धर्मनिरपेक्ष दलों की लापरवाही में लोकसभा चुनाव के परिणाम को सार्थक बनाने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए. कांग्रेस की रणनीति व्यवहारिक तौर पर आम आदमी के समझ में नहीं आ रही है राजनीतिक दलों से लेकर राजनीतिक विश्लेषक तक यह समझने में असमर्थ है एकमत राजनीतिक पार्टियों के साथ अलग-अलग राज्यों में राजनीतिक गठबंधन करने में कांग्रेस की झिझक आखिरकार ढके छिपे इंकार के क्या कारण है यह निश्चित है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली इस वर्तमान भाजपा सरकार ने 5 वर्षों के दौरान भारतीय लोगों को बुरी तरह निराश किया,नोटबंदी,जीएसटी,महंगाई बेरोजगारी और मॉब लिंचिंग या फ्लैश फसाद से हिंदुस्तान को 5 वर्ष पीछे धकेल दिया! नरेंद्र मोदी अमित शाह और भाजपा आर एस एस की चुनाव प्रतिबद्धताओं में कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया हालांकि लोगों में डर फैल गया व्यापारी तबका नोट बंदी के मार झेलने के बाद अभी तक संभाल नहीं सका जीएसटी ने छोटे व्यापारियों का कारोबार खा लिया हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने के वादे के बुनियाद पर 10 करोड़ नौजवान को इन 5 वर्षों में रोजगार मिलना था मगर रोजगार से लगे हुए भी नोटबंदी और जीएसटी की वजह से बेरोजगारी से पीड़ित है रोजगार में लगे हुए लाखों लोग फिर से बेरोजगार हो गए. और नरेंद्र मोदी ने अपनी मानसिकता का परिचय देते हुए पकोड़े बेचकर ₹200 रोज कमाने वाले की मेहनत को भी हाईजैक करने का प्रयत्न किया. मनमोहन सिंह की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सत्ता में आने के बाद इस हुकूमत ने बड़ी-बड़ी बातें कर हिंदुस्तान के कई बड़े व्यापारियों के भाग जाने में मदद की. इस प्रकार से चौकीदार ने चौकीदारी भी की और चोर का साथ भी दिया, इन 5 वर्षों में महंगाई ने भी अपने कई रंग दिखाएं मोदी के कार्यकाल में दाल ₹300 प्रति किलो की असीम ऊंचाई को छूने के लिए हमेशा स्मरण किया जाएगा- पेट्रोल गैस और डीजल जैसे आम इंधन की कीमतों में बढ़ोतरी और रुपए की कीमत में गिरावट के नए रिकॉर्ड भी मोदी सरकार के कार्यकाल में बना. दलित हो या मुसलमान गौ रक्षकों के शक्ल में घूमने वाले हिंदू संगठन के बे लगाम गुंडों का निशाना बनते रहे और सरकार मूकदर्शक बनी रही- दादरी में अखलाक अहमद सैफी को गौ मांस के संदेह में मंदिर एलान के द्वारा लोगों को इकट्ठा करके घर पर चढ़ाई करने बाद पीट-पीटकर मार डाला गया और आज तक प्रधानमंत्री ने इस वीभत्स हत्या की निंदा भी नहीं की हिंदुस्तान की शायद ही कोई राज्य है जिसमें नाम लिंचिंग का पीड़ा महसूस ना किया और ऐसे हर केस में मारे जाने वाले अधिकतर मुसलमान है- इससे पहले दंगे नियमित और नियोजित तरीके से होते थे लेकिन उस समय इलाकों को चुना जाता था किंतु अब भी दंगे नियमित और नियोजित तरीके से होते हैं लेकिन निशाना अचानक चुना जाता है! इस प्रकार से अगर देखा जाए तो यह सरकार पूरी तरह से ना काम है. कल घरेलू उत्पाद में इन 5 वर्षों में लगातार गिरावट आई है. निर्यात कम हो गए हैं सेवाएं श्रेणी दिन-ब-दिन अपने निचले स्तर पर है मैन्युफैक्चरिंग दम तोड़ रही है आर्थिक तौर से हिंदुस्तान आज इतना कमजोर है पहले कभी नहीं था समाजी एतबार से जो नफरत फूट अराजकता फैला है जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता युवकों में निराशा और आम इंसानों में नाराजगी है यह स्थिति यह बताने के लिए पर्याप्त है कि हिंदुस्तानी जनता परिवर्तन की तलाश में है किंतु विपक्षी दल किसी भी तरह राष्ट्रीय विकल्प निकालने में अब तक ना कामयाब रही है! हाल ही में विधानसभा चुनाव में 5 में से 3 राज्यों के वोटरों ने कांग्रेस को समर्थन किया. दो राज्यों