आज़म खान को रामपुर एम पी एमएलए कोर्ट ने एक हेट स्पीच मामले में तीन साल की सज़ा सुना दी और मात्र 7 दिन का समय इस के खिलाफ अपील करने हेतु दिया यह तो खबर आपको पता ही होगी ,हालांकि जिस मामले में आज़म को सज़ा हुई है वह किसी समुदाय या किसी धर्म पर किसी जहरीली टिप्पणी का नहीं बल्कि अफसरशाही के विरोध का है और कलेक्टर के संबंध में दिए गए एक बयान का है, खैर इस बात पर बहस तो अब हाईकोर्ट में काबिल वकील करेंगे हम आप तो खबर सुनेगे कुछ को गुस्सा आयेगा और कुछ देख कर भूल जायेंगे ।

लेकिन आज़म ख़ान की पहचान उनकी ज़बान से ही होती रही है हर मामले पर उनका अलग अंदाज़ उन्हें सबसे अलग करता रहा है ,कई बार उनके बयान से उनके समर्थक भी असहज दिखते हैं अब वह ईमानदार हैं कर्तव्यनिष्ठ हैं यह सब बाते करने का वक्त नहीं है लेकिन उनका एक बड़ा कारनामा रामपुर में उनके द्वारा बनाया गया जौहर विश्विद्यालय जरूर है जिसकी सराहना सभी करते हैं,10 बार के विधायक रहे आजमखान को इधर कोर्ट ने सजा सुनाई उधर अत्यधिक तेज़ी दिखाते हुए विधानसभा स्पीकर ने आदेश की कॉपी मिलते ही आज़म खान की सदस्यता रद्द करने की चिट्ठी जारी कर रामपुर विधानसभा सीट को रिक्त घोषित कर दिया।
यह कार्यवाही जितनी तेज़ हुई उसने सीधे एक तरफ इशारा कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी की मंशा आज़म खान के मामले को और तूल देने की है ,उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में जिस तरह मुसलमानों ने अखिलेश के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया और इतिहास में पहली बार 80% से कहीं ऊपर मत अखिलेश की झोली में डाला उसके बावजूद भी चुनाव प्रबंधन की कमी और हट के चलते जिस प्रकार समाजवादी पार्टी की हार हुई उसने मुसलमानों को बुरी तरह निराश किया और मुस्लिम समाज में एक संदेश गया कि अब कभी यह पार्टी खड़ी नही हो सकती और उसने विकल्प के तौर पर कांग्रेस की तरफ टकटकी लगा ली।

कम से कम लोकसभा चुनाव को लेकर मुसलमानों में एक विचार तेज़ी से गर्दिश कर रहा है कि लोकसभा में किसी क्षेत्रीय पार्टी को वोट देना मूर्खता है तो क्यों अपना वोट बर्बाद किया जाए लेकिन कांग्रेस की सुस्ती उसके कदम रोक रही है और वह इस उधेड़ बुन में है कि सिर्फ हमारे वोट से इनका भला नहीं होने वाला यह कुछ और जोड़ें तो ही फायदा होगा लेकिन सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश के 22% मुस्लिम मतदाताओं का रुझान अब तक के कांग्रेस के सबसे खराब प्रदर्शन 2.5% के साथ भी जुड़ कर उसके 24.5% पर खड़ा कर सकता है और थोड़ी सी मेहनत से यह 35% से ऊपर जा सकता है ।
कांग्रेस इस अवसर को कितनी गंभीरता से देख रही है यह अलग विषय है लेकिन भारतीय जनता पार्टी की पैनी नजर इसपर गड़ी हुई है बीजेपी पहले भी 8% तक मुस्लिम वोट के अपने पाले में होने का प्रचार करती आई है और अब पसमांदा मुस्लिम की बात छेड़ कर मुस्लिम वोटों में बड़े बंटवारे की हर संभव कोशिश कर रही है।बीजेपी की यही खूबी है कि वह सत्ता हासिल करने के बाद भी शांत नहीं बैठती और लगातार प्रयास करती रहती है ,2022 विधानसभा चुनाव के बाद जहां सभी विपक्षी दल अगले चुनाव की बांट जोह रहे हैं वहीं अगले ही दिन से बीजेपी ने 2024 के रोडमैप पर कार्य करना शुरू कर दिया ,राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से माहौल बदला है और उनकी छवि पर लगे सभी दाग साफ हो गए हैं यानी अब राहुल मिस्टर क्लीन बन कर जननायक के नए अवतार में दिख रहे हैं उनकी बॉडी लैंग्वेज भी बदली हुई है अब उनमें एक जिम्मेदार नेता को देखा जा रहा है और जिस प्रकार इस यात्रा को समर्थन मिल रहा है उससे सातधारी दल में बेचैनी बढ़ी है।

