कब समझेगा यह देश कि इन मजदूरों की वजह ही देश तरक्की नहीं कर पा रहा ? गंदी नाली में जैसे कीड़े होते हैं वैसे यह शहरों में रेंगा करते है हर तरफ गंध फैलाते रहते हैं क्यों मैंने सही कहा न ? यही तो एक सच है न बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में वास करने वाले साहब लोग इनके संपर्क से भी बचते हैं न जाने कौन सी महामारी लिए फिर रहे हो यह गरीब और इतना ही नहीं इनसे कई गुना आदरणीय कुत्ते बिल्ली होते है ,
सरकार का सारा धन जो अमीरों के टैक्स का पैसा है इनके कल्याण में बर्बाद हो जाता है लेकिन यह हैं के वहीं के वहीं घिन आती है इन गरीबों से मगर क्या करे मजबूरी जो है यह वरना काम कौन करेगा ? अगर सरकार रोबोट की इतनी फौज तैयार कर ले तो फिर इन्हें मार ही दिया जाना चाहिए क्यों क्या कहते हैं आप ?
आपका क्या विचार है प्रधानमंत्री ने देश बंद कर दिया पूरे 4 घंटे यानी 240 मिनट अर्थात 14400 सेकेंड का लंबा वक्त दिया इतने समय में तो लोग दुबई, रूस,चीन न जाने कहां कहां पहुंच जाते हैं लेकिन यहां भी इनका वहीं पुराना गरीबी का रोना अरे सब कुछ ऑनलाइन है फटाफट स्मार्टफोन निकालते और अपने लिए समान बुक कर लेते और एटीएम जाकर पैसे निकाल लाते ऐश करते लेकिन इन्हें तो सबको परेशान करना है मैं सही कह रहा हूं न ?
आप मुझे पागल क्यो कह रहे हैं मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया है जो आपको गुस्सा आ गया क्योंकी आपने वह सब किया जो यह नहीं कर सकते थे और यह क्यों नहीं कर सकते थे आप खूब जानते हैं क्योंकि यह गरीब है और गरीबी अभिशाप है गरीब होना पाप है तभी आपको भारतीय मीडिया की नौटंकी अच्छी लगी और आप मस्त हो कर अंताक्षरी खेलते रहे ,आपने सवाल नहीं किया सरकार से कि आखिर यह नन्हे नन्हे फूलों के साथ लाखों का मजमा सड़को पर क्यो है? जवाब मिलेगा गरीबी का कोई इलाज नहीं है।
सरकार ने कहा कि घरों से न निकले सब कुछ बंद कर दिया गया है मगर शांति के बाबू को भूख लगी है स्तन सूख चुके हैं उसके अब उसमें दूध नहीं है और न शांति के बदन में खून बच्चे की भूख से मौत की जगह उसने बीमारी से लड़ने को सही समझा और निकल पड़ीइसे कौन समझाए की मर जाने दे इस बच्चे को क्यों एक और गरीब समाज में बढ़ाना चाहती है ? मगर मा सिर्फ मा होती है जनाब उसकी ममता कभी गरीब नहीं होती।सरकारी ऐलान टीवी पर होते रहे जिसके पास अपने सपने देखने को चैन की नींद नहीं है वह टीवी कहां देखता है जनाब सड़कों पर भूख पैदल चल रही थी और अमीरी हारमोनियम बजा रही थी,खुद जनता के मसीहा भक्ति में लीन होकर रामायण का दूरदर्शन पर प्रसारण देख रहे थे।
गरीबों का मौत से साक्षात्कार चल रहा था भूख से मरो,थकान से मरो,या बीमारी से अगर इन सब से बच जाओ तो ऐक्सिडेंट भी एक मौत का साधन है ।
लगातार घोषणाएं हो रही थी लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पाठ पढ़ाया जा रहा था वहीं गरीबों को पढ़ने का मौका देने की बात कर वापस दिल्ली की सत्ता में आए आम आदमी से मुख्यमंत्री बने महोदय लगातार टीवी पर विज्ञापन दे रहे थे कि हमने 4 लाख लोगों के खाने का इंतजाम कर दिया है हमने सब आपके सपनों जैसा कर दिया है लेकिन महोदय ने एक बार सड़क पर आकर लोगों को 100 मीटर की दूरी पर ही खड़े होकर भरोसा दिलाने की कोशिश के बारे में सोचा भी नहीं।
यह वही हैं जिन्होंने दिल्ली दंगा पीड़ितों को रिलीफ कैम्प से निकाल बाहर किया बिना उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए सिर्फ बीमारी को बहाना बनाकर आखिर आनन्द विहार में भीड़ कैसे अाई इन्हें नहीं पता शायद इन्होंने 15 लाख सीसीटीवी कैमरे अपने घर में चोरी न हो इसलिए लगवाए हैं? क्योंकि इससे इन्हें कोई जानकारी नहीं मिल पाती न दिल्ली दंगों के समय मिली न अब।
