बिहार में विधानसभा चुनाव 2020 का बिगुल बज चुका है ,धीरे धीरे तस्वीर साफ होने लगी है और लगभग यह तय हो चुका है कि कौन दल किसके साथ लड़ेगा वैसे आज की रात बिहार के लिए काफी अहम है क्योंकि एन डी ए में सब खैरियत है जैसे वाला माहौल नहीं है जबकि कांग्रेस ने समझौता कर लिया है।
खैर यह तो अलग बात है कि कौन किसके साथ लड़ेगा लेकिन सवाल जो सबसे अहम है कि बिहार में एक आबादी के तौर पर सबसे बड़ी संख्या में वास करने वाला वोटर क्या सोच रहा है,आप सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर यह सबसे बड़ी संख्या वाला तबका कौन है? दरअसल बिहार में जातिवाद का एक लंबा इतिहास रहा है और इस नजरिए से यहां दलित 15% है जिसमें 4% पासवान मतदाता हैं,महादलित मुसहर 2% दुसाद 4% है वहीं यादव 14.4% भूमिहार 4.7% ब्राह्मण 5.7% राजपूत 4.2% कुशवाहा , 6.5%, कुर्मी 4%, कायस्त 1.5% , बनिया 6%, तेली 3%, आदिवासी 1.3% है जबकि अन्य जिसमें सिख,ईसाई,और जैन आते हैं लगभग .4% हैं कुल हिन्दू आबादी 81.3% है और मुसलमान लगभग 18.3% हैं।
यह जातिगत समीकरण बिहार चुनाव में ख़ास मायने रखता है जहां जीतन राम मांझी अपने 2% के लिए बीजेपी और जदयू को आंख दिखाते नजर आते हैं वहीं मात्र 4% पासवान वोटों के बल पर राम विलास पासवान लगातार सत्ता की मलाई चट करते रहे हैं और उनके बीमार होने पर उनके सुपुत्र चिराग बिहार की सियासत में अपना हक मांगते दिख रहे हैं।
उधर कुशवाहा जी भी अपनी बिरादरी के 6.5% वोटों की धमकी एनडीए और यूपीए दोनों को दे रहे हैं यानी सभी अपनी अपनी जातिगत संख्या का हिस्सा बिहार की सत्ता में चाहते हैं यह बात और है कि उनकी इस कवायद का बिहार के चुनावी परिणामों में क्या असर पड़ेगा ? लेकिन सभी जातियों के सूरमाओं ने अपने हक के लिए मोर्चा संभाल रखा है जिसका असर भी साफ दिखाई दे रहा है और हर जगह उनकी पूछ हो रही है .5 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत वाले उप मुख्यमंत्री का पद मांग रहे हैं और यह उन्हें देने की सोची भी जा सकती है ।
वहीं 18.3% के वोटरों के पास इस प्रकार का कोई एजेंडा नहीं है न उन्हें अपनी हिस्सेदारी चाहिए न सम्मान बस उनका एक पारंपरिक लक्ष्य है भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोकना जिसमें कम से कम बिहार में तो वह पिछले 15 सालों से कामयाब नहीं हुए हैं ,लेकिन वह अपने लक्ष्य से भटकने को हरगिज़ तैयार नहीं हैं और इसमें उनका साथ बिकाऊ सियासी रहनुमा और बेईमान मज़हबी कयादत बखूबी दे रही है।
हालांकि नीतीश कुमार ने बीजेपी से समझौता कर बिहार में अब तक जो सरकार चलाई उसमें मुसलमानों को पूरा मौका मिला और कहीं न कहीं नीतीश ने बीजेपी के एजेंडे को बिहार में लागू नहीं होने दिया और बीजेपी कि सरकार होने के बावजूद उत्तर प्रदेश जैसा माहौल नहीं पनपने दिया यह उनका राजनैतिक कौशल रहा कि सरकार का चेहरा धर्म निरपेक्ष बना रहा लेकिन उनकी टिकाऊ न होने वाली छवि ने उनकी साख को बट्टा लगाया।
वहीं आरजेडी का युवा नेतृत्व घमंड के साथ मैदान में है और वह इस बात से आत्ममुग्ध है कि यह जुम्मन कहां जायेगा प्रदेश में कोई विकल्प इसके पास नहीं बचा है ,हालांकि असदुद्दीन ओवैसी ने ताल ठोकी है लेकिन उनके साथ मुसलमानों का जाना एक बड़ा खतरा है क्योंकि अगर मुसलमान शत प्रतिशत भी उनके साथ चला जाये जो असंभव सा है तो भी वह मात्र 30 सीटों से ऊपर नहीं जीत सकते लेकिन ऐसा होने पर चुनाव 80 बनाम 20 होगा और बीजेपी या कोई अन्य दल सत्ता में आयेगा जिसमें मुसलमानों का कोई योगदान नहीं होगा ,ऐसे में जब अभी उनकी कोई हैसियत नहीं है तब खतरा और बढ़ेगा और सेक्युलरिजम का जो नकाब अभी कुछ राजनैतिक दलों ने लगा रखा है उसे भी उतार फेंकेंगे और ऐसा होने पर स्तिथि और भी भयावाह होगी।