दक्षिण भारत में पहले भी बीजेपी का बहुत कुछ नहीं था लेकिन अब उसके पास कोई मजबूत गटबंधन का साथी भी मौजूद नहीं है ,महाराष्ट्र पहले ही आधर में है और मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में कांटे की टक्कर है वहीं बिहार में जो खेल हुआ है अगर लोकसभा तक यही माहौल रहा तो बड़ा नुकसान तय है बंगाल में भी कोई बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है ऐसे में उत्तर प्रदेश पर ही सारा दारोमदार है अगर यहां सीटें बढ़ती नहीं हैं लेकिन बीजेपी अपने पिछले प्रदर्शन को ही बरकरार रखने में सफल हो जाती है तो उसका खेल बेहतर हो सकता है लेकिन सीधे तौर पर मुस्लिम मतदाताओं का रुझान जिस तरह का है उससे ऐसा होने की संभावना कम हो सकती है क्योंकि अगर मुस्लिम मत एक मुश्त कांग्रेस के साथ गया तो ब्राह्मण भी अपने पुराने घर में वापसी करेंगे साथ ही कुछ ओबीसी और दलित वोट भी पक्ष में आ सकता है जिससे कांग्रेस सीधे 40% तक पहुंचती दिखेगी और ऐसे में बीजेपी को बड़ा नुकसान तय है अगर आधी आधी सीटों का भी बंटवारा होता है तो भी बीजेपी को बड़ा नुकसान होगा और कांग्रेस को बड़ा फायदा ।

अभी तक कांग्रेस की ओर से इस संबंध में कोई कोशिश शुरू नहीं की गई है लेकिन बीजेपी ने अपनी नज़र जमा रखी है और वह मुस्लिम वोट के बिखराव के लिए हर संभव प्रयास कर रही है इसी के चलते खुद प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुस्लिम का मुद्दा छेड़ दिया है ,भारतीय मुसलमानों में सबसे बड़ा वर्ग यही है लेकिन अभी तक इस अस्त्र का व्यापक असर दिखा नही है लेकिन पसमांदा मुसलमानों के नाम पर काम करने वाले संगठन सक्रिय जरूर हुए हैं और उन्होंने सत्ता से करीब होने के मंत्र पढ़ना शुरू किए हैं,कांग्रेस अभी सुस्त है और राहुल के भरोसे बैठी है या इस इंतजार में है कि मुसलमानों के पास कोई विकल्प नहीं है तो यह हमारी झोली में ही आयेंगे उसका यही रवय्या अखरने वाला है।

खैर अब बात करते हैं आज़म खान की मुसलमान वैसे आज़म खान को अपना नेता तो नही मानते लेकिन जज्बाती तौर पर जुड़ते हैं अब जब आजम के साथ उनके अनुसार अनुचित हो रहा है तो उनकी हमदर्दी उनके साथ है और बीजेपी उसी हमदर्दी का फायदा उठाना चाह रही है क्योंकी जब तक आजम जेल में रहे मुसलमान उनकी बात कर रहा था उनके बाहर आने के बाद से चर्चा थम गई और रामपुर लोकसभा चुनाव हो या विधान परिषद और राज्यसभा का चुनाव उसमें आज़म के खेल को देख कर लोग सियासत का खेल समझ गए लेकिन अब फिर जब आज़म को सज़ा हुई और उनकी सदस्यता रद्द हुई तो हमदर्दी जाग सकती है ऐसे में आज़म सपा का प्रचार करेंगे और कुछ न कुछ मुस्लिम वोटों में बंटवारा करेंगे जिससे सीधा फायदा बीजेपी को होगा।
यदि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गतबंधन नहीं होता है तो यह दांव मजबूत हो सकता है क्योंकि ऐसे में मुसलमानो के भ्रमित होने की अधिक संभावना होगी और अगर यह बंटवारा होता है तो बीजेपी की राह आसान हो जायेगी,क्योंकि आज़म जितना रोयेंगे,जितना दर्द बयान करेंगें लोग उतनी हमदर्दी जतायेंगे यानी सीधे तौर पर इस पूरे प्रकरण में सियासत साफ दिखाई दे रही है जबकि जहां तक मामला हेट स्पीच का है तो पूरे पूरे समुदाय को गाली देने वाले ,उनको मारने काटने की बात करने वाले आज़ाद हैं

और उन्हें न्यायालय ने आजादी दे रही है लेकिन आज़म को सज़ा वह भी ऐसे मामले में जोकि देखने सुनने पर कलेक्टर की तरफ से मान हानि का दावा करने योग्य अधिक लगता है।खैर बोलिए सियासत की जय और बार बार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 को जो कहता है कि “राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” दोहराइये।

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