के वोटर क्षेत्रीय पार्टियों के साथ है पांच में से किसी राज्य में बीजेपी आर एस एस की सरकार को समर्थन नहीं किया. इस तरह से अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव सारी आशाओं के केंद्र बनकर कांग्रेस और धर्मनिरपेक्ष क्षेत्रीय पार्टियों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है यूपी में मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी और मायावती बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को गठबंधन में शामिल होने के मौका दिए बगैर अगर अपने गठबंधन का ऐलान किया तो शायद इसी बुनियाद पर के क्षेत्रीय पार्टियों में पनाह हासिल करने के हिंदुस्तानी जनता के मिजाज को समझ रही थी और उन्हें अपने ऊपर यकीन था कि यह गठबंधन कम से कम एक राज्य में बीजेपी आर एस एस का बदल हो सकता है जैसा की रिपोर्ट मिल रहा है लगता है यह गठबंधन ताकतवर पोजीशन में है, इस प्रकार से तीसरा मोर्चा भी कांग्रेस और छोटी पार्टियों के साथ बनता नजर आ रहा है जिसके बनने का अमल अभी जारी है लेकिन इसके संभावना पर कोई टिप्पणी नहीं किया जा सकता बिहार में आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन आज भी यह पंक्तियां लिखे जाने के वक्त तक साफ नहीं हो सका बिहार का वोटर लालू प्रसाद यादव गैर मौजूदगी में उनके बेटे तेजस्वी यादव को उनका मकानम देने को तैयार नहीं. यह सवाल आम है कि बिहार में धर्म निरपेक्ष चेहरा कौन होगा इसके अलावा भी यादव नेताओं को अपना मार्गदर्शक मानने को बिहार का वोटर अब तैयार नहीं तेजस्वी अब तक बिहार के धर्मनिरपेक्ष लोगों का भरोसा हासिल करने में नाकाम है और कांग्रेस का कोई बड़ा लीडर ऐसा नहीं जिसकी तरफ निगाह उठाई जाए इस तरह से गठबंधन की सूरत में भी धर्मनिरपेक्ष लोग के सामने गठबंधन का चेहरा राहुल गांधी ही रहेंगे और अगले साल के विधानसभा चुनाव के लिए भी कोई नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आ सकेगी बिहार का बॉर्डर बी जे पी आर एस एस से बहुत नाराज है लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होने के बावजूद जनता दल यू से मायूस नहीं और नीतीश कुमार की लीडरशिप पर सवालिया निशान कायम नहीं हुआ है बिहार में कांग्रेस को छोटा पार्टनर बराकर आरजेडी धर्मनिरपेक्ष पर कोई एहसान नहीं करेगा तेजस्वी को दिमागी तौर पर अभी और बड़ा होने की जरूरत है पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में कोई संदेह नहीं कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष बंगालियों की सर्वसम्मत नेता है, कांग्रेस बहुत कुछ नहीं कर सकती. विधानसभा चुनाव के दौरान जिला बर्दवान की कुलदेवी टाउन में एक एक राजनीतिक जलसे के दौरान राहुल गांधी लाल सलाम के नारे का बंगालियों ने जबरदस्त मजाक उड़ाया था तेलंगाना में टीआरसी ने अपनी भरतरी अभी हाल में साबित की है आंध्रा में तेलुगु देशम कमजोर नहीं पड़ा उड़ीसा में जनता दल के नेता नवीन पटनायक आज भी इस राज्य के लोगों की उमंगो पूरा करने का केंद्र है कर्नाटक में जनता दल सेकुलर के साथ कांग्रेस का गठबंधन मौजूदा हालात में स्वाभाविक तथा अनुकूल है दिल्ली के 7 सीटों के लिए आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है अब भी कांग्रेस किसी गठबंधन के लिए अपने दरवाजे खुले रखने का ऐलान भी किया है तमिलनाडु में अनुकूल पूर्व क्षेत्रीय पार्टियां टूट-फूट से गुजरने के बाद भी एक दूसरे के साथ मुकाबले में है और कांग्रेस डीएमके के साथ जूनियर पार्टनर के तौर पर रहेगी कश्मीर में मुकाबला पी डी पी आर एस एस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के दरमियान रहेगा यह नक्शा यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस के पास