खैर जाने दीजिए आइए बदबूदार गरीबों की बात करते हैं जो अचानक अाई इस मुसीबत में कराहने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे मकान मालिक को देने के लिए किराया नहीं खाने को राशन नहीं पैसों का कोई पता नहीं क्योंकि अमीर वाले बाबूजी ने फोन ऑफ कर लिया ,ठेकेदार ने कह दिया कि जब काम शुरू होगा तो पैसा मिलेगा ऊपर से काम कब शुरू होगा इसका पता नहीं ऐसे में अकेले परदेश में भूख से मरने से बेहतर है बीमारी से लड़ते हुए अपने घर में परिवार के साथ मरना उसे ज़्यादा बेहतर लगा ।
भूख प्यास अनिश्चितता नाउम्मीदी और अविश्वास की यह भयानक तस्वीरें जिस जिस इंसान ने देखी रो दिया मैंने इंसान शब्द का इस्तेमाल किया है इसे याद रखियेगा और हज़ारों की तादाद में फरिश्ते सड़कों पर उतर आए जो इनकी भूख प्यास तो मिटा सकते थे इनमें विश्वास भर सकते थे लेकिन इससे ज़्यादा इनकी मदद नहीं सकते थे भारत के लोगों ने जी भर के भारत के लोगों की सेवा की और कर रहे हैं
लेकिन ऐसे समय में सरकार ने इनके लिए एक बहुत बड़ा निर्णय ले लिया जिससे इनकी जिंदगी बदल जाएगी इनके सारे दुख दूर हो जाएंगे वह निर्णय था प्रधानमंत्री केयर फंड बनाए जाने का वह प्रधानमंत्री राहत कोष क्योंकि पुरानी सरकार ने बनाया था तो पुराना हो चुका था लिहाज़ा यह बड़ा निर्णय लिया गया शायद ?
खैर गरीब ने क्या पाया और क्या खोया इससे आपको क्या ? दिल्ली से बरेली पहुंचते पहुंचते इन गरीबों के पास से बहुत बदबू आने लगी और शायद जिसको जिलाधिकारी महोदय सह नहीं पाए उन्हें लगा न जाने कितना संक्रमण लेकर आ धमके हैं यह गंदे लोग फिर क्या था टैंकर मंगाया गया उसमें केमिकल डाल कर समान सहित बच्चो औरतों मर्दों सबको प्रेशर से धो डाला गया बिना इस बात का ख्याल किए कि यह भी इंसान है लेकिन डीएम साहिब का यह कारनामा उनके अतिउत्साह जैसे शाब्दिक झोलझाल में झटक दिया गया ज़रा सोचिए क्या डीएम साहिब अपने बच्चे को ऐसे केमिकल वाले पानी से धो सकते हैं? ज़रा सोचिए अगर यह किसी नेता या किसी अमीर के बच्चे होते तो भी क्या यही सुलूक होता?
क्या वाक़ई गरीब इन्सान नहीं होते? क्या गरीबों के पास बदबू आती है ? जी नहीं जनाब मज़दूर के पसीने की महक से जो कमाई होती है उससे किरदार की गंध को मिटाने वाला इत्र खरीदा जाता है जो कड़वी सच्चाई है।
कलम रो रहा है स्याही की सिसकियां शब्दों की चीखें मस्तिष्क को झकझोर रही हैं कि आखिर इनका क्या कुसूर? क्या यह सिर्फ मरने के लिए पैदा हुए हैं कि इनके नाम पर लूट का घिनौना खेल खेला जाए ।
देश में हालात खराब है लोग कोरोंना को तो हरा देंगे लेकिन भूख से हार जायेंगे और इस ओर ध्यान न जाए इसलिए सभी को सबसे पसंदीदा विषय की ओर मोड़ दिया गया है आप जानते हैं न आखिर आपका भी तो वह पसंदीदा विषय है।
जी हां हिन्दू मुसलमान ,भूख को जब भारतवासी मिलकर हराने लगे तो सियासत के तिकड़मबाज बीमारी को ही धर्म का चोला पहनाने पर उतारू हो गए वहीं शब्द बाहर निकला कोरोना जिहाद रण स्थली बना बस्ती निज़ामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात का मरकज जहां सरकारी नाकामी को धर्म के रंग में पेंट कर आपके सामने पेश कर दिया गया ।
खैर आप सोचिए कि क्या जो हुआ वह सही था अगर सही नहीं था तो दोषी कौन और यह सवाल तब तक खुद से पूछिए जब तक आपको दोषी दिखने न लगे मुझे यकीन है आप दो बार तो अपनी अंतरात्मा से आंख छुपा सकते हैं लेकिन जैसे ही आंख मिलेगी आपको सब सच दिखने लगेगा फिर आपको इन गरीबों के पास से बदबू नहीं आएगी आप आगे बढ़ कर उन्हें गले से लगा लेंगे और भारत जीत जायेगा।
यूनुस मोहानी
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