वैसे भी ओवैसी की कार्यशैली और उनके ज़हरीले बोल भारतीय समाजिक ताने बाने में फिट नहीं होते उनके पास अच्छे सवाल ज़रूर हैं मगर उसके वाजिब जवाब नहीं लिहाज़ा मुसलमानों को इस बात की समझ रखनी चाहिए क्योंकि ओवैसी तेलंगाना सरकार में शामिल हैं और उनका सहयोगी टीआरएस लगातार हर मामले में लोकसभा में बीजेपी के साथ खड़ा रहता है ऐसे में साफ तौर से दिखाई देता है कि उनकी कयादत मजबूत नहीं अगर बिहार में भी वह किसी के साथ खड़े होने की स्तिथि में होंगे तो कुछ बदलाव संभव नहीं।
दूसरी तरफ एक कट्टरपंथी संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का राजनैतिक धड़ा एस डी पी आई भी पप्पू यादव के साथ बिहार चुनाव में आ धमका है जिसका ज़मीन पर कोई वास्तविक संगठन मौजूद नहीं हालांकि यह बात भी दबी ज़बान में कहीं न कहीं लोग कह रहे हैं कि एस डी पी आई का बिहार में आना एक मज़हबी जमात का खेल है और उसके ही कहने पर पप्पू यादव के गठबंधन में इसे जगह मिली है , इमारतशारिया का राजनैतिक खेल सब बखूबी जानते हैं इसे दीन बचाव कॉन्फ्रेंस से समझा जा सकता है हालांकि ज़मीन पर इमारत अपना रुसूख खो चुकी है लेकिन उसके कारनामे जारी है जबकि खुद मौलाना वली रहमानी बीमार है और मुंगेर में मौजूद हैं हालांकि यह बात भी काबिले गौर है कि मौलाना किस बीमारी में है जो मेडिकल फैसिलिटीज के मामले में पटना से कमतर मुंगेर में जाकर रह रहे हैं जानकारी के मुताबिक अलग अलग दलों से टिकट चाहने वाले लगातार मौलाना से मुलाक़ात कर रहे हैं वहीं राजनैतिक दलों के नेताओं ने भी मुलाकात की है ,हालांकि अभी इमारत ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कुछ लोगों से बात करने पर यह भी कहा गया कि मौलाना राजनैतिक बीमारी में हैं वक़्त आने पर संदेश आ जायेगा।
सिर्फ यही नहीं लगभग मज़हबी कयादत का यही हाल है और जब हक की बात करनी है वह बिलो में दुबके बैठे हैं और जब वोट का वक़्त होगा तब संदेश देकर बीजेपी हराओ की मुहिम में जुटेंगे । महागठबंधन ने जिस तरह मुसलमानों का अपमान किया है और उसे अपनी साझा प्रेस कांफ्रेंस में भी हिस्सा नहीं दिया उसपर मुसलमानों की ख़ामोशी साफ कह रही है आप बीजेपी रोकिए हम आपके साथ हैं।मुसलमानों ने अपने आचरण से साफ कर दिया है कि उनके कोई अपने मुद्दे और शर्तें नहीं है और उन्हें कुछ भी चाहिए नहीं बस वोट देना है बीजेपी को हराने के लिए न कि खुद को जिताने के लिए और यही वजह है कि राजद किसी भी तरह से मुसलमानों को कोई महत्त्व नहीं दे रही है और अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे नेता को भी भाव नहीं मिल रहा यानी कुल मिलाकर जो नेता इन दलों में मौजूद हैं उन्हें अपने टिकेट तक की बात करने का हक है समाज के मुद्दों पर नही वहीं मज़हबी कयादत भी अटैची पॉलिटिक्स में अपनी भलाई ढूंढ रही है रही बात आम मुसलमान की तो वह सवाल कर रहा है कि आखिर विकल्प क्या है तो जवाब यही है डर के आगे जीत है वरना जुम्मन दरी बिछायेगा ।
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here