क्या यही हम देखेंगे ,बोलो क्या देखेंगे,

कुछ गुंडे आएंगे ज़हरीले नारे लगाएंगे

कुछ बच्चे होंगे निशाने पर

कुछ उस्ताद भी पीटे जायेंगे।

क्या  यही हम देखेंगे,बोलो क्या देखेंगे।

 

हाल बुरा होगा मुल्क की आवाम का

नहीं भरोसा होगा कोई सुबह शाम का

जो आबरू लूटेंगे,वही नेता बन जाएंगे

उठेगी गर आवाज़ तो बेकसूर मारे जायेंगे

क्या यही हम देखेंगे,बोलो क्या हम देखेंगे।

 

तुम मुल्क बचाने आओगे,तुम आईन बचाने आओगे

पहले वह तुमको फूसलाएंगे,फिर कुछ धमकाएंगे

न माने गर तुम फिर तुमको गद्दार यही बताएंगे

हम सब फिर कपड़ों से पहचाने जायेगें

क्या यही हम देखेंगे,बोलो हम क्या देखेंगे।

 

तय करेंगे वह मज़हब अल्फाजों का

सड़क पर लाएंगे वह एक लश्कर पत्थरबाजों का

हर सम्त अंधेरा होगा ,काला होगा मुकद्दर चरागों का

फिर वह पूरा मुल्क जलाएंगे

क्या यही हम देखेंगे,बोलो हम क्या देखेंगे

 

ज़ालिम सब हाकिम होंगे, 

लफ्जे अमन मज़ाक बनेगा

मवाली सब संसद में होंगे,

मारा जायेगा जो इंसाफ की आवाज़ बनेगा

फिर भला हम क्या पूछेंगे

क्या यही हम देखेंगे,बोलो हम क्या देखेंगे।

 

इन्कलाबी मिट्टी के पुतले है आप भी साहिल

जो थे हसरत ,भगत और थे बिस्मिल

बिगुल इंकलाब का बजा ही दें हम सब मिल

रोका न जो ज़ालिम को और उसके ज़ुल्म को

बाद हमारे आने वाले हमको ही कोसेंगे

क्या यही हम देखेंगे बोलो क्या हम देखेंगे।।

यूनुस मोहानी।।

 

 

 

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