है।
सूफिया का पैगाम और उनका मिशन जोकि खालिस मानवतावादी है उसे पीछे रख कर सिर्फ वर्चस्व और लूट का खेल खेला जा रहा है लोगों की सूफी संतों से आस्था है उनसे मुहब्बत है लेकिन लोग इन आस्तानो पर होने वाली अशोभनीय घटनाओं से व्यथित हैं और यहां बैठे मठाधीश अकीदत की अफीम बांट कर लोगों को ठगने का काम बखूबी कर रहे हैं।
वैसे मिल्लत भी इस सबके लिए कम दोषी नहीं हैं ,क्योंकि कुरान में बार बार कहा जा रहा है कि “तुम गौरो फिक्र क्यों नहीं करते” इसके बाद भी धोखा खाने वाले खुद जिम्मेदार हैं धोखा देने में चाहे कोई पर्सनल बोर्ड हो या कोई उलमा बोर्ड सब इसलिए कामयाब है क्योंकि हम नशे में रहते हैं, ।
मिल्लत तवायफ बन चुकी है जिसका कोई एक प्रेमी नहीं है जिसको जब जरूरत लगती है इससे फायदा हासिल करता है हालांकि अल्फाज कड़वा और निहायत भोंडा है लेकिन हालात के हिसाब से इससे बेहतर अल्फाज शायद मुमकिन नहीं है।
चुनाव आने वाले है मिल्लत को सजाया संवारा जा रहा है अब जगह जगह कार्यक्रम होंगे और सरो की बोली लगेगी चुनाव के बाद कायद के पास चमचमाती गाड़ी होगी और मिल्लत के पास इंतजार और अफसोस ।मिल्लत आज अगर तवायफ जैसी बना दी गई है तो इसे ऐसा किसने बनाया इस पर भी मंथन जरूरी है आप आंखे बंद कीजिए आपको वही चेहरे दिखेंगे जिनके हाथों आप अकीदत की अफीम चाटते रहे हैं कहिए क्या मैने कुछ गलत कहा?
आपने कभी सवाल क्यों नही किया कि कायद अमीर से अमीर कैसे हुआ और आप गरीब से और गरीब कैसे? हो सके तो सवाल कीजिए वैसे क्या आप यह हिम्मत जुटा पाएंगे ? शायद नहीं क्योंकि आपको नशे की बुरी लत लग चुकी है अगर नहीं तो कभी असदुद्दीन ओवैसी से सवाल कीजिए कि आप बैरिस्टर हैं तो किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाते ? सिर्फ टीवी पर कानून जानने की नुमाइश क्यों ?सवाल चुभेगा लेकिन हिम्मत जुटाई जानी चाहिए क्योंकि तवायफ को समाज हेय नजरों से देखता है हालांकि उसे इस हाल में लाने के जिम्मेदार हमेशा सफेदपोश और खुद को इज्जतदार इज्जातमाब कहलाने वाले होते हैं।
यूनुस मोहानी
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