आज 30 जनवरी है आप तारीख तो जानते ही हैं थोड़ा धुंधला सा इतिहास भी पता ही है आपको ,30 जनवरी 1948, यानी गांधी की हत्या का दिन वह गांधी जिसे दुश्मन मानने वाले भी सार्वजानिक रूप से उसका अपमान नहीं कर सकते ,खैर हमें किसी से क्या बस एक गोली चली और एक शब्द गूंजा हे राम इस एक शब्द ने दुख हर लिए और गांधी का जिस्म ठंडा हो गया, मगर सुनिए उसके आखरी शब्दों में ऐसी ऊर्जा थी कि गांधी का विचार दुनिया में फैल गया ।
समय बीतता गया देश और दुनिया चलती रही है, हे राम का सफर जो एक महात्मा के अंतिम शब्दों से शुरू हुआ और राम के बंटवारे तक जा पहुंचा, हत्यारे का महिमामंडन करने की साजिश शुरू हुई और कुछ सरफिरे उसके अनुयाई बनते दिखे ,राम जिसे इकबाल ने इमामे हिन्द कहा वह राम जिसके सम्मान में धर्म की बाधा नहीं थी अचानक एक वर्ग के बनाए जाने लगे मंदिर मस्जिद के झगड़ों में राम आये जिनका नाम इस मानवता के कल्याण के लिए लिया जाता है जो पत्थर को छू कर उद्धार कर देता उसी के नाम से नफरत के कारोबारी अपना सामान बेचने लगे ।
सफर जारी रहा राम नाम पर अधिकार की नई परम्परा चल निकली राम जो हृदय में बसते हैं उन्हें कंकरीट की इमारत में कैद करने का अभियान शुरू हो गया, राम जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं अब मर्यादाओं को तोड़कर मानवता को कुचलते हुए उनके नाम का उदघोष भय के सम्राज्य की स्थापना के लिए किया जाने लगा।
राम नहीं बदले क्योंकि राम बदलते नहीं वह किसी धर्म में भगवान कहलाये अवतार माने गये ,किसी ने माना कि लाखों संदेशवाहक आए उस ईश्वर के राम भी उनमें से एक हैं,किसी की मजाल नहीं राम का अपमान करे लेकिन राम के नए मतवालों ने एक नई परिभाषा गढ़ी जहां राम सिर्फ उनके बाकी सब राम नाम के दुश्मन और फिर शुरू हुआ शत्रुओं का संहार।
तड़प ही तो उठी गांधी की आत्मा जब उसने कहीं देखा होगा कि कोई राम के देश में रहमान के बंदों से नफरत कर रहा है,नानक के मतवालों को राम के देश में गद्दार कहा जा रहा है ।
किसानों को राम के देश में आराजक कहा गया कितना तड़पा होगा गांधी जब उसकी समाधि या चित्र पर ऐसा करने वालों ने फूल चढ़ाये होंगे, कहा होगा उसने मेरे हत्यारों का महिमामंडन करते मगर मेरे राम को क्यों बांट रहे हो।
एक गहरा सन्नाटा हाथों में फूल लिए लोगों के चेहरों पर यह गवाही देता मिलता है कि गांधी तुम्हारे शब्दों का अब कोई मोल नहीं है अब गांधी सिर्फ चित्रों में है जैसे राम सिर्फ मंदिर और ज़बान तक, हमने राम का हृदय से नाता तोड दिया है ,तुम समझे नहीं तुम्हारे सीने पर गोली इसी लिए मारी कि यह नाता ज़बानी हो जाये।
अगर राम दिल में होंगे तो हम हिंसक कैसे होंगे हम मर्यादाओं में बंध जाएंगे, अब हमें बंधन पसंद नहीं यही वजह है हमने राम को सीता से जुदा ही अपनाया है अब हम जय सियाराम नहीं कहते क्योंकि सिया पति रामचंद्र तो गांधी के राम है वह अहिंसा का बल देते हैं
गांधी अब गोडसे की विचारधारा से आच्छादित किया जा रहा है लेकिन बादल सूरज को कुछ समय तक छुपा सकते हैं यह प्रकृति का नियम है, सूरज को हर हाल में चमकना है।
हम हे राम से जय श्रीराम तक आ गये हैं गांधी के शब्द मगर कमज़ोर नहीं पड़े गांधी को मारा नहीं जा सकता तुम्हारी चीखें दम तोड़ेंगी राम को बांटने का मंसूबा हारेगा दुनिया गोल है ।
यूनुस मोहानी
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