छोटी क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन करने के सिवा कोई चारा नहीं था लेकिन अगर कांग्रेस ने उदाहरण के स्वरूप दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया तो उसके उसके राजनीतिक कारण है क्योंकि अगले साल दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उनमें कांग्रेस को आम आदमी पार्टी का मुकाबला करना है ऐसी सोनाक्षी के राजनीतिक चुनौतियां कई राज्यों में भी है और कांग्रेस को इन चुनौतियों का ध्यान रखते हुए अपने फैसले में झिझक या कुछ शर्तों में इंकार पर मजबूर होना पड़ रहा है और यह मजबूरी इसे बीजेपी आर एस एस की नाकाम हुकुमत का वैक्लपिक बनकर उभरने से रोक रही है इलेक्शन लड़ने के लिए कुछ सीटों पर उम्मीदवार के नाम का ऐलान हो चुका है कुछ जगहों पर राजनीतिक गठबंधन अब भी बन रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है कि हिंदुस्तान आवाम बी जी पी आर एस एस को सत्ता से बेदखल करने के लिए तैयार है लेकिन राजनीतिक पार्टी या किसी बड़े प्लेटफार्म पर इकट्ठा होकर आवाम को वैकल्पिक नहीं दे पा रही है चुनाव के सिलसिले में यह पूर्वाग्रह कोई अच्छी चीज नहीं लेकिन यह हालात की विडंबना है पूर्वानुमान बार-बार सामने आ रहा है कि बीजेपी आर एस एस सत्ता से बेदखल हो जाए तो भी हिंदुस्तानी जनता को एक ऐसी हुकूमत मिलेगी जिसे अपने चलने के लिए ज्यादा बैसाखियों की जरूरत नहीं होगी प्रधानमंत्री बनने की हवस में लिप्त मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई का नक्शा बिगाड़ने में जो किरदार निभाया है इसकी कीमत बहुजन समाज पार्टी को चुकानी पड़ेगी समाजवादी पार्टी जिन सीटों पर खुद लड़ेगी वहां बीएसपी का वोट समाजवादी के तरफ से आएगा मुस्लिम वोट भी अखिलेश को मायूस नहीं करेगा लेकिन जहां मायावती के उम्मीदवार होंगे वहां ना मुस्लिम वोट गठबंधन की तरफ जाएगा ना यादव वोट. इस परिस्थिति में आम वोटर को यानी बी जे पी आर एस एस के कट्टर हिमायती वोटर को छोड़कर से धर्मनिरपेक्ष लोग को हर चुनाव की क्षेत्र में उम्मीदवार के बारे में अलग-अलग फैसले करने होंगे और यह काम इंसानी जागरूकता और सजग नागरिक का तकाजा भी है बीजेपी और आर एस एस को सत्ता से बेदखल करने की जिम्मेदारी देश प्रेम पर निर्भर होती सियासी पार्टियां नाकाम हो रही है मगर हिंदुस्तानी जनता का राजनीतिक विज्ञान सार्थक हो सकता है कांग्रेस के पास अभी वक्त है अगर उनके कार्यकर्ता जनता के उमंग पर खरा उतरने के लिए अपने वजूद को पहचानते हुए कांग्रेस के लिए नई रणनीति बना सके तो 2019 के 23 मई को एक खामोशी इंकलाब आ सकता है कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कोलकाता से कच्छ तक हिंदुस्तानी मुसलमान अपना मन बनाए हुए हैं कि इस बार वह वोटिंग में ज्यादा से हिस्सा लेगा।
इलेक्शन में पड़ने वाला कोई वोट बर्बाद नहीं होने देगा किसी मजहबी छोटी डमी वे वज़न क्षेत्रीय पार्टी को या अपने अजीज़ आजाद उम्मीदवार को वोट डालकर फैसला बनाने में अपने हिस्से से दस्त बरदार नहीं होगा और हर क्षेत्र में जहां फासिस्ट और धर्मनिरपेक्ष उम्मीदवारों की तरफ से अपने तमाम वोटों का वज़न डाल कर उसे कामयाब बनाएगा धर्मनिरपेक्ष वोटों की तक्सीम से चुनावी नतीजे को बर्बाद होने से रोकने का यह जज्बा जितना काबिल एहतराम है उतना ही इज्जत के लायक धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का रवैया भी होना चाहिए ताकि वह जनता की सोच के मुताबिक काम करें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए वास्तविक परिणाम में मददगार साबित हो! उर्दू लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार इंडिया आगैन्स्ट वैलिड वोट्स के संस्थापक एवं संयोजक अश्हार हाश्मी