नागरिकता संशोधन बिल का भारतीय मुसलमानों से नहीं अपितु समस्त भारतीयों से मतलब है जो भारत के संविधान में विश्वास रखते हैं।भारत के संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ का सीधा मतलब उसकी मूल धारणा पर कुठाराघात है।वहीं भारत का संविधान जिसकी शुरुवात हम भारत के लोग से होती है आज सवाल कर रहा है कि कौन भारत के लोग ?

क्या आपके पास उसके इस प्रश्न का जवाब है आपका जवाब न ही होगा क्योंकि भारत के गृहमंत्री के पास भी इसका उत्तर नहीं है और यदि यह प्रश्न अनुत्तरित रहता है तो फिर हैं किस भारत की बात कर रहे हैं ?

यह बेतुके से लगने वाले सवाल ही दरअसल जवाब हैं ,जिस समय देश राजनैतिक संक्रमण काल से गुजर रहा है और धीरे धीरे देश की संस्थाएं अपना विश्वास खोती जा रही है चाहे वह चुनाव आयोग हो जो ईवीएम को लेकर कटघरे में है,या फिर कार्यपालिका,देश की जांच एजेंसियां अपना भरोसा गवा चुकी हैं और मीडिया तो ऐसी रुसवा हुई है कि कुछ पूछना ही नहीं है ऐसे में मात्र एक उम्मीद है भारत का संविधान जिसका भरोसा देश को बांधे रखे हुए है।

आज देश के संविधान पर हमला हुआ है दरअसल यह भारत में वास करने वाले करोड़ों दलितों के सीने में कील ठोंकी गई है यदि संविधान को ऐसा बदला गया तो एक दिन वह अपना मूल खो देगा और फिर बाबा साहब का सपना बिखर कर रह जाएगा।देश में प्रचार तंत्र के माध्यम से यह झूठ बोला जा रहा है कि यह बिल मुसलमानों के खिलाफ है बल्कि कहा तो यह जा रहा है कि सरकार का कड़ा फैसला है देश के अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जबकि यह किसी भी तरह सच नहीं है।

बीजेपी के एजेंडे में देश के दलितों से उनके संवैधानिक अधिकार को छीनना है जिसका एकमात्र उपाय आरक्षण की समीक्षा कर उसे समाप्त करना है ,नागरिकता संशोधन बिल उसी कड़ी का पहला हथकंडा है क्योंकि इसे दलित समाज में यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि मुसलमानों के खिलाफ सरकार सख्त है लिहाज़ा इस बिल का सभी समर्थन करे यदि ऐसा होता है तो दलित समाज अपने पैरों पर कुल्हाड़ी स्वयं मारेगा ,और आरक्षण समाप्त करने के ताबूत में आखरी कील ठोकने का काम करेगा।

प्रत्यक्ष रूप से देखने पर बिल ऐसा ही जान पड़ता है उसपे ओवैसी और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसी तंजीमे आग में घी का काम कर रही हैं और बीजेपी तथा राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के एजेंडे को कामयाब बना रही हैं ,जहां सरकार यही चाहती है कि 2014 से भारतीय राजनीति में आए नये बदलाव जोकि मुसलमानों के लिए अच्छा संकेत है जबकि देश के हिन्दुओं के लिए और देश के विकास के लिए घातक है वह यह कि मुसलमान अब एक आज़ाद मतदाता बन गया है जबकि हिन्दू एक हिन्दू वोट बैंक में बदल गया है और सरकार इसी हिन्दू वोट बैंक को रिझाना चाह रही है और उसके लिए यह हथकंडा अपनाया जा रहा है।

जिस तरह किसी दिये को जलने के लिए हवा की जरूरत होती है उसी प्रकार इस भ्रम को फैलाने के लिए ओवैसी ज़रूरी है क्योंकि उनकी जोशीली बात और जज्बाती करने वाली बिल फाड़ने की हरकत ने अपना काम बखूबी कर दिया और यह मामला आम भारतीयों के बजाए सिर्फ मुसलमानों का हो गया।

आप मेरी बात से सहमत और असहमत हो सकते हैं लेकिन सच से आंखे चुरा कर आप झूठ के फैलते तिमिर को रोक नहीं सकते ,दरअसल आज जिस तरह भारत के संविधान के विरूद्ध कानून बन रहे हैं वह समझने के लिए काफी है कि आइडिया ऑफ इंडिया अब दूर की कौड़ी होने वाली है ,देश के वसुधैव कुटुंबकम् की भावना अब धर्म के बंधन बांधी जा रही है।या फिर कहीं हल्के स्वर में कहा जा रहा है कि देश अम्बेडकर वाले संविधान से नहीं चलेगा ।

यानी साफ है अब संविधान भी खतरे में है यानि बाबा साहब को इस प्रकार अपमानित करने का यह प्रयास है ऐसी बात भी कहीं न कहीं दलित चिंतक कर रहे हैं लेकिन यह बात भारत के मुसलमानों को समझनी होगी कि यह लड़ाई हमारी अकेली नहीं हैं बल्कि सभी भारतीयों की है जो भारत के संविधान में विश्वास रखते हैं।

अब फैसला इस बात पर होना है कि किसे भारत का संविधान मौजूदा स्थिति में चाहिए और किसे बदला हुआ ? हम सबको विमर्श करना होगा कि बाबा साहब का अपमान तो नहीं है संविधान से छेड़छाड़?

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