लोकसभा चुनाव 2019 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है प्रधानसेवक शहीद की अंतिम यात्रा को नजरंदाज कर पटना में संकल्प रैली कर रहे थे सभी राजनैतिक दल अपने अपने जोड़ तोड़ में व्यस्त हैं ,पुलवामा अब भारतीयों की आदत के अनुसार धुंधला पड़ने लगा है अभी अभिनन्दन की बात हो रही है जो आखरी चरणों में है ।
भारतीय जनता पार्टी के सिवा बाक़ी अधिकतर दलों को राष्ट्रद्रोही होने का सर्टिफिकेट दिया जा रहा है ऐसे माहौल में उत्तरप्रदेश में एक अजब खेल खेला जा रहा है जहां एक तरफ सपा बसपा गठबंधन कर सीटों का बंटवारा कर चुकी हैं और उन्होंने कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों पर समेट दिया है उससे जिस तरह कांग्रेस को तिलमिलाना चाहिए था वैसा होता नहीं दिख रहा ,प्रियंका गांधी अाई तो लेकिन अचानक उनका मौन बहुत कुछ कह रहा है।
दूसरी तरफ मायावती लगातार कांग्रेस पर हमलावर हैं लेकिन कांग्रेस उनके सम्मान का राग अलाप रही है वहीं अखिलेश कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश को हाथ और हाथी दोनों पसंद है इससे जनता के मन में संशय है कि आखिर अंदर खाने क्या खेल खेला जा रहा है?
दरअसल संभावना यह है कि अगर कांग्रेस अकेले उत्तर प्रदेश चुनाव में उतरती है तो उसे मात्र 2 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है ऐसे में गठबंधन 50 से अधिक सीट जीतने में कामयाब होगा वहीं बीजेपी को 10 से 15 सीट मिल सकती है ऐसे में गठबंधन बहुत मजबूत होगा जबकि कांग्रेस पूरे भारत से लगभग 140 से 150 सीट पाने में कामयाब हो सकती है ऐसी स्तिथि में उसे इस गठबंधन की जरूरत होगी सरकार बनाने के लिए क्योंकि बीजेपी भी लगभग इतनी ही सीट जीतने में कामयाब हो सकती है और संभावना यह भी है कि सबसे बड़े दल के रूप में आए ऐसे हालात में दोनों बड़े राष्ट्रीय दलों को उत्तरप्रदेश के महागठबंधन की आवश्यकता होगी सरकार बनाने के लिए ।
कांग्रेस के पास बीजेपी की तुलना में अधिक संभावनाएं होंगी लेकिन इस समय बीजेपी बड़ी चाल चल सकती है और मायावती को प्रधानमंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव आ सकता है और ऐसा करने पर ममता सहित टी. आर. एस. जैसे दल समर्थन में आ सकते हैं और कांग्रेस सत्ता से दूर हो सकती है माया के प्रधानमंत्री बनने और बीजेपी के बाहर से समर्थन किए जाने पर अखिलेश भी मान सकते हैं क्योंकि ऐसा होने पर उत्तर प्रदेश में उनकी राह आसान हो जायेगी और गठबंधन विधानसभा चुनाव तक चलेगा और आराम से मुख्यमंत्री का चेहरा अखिलेश होंगे।
यह संभावना है जिसका आभास कांग्रेस को है लिहाजा वह उत्तरप्रदेश में गठबंधन से बाहर रहकर भी उसकी नाराजगी मोल लेने का जोखिम लेने को तैयार नहीं ताकि इस दोस्ती का फायदा वह चुनाव के बाद अखिलेश के जरिए माया को अपने पक्ष में खड़ा करने के लिए उठा सके या फिर अगर माया नहीं मानती तो अखिलेश उन्हें समर्थन न करते हुए राहुल के साथ खड़े हो जाएं।
वहीं दूसरी स्तिथि यह है कि यदि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शिवपाल यादव सहित अन्य छोटी पार्टियों से गठबंधन कर चुनाव में उतरती है तो सपा बसपा को नुक़सान तय है क्योंकि जिस तरह दोनों दलों में सीटों का बंटवारा हुआ है उसमे शहरी क्षेत्र की अधिकतर सीटों पर समाजवादी पार्टी मैदान में होगी और यहीं कांग्रेस का भी वोटर है यानी कांग्रेस की मजबूती का सबसे ज़्यादा नुक़सान अखिलेश को होगा और चुनाव के बाद की स्तिथि में उनकी यह नाराजगी माया के साथ उनके खड़े होने की बड़ी वजह बन सकती है हालांकि सीटों के हिसाब से कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा लेकिन बाद की संभावनाओं से डरी कांग्रेस फैसला नहीं कर पा रही।
यही वजह है कि सीधे तौर पर फायदा देखते हुए भी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में हिम्मत नहीं कर पा रही है क्योंकि वह माया को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए अखिलेश को अपने साथ खड़ा रखना चाहती है।

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