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आप सोच रहे होंगे कि इस हंगामी दौर में मैने यह कौन सी बेवक्त की शहनाई बजानी शुरू कर दी ,जब देश के सबसे बड़े राज्य में चुनावी त्योहार चल रहा है ऐसे में इन बेतुकी बातों का क्या औचित्य ? आपकी बात सही भी है जब हर तरफ जीत हार के समीकरण ,चुनावी वादे ,या जुमले चर्चा में हैं मैं यह कैसा राग अलापने लगा लेकिन सुनिए तो सही मैं जो बात कर रहा हूं वह भी आपके लिए जरूरी है।
क्या देश के प्रधानमंत्री को डरने का हक नहीं है ? क्या वह अपने डर को दूर करने के लिए कुछ नहीं कर सकते ? मुझे मालूम हैं आपका जवाब होगा क्यों नहीं कर सकते बिलकुल कर सकते हैं तो फिर मेरा आपसे सवाल है छात्रों पर हुए बर्बर लाठीचार्ज पर आपको गुस्सा क्यों आ रहा है ?

जब दिल्ली की सड़कों पर यह छात्र दिखे तो आपने इन्हें देशद्रोही कहा था याद है आपको या फिर भारतीय आदत के अनुसार भूल गये आप ? एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्विद्यालय में गुंडों ने घुस कर मारपीट की जिसकी जांच आज तक पूरी नहीं हो सकी तब भी आपको पिटने वाले छात्रों की गलती नजर आई थी याद है न आपको?

तो फिर आज पुलिस अचानक से गलत कैसे हो गई यह सवाल आपको खुद से पूछना है मैं न दिल्ली की सड़कों पर बैठे छात्रों के खिलाफ हूं न इलाहाबाद और पटना की सड़कों पर उतरे छात्रों के दोनो ही मेरे देश के भविष्य हैं लेकिन मेरा सवाल आपसे है कि विचारधारा में यह बदलाव कैसे आ गया ?

खैर जाने दीजिए इन सवालों जवाबों को इससे क्या बस इतना समझिए कि सूनी सड़कों से डर सबको लगता है लेकिन आप कुछ नहीं कर सकते लेकिन जो कर सकते हैं वह क्यों डरते रहें ?उनके पास संसाधन हैं वह इन सन्नातों को मिटा सकते हैं तो फिर आपके पेट में दर्द क्यों हो ?

कभी नागरिकता बिल के बहाने महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर बिठा दिया जाता है पूरे देश में एक शोर होता है सन्नाटा हार जाता है जब वह उठती हैं तो कोविड की मार में एंबुलेंस की चीख इस सन्नाटे को तोड़ती हैं अजी अजीब बात है खामोश लाशें भी सन्नाटों की दुश्मन होती हैं आपने तो देखा है न अभी बात बहुत पुरानी तो नहीं हुई है जब कब्रिस्तानों और शमशानों से मेले हट जाते हैं तो देश का किसान सड़कों के सन्नाटे से लड़ने बैठा होता है आखिर जिल्लेइलाही की मंशा है कि सड़क सूनी नहीं होनी चाहिए भले ही कुछ सपने क्रूरता की भेंट चढ़ जाएँ ,कुछ किसान कुछ जवान मौत के मुंह में समा जाएं ।

अभी सड़कों पर बहुत सन्नाटा है देश में कहीं शोर नहीं मचा था तो उन्हें पंजाब की सड़क पर डर लगा याद है न आपको ,उन्होंने अपना डर सार्वजनिक भी किया फिर भी आप नहीं समझे देश के सबसे लोकप्रिय नेता जिन्हें अपने देश की जनता से बहुत खतरा है उन्हें हर किसी में खालिस्तानी,पाकिस्तानी,अर्बन नक्सल या राष्ट्रद्रोही जो दिखता है तो डर बनता है न ऐसे खूंखार लोगों से डरना भी चाहिए मैं उनके साथ हूं कतई इस मामले में उनका विरोध नहीं करता जनता उनसे इतना प्यार करती है कि विदेशों में जो सर्वे होते हैं उसमें सर्वाधिक लोकप्रिय नेता का खिताब वही कब्जियाते हैं तो उन्हें बिलकुल जनता से डरना चाहिए।

लीजिये मैं फिर अपने मूल विषय से भटकने लगा हमें तो सड़कों के सन्नाटे की बात करनी थी मैं डर पर केंद्रित हो गया तो आइए विषय पर लौटते हैं सन्नाटा किसी को पसंद नहीं होता क्योंकि सन्नाटे सवाल करते हैं, सन्नाटे हकीकत से रूबरू करा देते हैं ,सन्नाटे में अंतरात्मा की आवाज साफ सुनाई देती है ,तो फिर सूनी सड़के किसे पसंद आ सकती हैं तभी तो जब पूरे देश में अचानक लॉकडाउन हुआ तो सड़के सूनी न होने पायें इसका फौरी तौर पर प्रबंध किया गया गरीबों को मजदूरों को सड़कों पर रोते बिलखते छोड़ दिया गया जाओ पैदल पहुंचो या मरो ,लेकिन सड़के सूनी न रहने पाएं सब दौड़ पड़े पैदल आखिर चुनाव तो था नहीं कि हजारों रथ बन जाते, पक्ष -विपक्ष दोनों तरफ से लिहाजा सड़कों का सूनापन मजबूरी और गरीबी ने दूर कर दिया ।

अब फिर सड़कें सूनी हैं तो डर बढ़ रहा है लिहाजा कोई तो चाहिए जो इस सन्नाटे को चीर दे वैसे भी जब सन्नाटा गहरा हो तो दमदार आवाज चाहिए लिहाजा युवाओं को चुना गया है लाठी के दम पर यह शोर मचा है इसे अन्यथा मत लीजिए यह सिर्फ डर को हटाने का साधन है आपसे उन्हें दुश्मनी नहीं है अब आप खुद सोचिए कि जो पहले डर भगा रहे थे वह देशद्रोही थे या आप ?एक चुभती हुई बात और सुन ही लीजिए वैसे जब पुलिस लाठियां बरसा रही थी तो कुछ पत्थर भी हाथों में थे कुछ समझें पत्थरबाज शब्द कुछ सुना सुना सा लगा होगा आपको इसपर भी विचार कीजिए हालात बहुत कुछ समझाते हैं।

सवाल कड़वा है मगर सच तो है कहीं आप भी तो सच से नहीं डरते अगर नही डरते तो इस सवाल का जवाब दीजियेगा कि कहीं आप देशद्रोही तो नहीं हो गये?
यूनुस मोहानी
9305829207,8299687452
younusmohani@gmail.com

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